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झांकी : एक भाषण चुनाव के नाम

अजय भट्टाचार्य

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक के सबसे लंबे भाषण (९८ मिनट) का रिकॉर्ड में कई बड़े एलान किए। वन नेशन वन इलेक्शन से लेकर समान नागरिक सहिता (यूसीसी) पर मोदी ने खुलकर बात की। लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी का भाषण देश से ज्यादा भाजपा के लिए आने वाले चुनावों का एजेंडा सेट करता नजर आता है। हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में पीएम मोदी की स्पीच का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। इस भाषण में मोदी ने महिलाओं, युवाओं, किसानों और गरीबों को ‘सबसे बड़ी जातियां’ मानने की बात दोहराई, जो लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने दिसंबर २०२३ में कही थीं और इन चारों के उत्थान से देश का विकास होगा। प्रधानमंत्री ने ७८वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में गुरुवार को देश के लिए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता के बारे में बात की और कहा कि मौजूदा संहिता ‘सांप्रदायिक’ और ‘भेदभावपूर्ण’ है और अब ‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता’ का समय आ गया है। यह पहली बार है, जब मोदी ने पिछले ११ वर्षों में यूसीसी मुद्दे को संबोधित किया है। हालांकि, यह १९८९ से भाजपा के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा रहा है। मोदी के भाषण में कई आदर्शवादी और नैतिकतावादी चीजें सुनने को मिली, जिससे सभी सहमत होंगे, मगर उनके भाषण में राजनीति की भी झलक देखने को मिली। जब मोदी ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत का जिक्र किया तब हिमंत बिस्वा सरमा, सुवेंदु अधिकारी, अजीत पवार, हसन मुशरिफ, अशोक चौहान और प्रफुल्ल पटेल जैसे चेहरे याद आ गए और जब उन्होंने परिवारवाद पर ज्ञान की वर्षा की तब अनुप्रिया पटेल, चिराग पासवान, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे तमाम चेहरे भी याद आना स्वाभाविक है। इन मुद्दों को देखने के लिए भाजपा और प्रधानमंत्री के पास दो अलग-अलग चश्मे हैं, जिनमें विपक्ष को देखने का नजरिया अलग और खुद की मंडली को देखने का नजरिया अलग है।

बदले-बदले सहनी
बिहार में मुकेश सहनी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदल कर माहौल गरमा दिया है। यहां तक तो ठीक था, लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने मुकेश सहनी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सबका स्वागत है। बिहार की राजनीति में गर्मी आ गई। इस बीच मुकेश सहनी ने एलान किया है कि बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी अति पिछड़ों को ३३ प्रतिशत टिकट देगी। केंद्र की सत्ता में बैठी नीतीश-नायडू पर निर्भर मोदी ३.० सरकार पूरे देश में हर घर तिरंगा अभियान चला रही है। इस बीच मुकेश सहनी ने सोशल मीडिया पर अपनी डीपी बदली है। मुकेश सहनी ने प्रोफाइल फोटो की जगह अपनी डीपी में तिरंगा लगाया है। इसके बाद से ही यह अटकलें लगाई जानें लगी कि मुकेश सहनी एनडीए में लौटने की तैयारी कर रहे हैं। मुकेश सहनी को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हुआ तो बिहार सरकार में जदयू कोटे से मंत्री जमा खान ने कहा कि आएंगे तो उनका स्वागत है। डीपी बदलने से माना जा रहा है कि मुकेश सहनी ने भाजपा के अभियान को अपना समर्थन दिया है। १६ जुलाई को मुकेश सहनी के पिता की हत्या हो गई। उसके बाद कई नेता मुकेश सहनी के घर पहुंचे। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव श्राद्ध कर्म में शामिल हुए। तेजस्वी यादव मुकेश सहनी से मिलने उनके पटना स्थित आवास पहुंचे, लेकिन पैतृक आवास नहीं गए। उधर राज्य भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा समेत प्रदेश भर के भाजपा नेता मुकेश सहनी के घर पहुंचे। प्रधानमंत्री मोदी और जेपी नड्डा ने मुकेश सहनी को पत्र लिखकर सांत्वना दी। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नीतीश, जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान के साथ अति पिछड़ी और दलित जातियों का एक मजबूत समीकरण बनाया और उत्तर प्रदेश की तुलना में बिहार में बेहतर प्रदर्शन किया। बिहार में मुकेश सहनी की वीआईपी ही एक मात्र ऐसी पार्टी हैं, जिसके पास वोटबैंक तो है, लेकिन उनके पास न तो विधायक हैं और न ही सांसद। सहनी की जाति का वोट ५ प्रतिशत के करीब है और वह ४० से ५० सीटों पर प्रभावी है। यही कारण है कि हर कोई मुकेश सहनी को अपने साथ रखना चाहता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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