अजय भट्टाचार्य
चंडीगढ़ लोकसभा सीट हार के बाद भाजपा अपने घावों को सहला रही है। कांग्रेस के मनीष तिवारी की जीत से चंडीगढ़ नगर निगम भी भाजपा की पकड़ से खिसक गया है। लोकसभा चुनाव से पहले ३६ सदस्यीय सदन में सांसद किरण खेर के अलावा भाजपा के १४, आम आदमी पार्टी (आप) के १३, कांग्रेस के सात और शिरोमणि अकाली दल के एक पार्षद थे। भाजपा के लिए, इसका मतलब था, १६ वोट पक्के थे-१४ उसके पार्षदों से, एक उसके सांसद से और एक तत्कालीन अकाली दल पार्षद हरदीप सिंह से, क्योंकि दोनों दल उस समय सहयोगी थे। अब तिवारी के पदेन सदस्य के रूप में सदन में प्रवेश के साथ आप और कांग्रेस के कुल वोट भाजपा से अधिक हो गए हैं। हरदीप सिंह के पाला बदलकर आप में शामिल होने के साथ नगर निगम सदन में पार्टी की ताकत अब १४ हो गई है। कांग्रेस के सात पार्षद और तिवारी के सांसद होने के कारण, आप-कांग्रेस गठबंधन अब ३६ में से २२ वोटों पर भरोसा कर सकता है, जिसका अर्थ है कि अब महत्वपूर्ण एजेंडा पारित करने में उसका पहला पैâसला होगा। आप-कांग्रेस गठबंधन, जो अक्सर बजट बैठक में या मुफ्त पानी या पार्विंâग से संबंधित एजेंडा पारित करने के दौरान अपना रास्ता निकालने के लिए संघर्ष करता था, अब महापौर, आप के कुलदीप कुमार और तिवारी के समर्थन पर भरोसा कर सकता है। कुमार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की संभावना तलाशने की भाजपा की योजना इस अनुमान पर भी विफल हो गई है कि गठबंधन ‘लोकसभा चुनावों के बाद टूट जाएगा’। जनवरी में होने वाले महापौर चुनावों में भी भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
४० साल का सूखा खत्म
इलाहाबाद लोकसभा सीट पर कांग्रेस की जीत ने इस निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी के लिए ४० साल का सूखा खत्म कर दिया है। पिछली बार जब कांग्रेस ने यह सीट जीती थी, तब उसके सांसद कोई और नहीं, बल्कि मेगास्टार अमिताभ बच्चन थे। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल ने ८० में से ४३ सीटें जीतकर एक शानदार जीत दर्ज की, कांग्रेस के उज्ज्वल रमन सिंह ने भाजपा के नीरज त्रिपाठी को ५८,००० से अधिक मतों से हराया। उज्ज्वल रमन सिंह समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद रेवती रमन सिंह के बेटे हैं। समाजवादी पार्टी के साथ रहते हुए उज्ज्वल रमन सिंह पहले विधायक चुने जा चुके हैं और २००४ से २००७ के बीच मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार में भी काम कर चुके हैं। इस साल की शुरुआत में वह जब कांग्रेस में शामिल हुए थे, तभी स्पष्ट हो गया कि इलाहाबाद लोकसभा सीट विपक्षी दल में सीट बंटवारे के समझौते के तहत कांग्रेस को मिलेगी। प्रतिष्ठित इलाहाबाद सीट से चुने गए राजनीतिक दिग्गजों में दो पूर्व प्रधानमंत्री-लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह और भाजपा के दिग्गज मुरली मनोहर जोशी शामिल हैं। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए १९८४ के चुनाव में अमिताभ बच्चन ने अपने गृह नगर से चुनाव लड़ा और ६८ प्रतिशत से अधिक वोट पाकर भारी जीत हासिल की। १९८४ के चुनाव में कांग्रेस ने ४१४ लोकसभा सीटें जीतीं। अपने चुनाव के तीन साल बाद बच्चन ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और उपचुनाव में वीपी सिंह चुने गए। पिछले चुनाव में कांग्रेस के साथ रहीं रीता बहुगुणा जोशी ने भाजपा के टिकट पर इलाहाबाद से जीत हासिल की थी।
हिमंत बिदके
प्रधानमंत्री की पार्टी भले ही ४०० सीटें जीत न पाई हो, मगर इसका मतलब यह भी नहीं कि उनकी पार्टी का विधायक अपने प्रधानमंत्री को बधाई न देकर कांग्रेस के विजयी स्थानीय सांसद को बधाई दे! इसे सरासर गलती नहीं तो और क्या कहेंगे? असम की जोरहाट लोकसभा सीट कांग्रेस के गौरव गोगोई ने जीती है। उनकी इस जीत पर कुछ एक भाजपा विधायक ने बधाई दी तो असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा बिदक गए। जब गोगोई ने मौजूदा भाजपा सांसद तपन कुमार गोगोई को हराकर १.४ लाख वोटों के अंतर से सीट जीती तो भाजपा विधायक मृणाल सैकिया ने कहा, ‘गौरव गोगोई को उनकी अद्भुत जीत के लिए विशेष बधाई। जोरहाट में यह परिणाम कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है। परिणाम ने साबित कर दिया कि पैसा, बड़ा प्रचार, नेताओं का ओवरडोज और अभिमानी भाषण हमेशा चुनाव जीतने में मदद नहीं करते हैं।’ एक स्थानीय वेबसाइट के अनुसार, हिमंत ने कहा, `उनके इस कदम के कारण, मेरा मानना है कि अब वह ज्यादा समय तक भाजपा के सदस्य नहीं रहेंगे।’