मुख्यपृष्ठस्तंभस्वीसी संडे : वड़ा पाव जिंदाबाद...!

स्वीसी संडे : वड़ा पाव जिंदाबाद…!

एम एम सिंह
अगर आप मुंबई में रह रहे हैं और आपने कभी वड़ा पाव नहीं खाया तो ऐसा हो नहीं सकता! वड़ा पाव यानी मुंबईया पाव (पुर्तगाली शब्द ब्रेड ) और वड़ा (मराठी शब्द पकौड़ा के लिए) यानी बेसन में लिपटी मैश किए गए उबले आलू के साथ कटी हरी मिर्च, धनिया, लहसुन, नमक, सरसों, हींग आदि के गोल पकौड़ा ़। पाव के दो-फाड़ किए उसमें सूखा मसाला ( लहसुन, धनिया बीज, हल्दी, लाल मिर्च, नमक आदि का भुना हुआ मिश्रण) या चटनी (हरा धनिया, हरी मिर्च, लहसुन अदरक, नमक आदि से बनी हुई) और सबूत कच्ची हरी मिर्च या फिर प्रâाई नमक लगी हुई बीच से लंबे चीरा वाली हरी मिर्च।
यह है बिल्कुल देसी खालिस वड़ा पाव। मुंबई में गरीब से गरीब बंदा वड़ा पाव खाकर अपनी भूख मिटा सकता है, कभी भी कहीं भी! वड़ा पाव का ईजाद हुआ भी आम नागरिकों के लिए था। अपनी पुरानी मुंबई यानी बीते जमाने की बॉम्बे, बंबई का वजूद कपड़ा मिलों के चलते भी था, विशेष रूप से मध्य मुंबई। इन कपड़ा मिलों में तीन ‘पालीr’ यानी तीन शिफ्ट में २४ घंटे काम चलता रहता था। मिल मजदूर यानी गिरनी कामगार को ८ घंटे की शिफ्ट के बीच खाने का ब्रेक मिलता था। उस जमाने में अधिकतर गिरणी कामगार गांव से नौकरी की तलाश में आए छेड़ा भाई हुआ करते थे। चॉलों के एक कमरे में समूह में रहा करते थे। सभी के पास इतना वक्त नहीं होता था, जो टिफिन बनाएं। हालांकि, खानावली (मैस) और टिफिन सर्विस नहीं थे ऐसा नहीं कहा जा सकता, लेकिन मिल से बाहर आने के बाद कामगारों के पास झटपट नाश्ते का कोई पर्याय भी नहीं था। पर्याय बना वड़ा पाव!
६० के दशक में मराठी मानुस के दिमाग में एक आइडिया कौंधा था। यूरेका यूरेका…! उसने इजाद किया वड़ा पाव का यानी फटाफट झटपट नाश्ते का। इसकी शुरुआत को लेकर कई किस्से हैं। पहला वड़ा पाव स्टॉल को शुरू करने का श्रेय अशोक वैद्य ( दादर स्टेशन के सामने) को और कुछ लोग सुधाकर म्हात्रे को देते हैं। इसके अलावा कल्याण के वझे परिवार को भी श्रेय जाता है, जो अपने घर की खिड़की से वड़ा पाव बेचा करते थे।
मराठी मानुस के मनोमस्तिष्क में, दिल में महाराष्ट्र की अस्मिता की अलख जगाने वाले शिवसेनाप्रमुख हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना के साथ मराठी मानुस को उद्यमी बनने के लिए भी प्रोत्साहित किया। शिवसेना ने वड़ा पाव सम्मेलन का आयोजन कर वड़ा पाव को मुंबई के हर कोने में पहुंचा दिया। यह फास्ट फूड नाश्ता बिजली की तेजी से इस कदर पैâल गया कि अक्खी मुंबई का लाडला बन गया। आपने बॉलीवुड की कई सितारों की जुबान से जरूर सुना होगा कि उनकी स्ट्रगल के दौर में वड़ा पाव खाकर उन्होंने अपना गुजारा किया है, तो अब यह मानने में काहे गुरेज करें कि इस वड़ा पाव ने कई रंकों को राजा बनाया है!
