मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी : कित्तूर कर्नाटक में खेला!

झांकी : कित्तूर कर्नाटक में खेला!

अजय भट्टाचार्य

कई शीर्ष लिंगायत नेताओं के १० मई को होनेवाले विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने या टिकट न मिलने पर भाजपा छोड़ने से कित्तूर कर्नाटक में भाजपा की संभावनाओं को चुनावों में झटका लगने की संभावना है। पहले चुनावी राजनीति छोड़ने की घोषणा करनेवाले मजबूत लिंगायत नेता व पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बाद एमएलसी लक्ष्मण सावदी ने अथानी से टिकट से वंचित होने के बाद भाजपा छोड़ दी। सूची में रामदुर्ग के विधायक महादेवप्पा यदवाड़, बादामी निर्वाचन क्षेत्र के प्रसिद्ध नेता एमके पट्टनशेट्टी और महंतेश ममदापुर और पूर्व मंत्री अप्पू पट्टनशेट्टी भी शामिल हैं। भाजपा छोड़ने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और कोप्पल की सांसद संगन्ना कराडी शामिल हैं। अपमान से विचलित हुए सावदी कांग्रेस में शामिल होकर अपने राजनीतिक करियर को लंबा खींचने की उम्मीद कर रहे हैं। कांग्रेस में उनके आने का असर कई विधानसभा क्षेत्रों में महसूस किया जाएगा, खासकर अथानी, कागवाड़, सिंदगी, बसवन बागेवाड़ी और कई अन्य लिंगायत बहुमत वाली सीटों पर। शेट्टार ने हुबली सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र से आसान जीत दर्ज की थी। भाजपा से उनके बाहर निकलने का असर धारवाड़ जिले के कुछ लिंगायत बहुल क्षेत्रों में पार्टी की संभावनाओं पर पड़ सकता है। विजयपुरा से पूर्व मंत्री अप्पू पट्टनशेट्टी और बादामी से तीन बार के पूर्व विधायक एमके पट्टनशेट्टी को लिंगायत समुदाय में उनकी लोकप्रियता के आधार पर सीटें जीतने की उनकी क्षमता को देखते हुए टिकट आवंटित किया जाना चाहिए था। यादवाड़ भी रामदुर्ग सीट आसानी से जीत जाते लेकिन पार्टी ने उनकी जगह चिक्का रेवन्ना को उतारा। लिंगायत नेताओं के इस पलायन के बाद आगामी चुनावों में भाजपा लिंगायत वोटों को वैâसे मजबूत कर पाएगी, इसका इंतजार करना और देखना होगा।

कागज पर भारी, जमीन पर हारी
पंचायत चुनाव में इज्जत बचाने के लाले पड़े हैं और भाजपा बंगाल में ३५ लोकसभा सीटें जीतना चाहती है। पार्टी के अघोषित मुखिया नंबर एक (नड्डा तो नाममात्र) अमित शाह बंगाल भाजपा की सांगठनिक स्थिति की रिपोर्ट से खास संतुष्ट नहीं हैं। विशेषकर बूथ संगठन को लेकर जो रिपोर्ट जमा हुई है, उससे वह खुश नहीं हैं। बीते शुक्रवार की रात न्यूटाउन के एक होटल में अमित शाह ने कोर कमेटी की सांगठनिक बैठक में यह बात समझा दी। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि केवल दस्तावेजों में नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करना होगा। २०१९ के लोकसभा चुनाव में जो सफलता मिली थी, उसे बरकरार रखना होगा। किसी तरह का लाभ वाममोर्चा को ना मिले, यह देखना होगा। साथ ही उन्होंने कहा है कि पंचायत चुनाव में बूथ तैयार करेंगे तो उसका लाभ लोकसभा चुनाव में मिलेगा। विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने बैठक में पंचायत चुनाव में केंद्रीय बल देने की मांग की, लेकिन यह मामला विचाराधीन कहते हुए अमित शाह यह बात टाल गए। साथ ही उन्होंने कहा कि अपनी सांगठनिक शक्तियों पर भरोसा कीजिए और संगठन को मजबूत कीजिए। जनसंपर्क बढ़ाने के लिए उन्होंने घर-घर जाने का निर्देश भी दिया। सबको एकजुट होकर काम करने की बात शाह ने कही। खबर है कि जल्द अमित शाह पुन: बंगाल आ सकते हैं और कोलकाता में वह रवींद्रनाथ टैगोर की जन्म जयंती के कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं।

दादा सावधान!
मुख्यमंत्री का विशेष कार्य अधिकारी होना किसी बड़े तमगे से कम नहीं होता। हाल ही में गुजरात के नौकरशाहों के फेरबदल में, मुख्यमंत्री कार्यालय में विशेष कर्तव्य पर एक अधिकारी एन.एन. दवे को चलता कर उन्हें साबरकांठा-हिम्मतनगर के कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया। दवे की सीएमओ में अच्छी पकड़ थी और वह सीएम की नियुक्तियों को देखते थे। लेकिन उनकी कार्यशैली राजनेताओं और उद्योगपतियों सहित कई लोगों को अच्छी नहीं लगी। उनके खिलाफ कई शिकायतें की गर्इं। इससे पहले ध्रुमिल पटेल को सीएमओ से हटा दिया गया था। सीएमओ में एक वरिष्ठ अधिकारी हितेश पांड्या को अपने बेटे के कॉनमैन किरण पटेल के साथ शामिल होने पर इस्तीफा देना पड़ा। एक वरिष्ठ नेता की टिप्पणी है कि दादा, जैसा कि मुख्यमंत्री को प्यार से बुलाया जाता है, को सावधान रहना होगा।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।

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