मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी  : भाजपा की उलझन

झांकी  : भाजपा की उलझन

अजय भट्टाचार्य

लोकसभा चुनाव के झटके के बाद भाजपा की आगामी चार विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति को लेकर उलझनें बढ़ गई हैं। पार्टी आक्रामक और संतुलित चुनाव अभियान को लेकर पसोपेश में है। एक वर्ग का मानना है कि इस समय विपक्ष के दबाव में आने की बजाय पार्टी को पूर्व की तरह अपना आक्रामक अभियान ही जारी रखना चाहिए। हालांकि, इस रणनीति से नुकसान होने की भी आशंका है, क्योंकि विपक्षी इंडिया गठबंधन के दलों में विरोधाभास के बाबजूद भाजपा विरोधी सुर एक जैसे हैं। भाजपा ने आगामी चार राज्यों हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के लिए अपने प्रभारी काफी पहले तैनात कर दिए थे। इन नेताओं ने राज्यों में जाकर शुरुआती दौर की बैठक की, जिसकी शुरुआती रिपोर्ट बहुत अच्छी नहीं है। सभी राज्यों में संगठन को लेकर दिक्कतें बढ़ी हुई हैं। महाराष्ट्र में तो भाजपा का अपना गठबंधन, विपक्षी गठबंधन के सामने लोकसभा चुनाव में भी काफी कमजोर पड़ा था। अब विधानसभा चुनाव में भी यही समस्या सामने आ रही है। ऐसे में पार्टी के लिए अपने गठबंधन के मुख्यमंत्री के चेहरे को जनता के सामने पेश करने में भी दिक्कत आ रही है, क्योंकि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में जाने पर एनडीए को बहुत बड़ी सफलता मिलने की संभावना नहीं है। भाजपा के भीतर भी उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को आगे रखने की मांग बढ़ रही है। अजीत पवार पर फिलहाल भरोसा ही नहीं किया जा सकता है। इन सब के साथ भाजपा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मदद की भी जरूरत है। भाजपा और संघ नेतृत्व के बीच समन्वय बैठक भी बुलाई जा सकती है, ताकि मतभेद समाप्त कर संघ का पूरा सहयोग हासिल किया जा सके। जम्मू-कश्मीर में अभी यह तय नहीं है कि पार्टी घाटी की सीटों पर किस तरह चुनाव लड़ेगी। अपने उम्मीदवार उतारेगी या कुछ निर्दलीयों को समर्थन देगी। झारखंड में भाजपा के बड़े नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा के बीच तनाव की खबरें केंद्रीय नेतृत्व को परेशान करती रहती हैं। हरियाणा में मुख्यमंत्री बदलने के सामाजिक समीकरण सुधरने की बजाय बिगड़ने की आशंका है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली मजबूती से भी भाजपा के सामाजिक समीकरण के प्रभावित होने की आशंका है। खासकर, ब्राह्मण और दलित समुदाय को लेकर पार्टी सशंकित है। ये कांग्रेस का साथ दे सकते हैं।
डरे हुए नीतीश
केंद्रीय बजट में आंध्र प्रदेश और बिहार पर सरकार कुछ खास मेहरबान रही। दोनों राज्यों को भारी भरकम रकम मिली। दूसरी तरफ जदयू और तेलुगू देशम पार्टी ने इसे क्रांतिकारी बजट बताया है। नीतीश कुमार पहले तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन करने को आमादा थे, लेकिन अब इस पैकेज में ही खुश हैं। नीतीश की इस चुप्पी के पीछे राज यह है कि वे अपने करीबी अफसर पर लगातार पड़ रहे ईडी के छापे से दबाव में हैं। अपने करीबी अधिकारियों पर जांच एजेंसी के शिकंजे को देखते हुए नीतीश खुद डर गए हैं और इस वजह से अब वे विशेष राज्य की दर्जे वाली मांग से पीछे हट गए। जांच की आंच खुद तक न आए इसलिए अब उन्होंने पटर-पटर करने की बजाय चुप्पी साध ली है। इन दिनों ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव संजीव हंस के ठिकानों पर ईडी ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही है। संजीव हंस नीतीश के करीबी बताए जा रहे हैं। निर्मला सीतारमण ने बजट में राजग के दो बड़े सहयोगियों नीतीश और नायडू को साधने की कोशिश की है। बिहार को भले ही विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला, लेकिन बजट में सरकार मेहरबान दिखी। निर्मला सीतारमण ने एलान किया है कि काशी की तर्ज पर बिहार का महाबोधि मंदिर भी चमकेगा। राज्य में विष्णुपद कॉरिडोर का विकास किया जाएगा। सड़क प्रोजेक्ट के लिए २६ हजार करोड़ रुपए का पैकेज मिलेगा। चार नए एक्सप्रेस-वे बनेंगे, जिसमें पटना-पूर्णिया, वैशाली-बोधगया, पटना-पुणे और बक्सर-भागलपुर शामिल है। बक्सर में गंगा नदी पर दो लेन के अलावा अतिरिक्त पुल भी बनाया जाएगा। सवाल यह है कि यह पुल भी उद्घाटन के बाद गंगा में डुबकी न लगा दे!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

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