किसी जमाने में गरीबों का यह नाश्ता आज अमीरों के लिए पैâशनेबल डिश बन गया है। चीज बर्गर के जमाने में इसके देसी नाम का ग्लोबीकरण हो गया है। हिंदुस्थान की बात छोड़िए दुनिया के किसी भी हिस्से से जो भी मुंबई घूमने आया वह इसके स्वाद का दीवाना हो गया। इसका नामकरण हो गया ‘इंडियन बर्गर’! और यह दुनिया के लगभग अधिकतर हिस्से में स्पेशल डिश के रूप में मौजूद है।
अब आप जरूर सोच रहे होंगे किसी संडे में आखिर वड़ा पाव पर इतना बड़ा परबचन क्यों? क्योंकि वड़ा पाव डिजर्व करता है और चूंकि इसका ईजाद मुंबई में हुआ है तो मुंबई और वड़ा पाव एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। इस बात पर अब वैश्विक स्तर पर भी मुहर भी लग गई है।
दुनियाभर के १७,०७३ शहरों में ४,७७,२८७ खाने के शौकीनों द्वारा रिकॉर्ड किए गए १५,४७८ व्यंजनों के साथ अपना एकाधिकार साबित मामूली बात नहीं है, बल्कि विश्व प्रसिद्ध फूड एंडट्रैवल गाइड में टेस्ट एटलस के पुरस्कार शीर्ष १०० शहरों की फेहरिस्त में रोम (६), पेरिस ७, वियना (८) जैसे शहरों को पछाड़ते हुए मुंबई और वड़ा पाव ४.२ स्कोर के साथ पांचवें स्थान पर रहे हैं। इस फेहरिस्त में छह भारतीय शहर अमृतसर (४३), दिल्ली (४५), नई दिल्ली (४५), हैदराबाद (५०), कोलकाता (७१) और चेन्नई (७५) भी शामिल हैं। इस रिकॉर्ड से पता चलता है कि भारतीय व्यंजन विश्व स्तर पर बारहवें स्थान पर हैं।
सोचिए ऐसा कौन सा खाद्य पदार्थ है, जो दिन में कभी भी किसी भी समय खाया जा सकता है? बेशक वड़ा पाव आपके दिमाग में फ्लैश किया होगा! दुनिया में ऐसे बहुत कम फूड हैं, जिन्हें दिन के किसी भी समय खाया जा सकता है। कहीं भी आसानी से उपलब्ध हैं और खासतौर पर किफायती वड़ा पाव न केवल जीभ के स्वाद को बल्कि पेट की क्षुधा को भी शांत करता है। मुंबई में कई लोग नाश्ते से लेकर रात के खाने तक वड़ा पाव खाते हैं। अगर आप मुंबई में है तो आप बेशक इस बात से वाकिफ जरूर होंगे। क्या गरम-गरम वड़ा पाव खाने से आप इनकार कर सकते हैं? बीते दिनों में वड़ा पाव के कंपटीशन में बहुत सारे विदेशी फूड ताल ठोके खडे हैं, लेकिन अपना देसी हीरो तो हीरो ही होता है। मुंबई तो छोड़िए सबको पछाड़ते हुए दुनियाभर में छा गया। अपना मुंबई का वड़ापाव इसीलिए तो हर साल २३ अगस्त को ‘वड़ा पाव दिवस’ मनाया जाता है। अब देखिए वड़ा पाव में हमने काफी बात कर ली है। हमारे स्वाद तंत्र और तंतु बार-बार पुकार- पुकार कर कह रहे हैं वड़ा पाव, वड़ा पाव..वड़ा पाव… अब हम मजबूर हैं हम चले वड़ा पाव खाने… आपकी जुबां पानिया गई हो तो खाइए वड़ा पाव।

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