मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी : भानुबेन का गुस्सा

झांकी : भानुबेन का गुस्सा

अजय भट्टाचार्य
गुजरात सरकार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री और राज्य की एकमात्र महिला मंत्री भानुबेन बाबरिया अपने मृदुभाषी स्वभाव के लिए जानी जाती हैं। हालांकि, पिछले हफ्ते उनके विभाग के अधिकारियों ने उनका गुस्सा देखा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति के संबंध में विभाग के ग्रुप में गलत संदेश पोस्ट किया। संदेश में कहा गया था कि सरकार ने राशन कार्ड और ई-केवाईसी सत्यापन की आवश्यकता को वापस ले लिया है, जिस पर विरोध हुआ। एक उत्साही अधिकारी ने यह गलत सूचना पोस्ट की और एक अति उत्साही भाजपा विधायक पंकज देसाई ने इसे ‘एक्स’ पर पोस्ट कर दिया। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल का फोन आने के बाद मंत्री को इस गलती का पता चला। मंत्री और मुख्यमंत्री दोनों ने जनता के बीच भ्रम पैदा करने के लिए अधिकारी और देसाई को फटकार लगाई। भानुबेन ने स्पष्ट रूप से परेशान होकर अधिकारी का तबादला कर दिया। उन्होंने दृढ़ता से कहा, ‘इससे मेरी और विभाग की छवि प्रभावित हुई है।’
रघुबरदास की वापसी!
उड़ीसा का राज्यपाल बनने के बाद भी झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हिलोरें मार रही है। एक साल पहले राजभवन में प्राण-प्रतिष्ठित हुए रघुबर दास ने झारखंड विधानसभा चुनावों के लिए राजभवन को ‘युद्ध कक्ष’ में बदल दिया है। सूबे की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजद का आरोप है कि राज्यपाल के कार्यालय का इस्तेमाल पड़ोसी राज्य में राजनीतिक पैंतरेबाजी के लिए किया जा रहा है। ये आरोप असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और पूर्व उपराष्ट्रपति एवं भाजपा के दिग्गज नेता एम. वेंवैâया नायडू द्वारा सितंबर के अंत में राजभवन की यात्रा के मद्देनजर सामने आए हैं। दास झारखंड के पहले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री रहे हैं, जिन्होंने २०१४ से २०१९ तक इस पद पर कार्य किया है। उन्होंने पिछले अक्टूबर में ओडिशा के राज्यपाल के रूप में गणेशी लाल का स्थान लिया था। हालांकि, राजभवन ने बीजद के आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन भाजपा ने राजभवन को राजनीति में घसीटने से परहेज करने का आग्रह किया। इससे पहले राजभवन के एक कर्मचारी पर उनके बेटे द्वारा कथित रूप से हमला करने के मामले में भी दास निशाने पर थे। ऐसी ‘अटकलें’ हैं कि दास चुनावी राजनीति में लौट सकते हैं और आदिवासी बहुल झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

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