अजय भट्टाचार्य
लगता है दिल्लीशाही उत्तर प्रदेश में लोकसभा की हार को पचा नहीं पा रही है और सीधे-सीधे कोई एक्शन/प्रतिक्रिया से बचते हुए बाबाजी को घेरने की रणनीति पर लग गई है। केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल के कंधे पर बंदूक रखकर बाबा पर पहला निशाना साधा गया है। अनुप्रिया ने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार पर सवाल उठाते हुए योगी को एक पत्र लिखा है और उस पत्र में कहा है, प्रदेश सरकार की साक्षात्कार वाली नियुक्तियों में ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों को यह कहकर छांट दिया जाता है कि वे योग्य नहीं हैं और बाद में इन पदों को अनारक्षित घोषित कर दिया जाता है।’ वैसे उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में यह कोई नई बात नहीं है। परचा लीक के बाद अगर सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश में होती है तो यही कि फलाने विश्वविद्यालय या विद्यालय में कोई भी रिजर्व सीट उपयुक्त न मिलने यानी नॉट फाउंड सुटेबल कर दी गई यानी उस सीट के लिए आरक्षित वर्ग का कोई भी अभ्यर्थी मिला ही नहीं और बाद में उसे अनारक्षित करके सामान्य वर्ग में लाकर भर दिया जाता है। यह उच्च शिक्षा वाली सीटों में होने वाले खेल का फॉर्मूला अब नौकरियों में भी अजमाया जाने लगा है। कम से कम अनुप्रिया की चिट्ठी से तो यही निष्कर्ष निकलता है। जानकार कहते हैं कि साक्षात्कार वाली नियुक्तियों की अगर ढंग से जांच कराई जाए तो बहुत बड़ा घोटाला सामने आ सकता है। बहरहाल, २०१४ से अब तक अनुप्रिया पटेल राजग के साथ ही हैं और उन्होंने कभी भी इस तरह से प्रदेश सरकार पर सवाल नहीं उठाया है, उनका पहली बार इस तरह सवाल उठाना चौंकाता है। लखनऊ के दारुलसफा की कानाफूसियों पर भरोसा किया जाए तो भाजपा वही सीटें हारी है, जिनकी टिकटें वाराणसी आधारित जनसत्ता के एक पूर्व पत्रकार के जरिए बेचीं गई थीं। कहा जा रहा है बाबाजी ने इन उम्मीदवारों के प्रति नाराजगी भी जताई थी, मगर पार्टी अनुशासन के चलते बाबाजी चुप करा दिए गए। पूर्व पत्रकार छोटे सुल्तान का करीबी बताया जाता है। अनुप्रिया के चिट्ठी बम की ड्राफ्टिंग में पत्रकार हाथ या पैर शामिल है कि नहीं, बाबाजी यही पता करने की कोशिश कर रहे हैं।
कांग्रेस बनाम बिकाऊ
हिमाचल प्रदेश की तीन विधानसभा सीटों देहरा, नालागढ़ और हमीरपुर में पर १० जुलाई को उपचुनाव होने वाले हैं। निर्दलीय विधायक होशियार सिंह ने भाजपा में शामिल होने के बाद देहरा सीट से इस्तीफा दिया था और अब भाजपा ने उन्हें ही उम्मीदवार बनाया है, जबकि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की पत्नी कमलेश ठाकुर कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में हैं। क्षेत्र में यह चर्चा आम है कि निर्दलीय विधायक होशियार सिंह ने कमल खरीदा है और बिका हुआ कमल कभी नहीं खिलता। भाजपा के ईमानदार कार्यकर्ता भी बिकाऊ पूर्व विधायक होशियार सिंह को टिकट मिलने से खुश नहीं हैं। देहरा का उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच नहीं, बल्कि कांग्रेस बनाम बिकाऊ विधायक हो चला है। १५ महीने पहले देहरा की जनता ने पांच साल के लिए जिसे विधायक चुनकर भेजा था, तब जनता ने वोट देते समय नहीं सोचा था कि सरकार कांग्रेस की बनेगी या भाजपा की। जनता ने आजाद विधायक चुनकर भेजा था। आजाद विधायक किसी भी सरकार से काम करवा सकते थे, लेकिन उन्होंने कांग्रेस सरकार बनने के बाद अपने काम को प्राथमिकता दी। जनता के कोई काम नहीं करवाए। आजाद विधायक १४ महीने में ही बिक गया। विधानसभा अध्यक्ष ने इस्तीफे का कारण पूछने के साथ बिकाऊ विधायक से कहा भी कि अगर आपके काम नहीं हो रहे थे तो भाजपा के साथ बैठ जाते। निर्दलीय विधायक यही कहते रहे कि इस्तीफा मंजूर कर लो। बिकाऊ विधायक अब इस्तीफा देकर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। गलती से जीत भी गए तो उनके काम वैâसे होंगे, क्योंकि प्रदेश में साढ़े तीन साल तक कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)