मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी:भाषण लेखक पर संकट

झांकी:भाषण लेखक पर संकट

देश-विदेश में प्रधानमंत्री के मुखारविंद से गलत जानकारी दिए जाने के बाद हुई किरकिरी ने भाजपा के कान खड़े कर दिए हैं। हर साल एक आईआईएम और हर हफ्ते एक यूनिवर्सिटी बनाने को लेकर अभी सवाल खत्म भी नहीं हुए थे कि संसद के निचले सदन में मिजोरम पर १९६६ में बमबारी और कच्चाथीव द्वीप पर अर्धसत्य बोलकर प्रधानमंत्री फिर फंस गए। १९७४ में भारत ने यह द्वीप श्रीलंका को इस शर्त के साथ दिया की भारतीय मछुआरे इसका उपयोग पहले की तरह करते रहेंगे। इंदिरा गांधी को घेरने के प्रयास में मोदी भूल गए कि २०१५ में बांग्लादेश में १११ भारतीय गांव दे दिए, जबकि बदले में बांग्लादेश ने ५१ गांव भारत को सौंपे। इस समझौते के तहत भारत की १७,१६० एकड़ जमीन के बदले में हमें ७,११० एकड़ जमीन ही मिली। जबकि, २०११ में इसी तरह का एक समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच हुआ था,जिसके तहत भारत को २०७७.०३ एकड़ जमीन के बदले बांग्लादेश से २२६७.६२ एकड़ जमीन मिलनी थी। तब भाजपा के विरोध के चलते यह समझौता नहीं हो सका था। ताजा बयान बिहार के दरभंगा में एम्स को लेकर है, जो अभी बना भी नहीं है। अंदरखाने की खबर यह है कि भाजपा आलाकमान प्रधानमंत्री के भाषण लिखनेवाले की क्लास लगाने में लगा है।
जिम्मेदारी से भागती पुलिस
कौशांबी जिले की सैनी कोतवाली पुलिस को मनुष्य और कुत्ते के बच्चे में अंतर समझ नहीं आया। क्षेत्र के त्रिलोकपुर गांव के सरकारी स्कूल के पास बने नाले के अंदर नवजात का कई दिन पुराने शव से बदबू उठ रही थी। सूचना पाकर मौके पर पहुंचे दारोगा किशन बिंद ने नवजात के शव को कुत्ते के बच्चे का शव कहकर उस पर मिट्टी डालकर दफनाने का निर्देश वहां मौजूद लोगों को दे दिया और मौके से चले गए। लेकिन लोगों ने पुलिस की बात नहीं मानी और ग्रामीणों ने विरोध किया। मौके पर मौजूद ग्रामीणों ने मामले की जानकारी मीडियाकर्मियों को दे दी, जिस पर कई मीडियाकर्मी मौके पर पहुंच गए। मीडियाकर्मियों को आते देख सिपाही संग दरोगा फिर वापस मौके पर पहुंचे। मीडियाकर्मियों ने मामले की सूचना सैनी कोतवाल को दी। सैनी कोतवाल ने दारोगा से बात की और उन्हें जमकर फटकार लगाई। ग्रामीणों के विरोध और सैनी कोतवाल की फटकार के बाद सिपाही और दारोगा को नवजात के शव को कब्जे में लेना पड़ा और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। बड़ा सवाल उठता है कि कुत्ते के बच्चे के शव और नवजात के शव में मौके पर पहुंची पुलिस को फर्क समझ क्यों नहीं आया। बिना जांच-पड़ताल और तफ्तीश के इन्होंने कैसे नवजात के शव को कुत्ते के बच्चे का शव घोषित कर उस पर मिट्टी डालकर दफनाने का निर्देश लोगों को दे दिया? इन्हें कुत्ते के बच्चे और नवजात के शव में फर्क नहीं समझ में आया या फिर नवजात के मौत के गुनहगारों की खोज करने की अपनी जिम्मेदारी से दूर भागना चाहते थे।
व्यवस्था का गर्भपात
खबरिया चैनलों और अखबारों में जिस उत्तर प्रदेश के विकास की मीनारें खड़ी की जा रही हैं उसी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक महिला सड़क पर अपरिपक्व बच्चे को जन्म देती है, जिसमें बच्चे की मौत हो जाती है। यह सब उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के घर से मात्र एक किलोमीटर दूर होता है। राज्य में स्वास्थ्य विभाग की बदहाली का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है? खबर फैली तो सूबे के नायब मुखिया ब्रजेश पाठक प्रसूता को बच्चे समेत अपनी कार से लेकर झलकारी बाई अस्पताल पहुंचे, जहां जच्चा की हालत खतरे से बाहर बताई गई है। मौके पर एंबुलेंस न पहुंचने पर भी मंत्रीजी के पास एक ही जवाब था कि जांच की जाएगी और किसी को बख्शा नहीं जाएगा। जिस महिला का समय पूर्व सड़क पर प्रसव हुआ वह पहले से ही चार बच्चों की मां बताई जा रही है। पाठक ने इस परिवार की पूरी मदद करने के आश्वासन के साथ खुद नवजात शिशु के पार्थिव शरीर को बैकुंठ धाम जाकर अंतिम संस्कार कराने में मदद की। पाठक की यह दरियादिली यूं ही नहीं है। इसके पीछे आसन्न लोकसभा चुनाव हैं। जब इसी विकास मॉडल पर लगभग आठ महीने बाद महामानव और उनके गृहमंत्री वोट मांगने जाएंगे। लखनऊ की सड़क पर हुआ प्रसस उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था का गर्भपात है।
अजय भट्टाचार्य
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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