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झांकी : दिल्लीशाही पर बाबाजी भारी

झांकी
अजय भट्टाचार्य

उत्तर प्रदेश की अफसरशाही में हुए बड़े बदलाव में इस बार बाबाजी की ही चली। मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्रा का कार्यकाल खत्म होने पर उनकी जगह सूबे की सरकार ने १९८८ बैच के आईएएस अफसर मनोज कुमार सिंह को नया मुख्य सचिव नियुक्त किया है। खास बात यह है कि मनोज कुमार सिंह मुख्यमंत्री योगी के पसंदीदा अफसर माने जाते हैं। इससे पहले मुख्य सचिव के लिए उनका नाम दो बार भेजा गया था, लेकिन केंद्र ने उनके नाम पर सहमति नहीं दी थी। मूल रूप से झारखंड के रहने वाले मनोज कुमार सिंह उप्र के सबसे ईमानदार अफसरों में से एक हैं। उत्तर प्रदेश की अफसरशाही की सबसे बड़ी गद्दी से विदा हुए दुर्गाशंकर मिश्रा को अब तक तीन बार सेवा विस्तार मिल चुका है। इससे पहले वे दिसंबर २०२१ में सेवानिवृत होने जा रहे थे, लेकिन मोदी सरकार ने उनको सेवा विस्तार देते हुए उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बनाया था। इसके बाद राज्य में २०२२ के विधानसभा चुनाव हुए। लगातार दूसरी बार योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। इसके बाद दिसंबर २०२२ में एक बार फिर दुर्गाप्रसाद को सेवा विस्तार देकर उत्त्तर प्रदेश पर थोप दिया गया। दिसंबर २०२३ में उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा था तो एक बार फिर उन्हें लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ६ महीने का सेवा विस्तार मिला था। इस बार भी दिल्लीशाही अपनी पसंद का प्यादा लखनऊ भेजना चाहती थी, लेकिन बाबाजी अड़ गए। नतीजा यह है कि अब बाबाजी की पसंद के अफसर मनोज कुमार सिंह के हाथ में उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक कमान है। आईएएस अफसर मनोज कुमार सिंह की शासन की योजनाओं को जमीन पर उतारने में काफी अहम भूमिका रही है। मनोज कुमार सिंह इससे पहले यूपीडा, आईआईडीसी और पंचायती राज विभाग में बतौर सचिव काम कर चुके हैं। वे १९९० में सबसे पहले यूपी में मैनपुरी के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के तौर तैनात हुए थे।

राज्यसभा में खेला की दस्तक
लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पराजित होने वाली आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) और ओडिशा की बीजू जनता दल (बीजद) को राज्यसभा में अपनी ताकत के कारण कानून बनाने के मामले में अभी भी कुछ बोलने का अधिकार होगा। तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) द्वारा सत्ता से बाहर की गई वाईएसआरसीपी के पास ११ राज्यसभा सांसद हैं, जबकि बीजद, जो ओडिशा में भाजपा से हार गई, के पास संसद के ऊपरी सदन में नौ सांसद हैं। वर्तमान में २४५ सदस्यीय राज्यसभा में ११७ राजग सांसद, ८० इंडिया ब्लॉक सांसद और ३३ अन्य हैं। निर्वाचित सदस्यों के लिए १० और नामित सदस्यों के लिए पांच स्थान खाली हैं। १० निर्वाचित सदस्य रिक्तियों में से, जिसके लिए चुनाव की तारीख की घोषणा अभी बाकी है, भाजपा के पास सात, कांग्रेस के पास दो और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पास एक है। वर्तमान में भाजपा के पास इनमें से कम से कम छह सीटें जीतने की ताकत है। ऐसे परिदृश्य में राजग को कानून पारित करने के लिए दूसरों के समर्थन की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन वाईएसआरसीपी और बीजद का समर्थन इसे एक आरामदायक स्थिति में रखेगा। केंद्रीय सत्ता के पिछले कार्यकाल में इन दोनों ही दलों ने लोकसभा और राज्यसभा में सत्ता का साथ दिया था। अब सबसे ज्यादा डर वाईएसआरसीपी को लग रहा है। कारण यह है कि मोदी युग के पहले कार्यकाल में जब तेदेपा कमजोर थी, तब २०१८ में उसके सभी राज्यसभा सांसदों को भाजपा डकार गई थी। इस बार वही कहानी दोहराई गई तो जगनमोहन रेड्डी तेदेपा की तरह राज्य सभा में भी पैदल हो सकते हैं। इधर बीजद ने अपने राज्यसभा सांसदों से विपक्ष की भूमिका निभाने की ताकीद भले की हो, मगर टूट-फूट का डर उसे भी है। उच्च सदन में कभी भी बड़ा खेला हो सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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