अजय भट्टाचार्य
पुडुचेरी भाजपा में खट-पट की खबरों के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री के पूर्व मुख्य प्रधान सचिव के कैलाशनाथन को पुडुचेरी का उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है। कैलाशनाथन ११ बार कार्यकाल विस्तार के बाद जून में मुख्यमंत्री कार्यालय में अपने पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्हें पीएम का बहुत करीबी माना जाता है और उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की आंख और कान कहा जाता है। पुडुचेरी के राजभवन में बैठकर वे राज्य सरकार के साथ-साथ भाजपा की अंदरूनी खींचतान पर भी नजर रख सकेंगे। यह नियुक्ति तब हुई है जब पुडुचेरी के भाजपा विधायक पीएमएल कल्याणसुंदरम ने अपनी ही सरकार को जमकर कोसा है। यहां तक कह दिया है कि यह सबसे बेकार सरकार है। बताया जा रहा है कि पुडुचेरी में अभी सियासी रूप से सब कुछ सही नहीं चल रहा है। भाजपा के अंदर ही वहां खटपट की खबरें आ रही हैं। पुडुचेरी में हुए बवाल के सिलसिले में ही कल्याणसुंदरम दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले और अमित शाह से मिलने का वक्त भी मांगा। उनकी शिकायत है कि जब भी वे सूबे के गृहमंत्री एन. नमस्सिवयम से मिलते हैं, उनको बताते हैं कि यहां कितनी परेशानियां हैं, तो वे हर बार कहते हैं कि मुख्यमंत्री से बात करेंगे। अब तो लोकसभा में भी हम सीट हार गए। अब २०२६ के लिहाज से यह स्थिति सही नहीं है। सभी विधायकों और नड्डा से मुलाकात कर उन्हें बता दिया है कि यह सरकार बिल्कुल ही बेकार है। यह खटपट सिर्फ एक नेता को लेकर नहीं है, बल्कि माना जा रहा है कि पुडुचेरी में मंत्रिमंडल में फेरबदल भी हो सकता है। इस समय राज्य में भाजपा के अंदर ही कई खेमे बन चुके हैं जो खुलकर एक दूसरे के खिलाफ बैटिंग कर रहे हैं। इस वजह से भाजपा के लिए इस राज्य में चुनौतियां खड़ी हो चुकी हैं। पार्टी ज्यादा चिंतित इसलिए भी है क्योंकि लंबे समय से यह राज्य भाजपा को राहत से ज्यादा झटके ही दे रहा है। इस समय तो कई भाजपा विधायक ने ही अपनी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप तक लगा दिए हैं। कहा गया है कि कई क्षेत्रों को पर्याप्त फंड नहीं मिल पा रहे हैं, वहां पर लोगों की मांगों को पूरा नहीं किया गया है।
गैर जाट भरोसे भाजपा
हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस अपने स्तर पर रणनीति बनाने में जुटे हैं। कांग्रेस जहां जाट और मुस्लिम वोटर्स को साधकर १० साल बाद प्रदेश में वापसी की कोशिश में जुटी है तो वहीं भाजपा जाटों की नाराजगी सामने आने के बाद अब विधानसभा चुनाव में गैर जाट और ओबीसी वोटर्स को अपने पाले में करने में जुटी है। भाजपा की रणनीति में ओबीसी, ब्राह्मण और दलित शामिल हैं। इस रणनीति के तहत ओबीसी समुदाय से आने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री भी बनाया गया था। ओपी धनखड़ की जगह पर ब्राहाण नेता मोहन लाल बड़ौली को महासचिव पद से प्रोन्नत कर नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया जाना इसी रणनीति का हिस्सा है। उनकी जगह अब दलित समुदाय के कृष्ण बेदी को महासचिव बनाया गया है। अग्निवीर योजना और एमएसपी गारंटी को लेकर किसानों के आंदोलन ने जाटों की नाराजगी की धार को और तेज किया। हरियाणा में रिवाज रहा है कि कोई भी पार्टी बिना जाटों के सरकार नहीं बना सकती। ये २०१९ के विधानसभा चुनाव में नजर भी आया। २०१४ के चुनाव में ४६ सीटें जीतकर अपने दम पर सरकार बनाने वाली भाजपा को २०१९ के विधानसभा चुनाव में मात्र ४० सीटें मिलीं। इसके बाद पार्टी ने सरकार बनाने के लिए दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी से गठबंधन किया। हरियाणा में ६२ प्रतिशत गैर जाट आबादी है। इसमें सैनी, गुर्जर, यादव और ओबीसी के ३० प्रतिशत वोट हैं। इसके अलावा दलितों की आबादी भी २० प्रतिशत हैं। जाटों के बाद सबसे बड़ी बिरादरी ब्राह्मण करीब १२ फीसदी हैं। प्रदेश में जाटों की कुल आबादी २७ प्रतिशत है, वहीं ९० में ४० विधानसभा सीटों पर इनका सीधा प्रभाव है इसके अलावा पंजाबी समुदाय का भी भाजपा को पूरा सहयोग रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)