अजय भट्टाचार्य
लोकसभा में जाति पूछने के प्रश्न पर छिड़े घमासान के बीच पूर्व मंत्री व वर्तमान में भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने खुद को फौजी प्रचारित करना शुरू किया, जिसे पार्टी की आईटी सेल ने बढ़-चढ़कर प्रचारित भी किया और कर रही है। जबकि वास्तविकता में सच इससे कोसों दूर है। जिस तरह कई विश्वविद्यालय गणमान्य लोगों को उनके शैक्षणिक, सामाजिक व सांस्कृतिक-साहित्यिक योगदान को मद्देनजर रखकर डी.लिट से अलंकृत करते हैं, उसी तरह सेना के एक अंग प्रादेशिक सेना समाज में विशिष्ट योगदान देनेवाले लोगों को मानद पद प्रदान करती है, जिसका मकसद युवाओं में सेना के प्रति आकर्षण व सम्मान उत्पन्न करना होता है। २०११ में भारतीय टीम के पूर्व कप्तान एमएस धोनी को सेना के मानद लेफ्टिनेंट कर्नल पद से विभूषित किया गया था। धोनी ने कश्मीर में भारतीय सेना के साथ दो हफ्ते की अपनी ट्रेनिंग भी पूरी की थी। वे पैराशूट रेजीमेंट की १०६ पैरा टेरिटोरियल आर्मी बटालियन का हिस्सा हैं, जो कि विक्टर फोर्स का हिस्सा है। पैरा कमांडो की जिस बटालियन में धोनी की तैनाती हुई थी वह मिले-जुले सैनिकों की यूनिट है। वहां देश के हर इलाके से आए करीब ७०० सैनिक हैं। इनमें गोरखा, सिख, राजपूत, जाट जैसी सभी रेजीमेंट के सैनिक शामिल हैं। ठीक इसी तरह २०१६ में अनुराग ठाकुर को टेरिटोरियल आर्मी यानी प्रादेशिक सेना में लेफ्टिनेंट बनाया गया था। २०१९ में उनको पदोन्नत कर वैâप्टन बनाकर यह मानद उपाधि दी गई। वह पहले ऐसे सेवारत सांसद और मंत्री बने थे, जिन्होंने प्रादेशिक सेना में वैâप्टन की उपाधि हासिल की है। दरअसल, सेना के इन मानद पदों पर आसीन होने वाले लोग सेना के किसी भी सशस्त्र सैन्य अभियान में शामिल नहीं किए जाते। मतलब साफ है कि अनुराग ठाकुर पेशेवर राजनेता हैं, न कि सेना के अफसर। वैसे भी किसी भी सरकारी नौकरी विशेषकर सेना में रहते हुए कोई भी व्यक्ति लोकसभा तो दूर, पंचायत का चुनाव तक नहीं लड़ सकता। अनुराग ठाकुर खुद को सैनिक कहकर सेना का अपमान कर रहे हैं।
समायोजन की राजनीति
कर्नाटक में कथित मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुदा) भूआवंटन घोटाले के खिलाफ भाजपा द्वारा प्रस्तावित बंगलुरु से मैसूर तक पदयात्रा में शामिल न होने की घोषणा करनेवाले सहयोगी जनता दल सेकुलर नेता व केंद्रीय मंत्री कुमारस्वामी भी अब इस विरोध यात्रा में शामिल हो चुके हैं। इस विरोध मार्च का उद्देश्य कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को घेरना है। संयोग से कुमारस्वामी, जी टी देवेगौड़ा, सा रा महेश और अन्य सहित कई जेडीएस नेताओं पर कांग्रेस ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा भूआवंटन से लाभ उठाने का आरोप लगाया है, वही आरोप सिद्धारमैया की पत्नी के खिलाफ भी लगाए गए हैं। दूसरी तरफ सिद्धारमैया के खिलाफ इस पदयात्रा को लेकर भाजपा को अपने ही कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, कई लोग भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बी वाई विजयेंद्र से नाखुश हैं। विजयेंद्र के कड़े आलोचक और सिद्धारमैया के प्रति नरम रुख रखनेवाले भाजपा विधायक बसनगौड़ा पाटील यतनाल ने योजनाबद्ध पदयात्रा को भाजपा के राज्य नेतृत्व के ‘छिपे हुए एजेंडे’ का हिस्सा बताया है, जिसका उद्देश्य सिद्धारमैया की जगह कांग्रेस के उपमुख्यमंत्री शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाना है। पूर्व केंद्रीय मंत्री यतनाल सिद्धारमैया के पूर्व सहयोगी और शिवकुमार तथा विजयेंद्र के कट्टर प्रतिद्वंद्वी पूर्व भाजपा मंत्री रमेश जारकीहोली ने भी दावा किया है कि उन्होंने कांग्रेस सरकार के तहत कथित एसटी निगम निधि धोखाधड़ी में बल्लारी (एक आदिवासी बहुल क्षेत्र) और बंगलुरु के बीच अपने अलग अभियान की योजना बनाई है। यतनाल और जारकीहोली दोनों ही कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र के उदय से नाखुश हैं और उनके समर्थक बंगलुरु से मैसूर पदयात्रा को उनकी छवि को और बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखते हैं। सार यह है कि यह पदयात्रा ‘समायोजन की राजनीति’ के आरोप के घेरे में है, क्योंकि सिद्धारमैया, येदियुरप्पा, शिवकुमार, कुमारस्वामी और उन जैसे पुराने नेताओं पर अक्सर व्यक्तिगत या पारिवारिक संकट की स्थिति में एक-दूसरे के बचाव में आगे आने का आरोप लगाया जाता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)