मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी : मन की बात सुनो या फाइन भरो

झांकी : मन की बात सुनो या फाइन भरो

अजय भट्टाचार्य

प्रधानसेवक बनने के बाद नरेंद्र मोदी द्वारा हर महीने मन की बात की जाती है। कुछ दिन पहले मन की बात के १०० वें संस्करण को बड़ी उपलब्धि के तौर पर प्रचारित-प्रसारित किया गया। अब उत्तराखंड के देहरादून और गुजरात के वड़ोदरा से छनकर खबर आई है कि जिन छात्र-छात्राओं ने मन की बात का १०० वां प्रसारण नहीं सुना, उनसे जुर्माना वसूला गया है। देहरादून में एक निजी सीबीएसई स्कूल जीआरडी एकेडमी ने बाकायदा व्हॉट्सऐप पर परिपत्र जारी कर सभी विद्यार्थियों को रविवार के दिन स्कूल में हाजिर रहने का निर्देश जारी किया था, जो बच्चे गैरहाजिर थे, उनसे रु. १०० जुर्माना मांगा गया। इधर वडोदरा में यूनिवर्सिटी के गर्ल्स हॉस्टल में ‘मन की बात’ न सुनने वाली छात्राओं पर ५० रुपए फाइन लगाया गया, बवाल होने पर उसे वापस कर दिया गया। अपना सुझाव यह है कि बच्चे ऐसे नहीं माननेवाले। सरकार को चाहिए कि ‘मन की बात’ को सिलेबस में डालकर एग्जाम में एक पेपर इसी पर रख दे। झंझट खत्म….!

राज्यसभा के लिए घमासान
अगस्त में पश्चिम बंगाल से छह राज्यसभा सीटें खाली होंगी। फिलहाल, इनमें से पांच पर तृणमूल कांग्रेस और एक कांग्रेस के पास है। राज्यसभा सचिवालय की ओर से इस महीने ही राज्यसभा की सीटें खाली होने से संबंधित अधिसूचना जारी की जा सकती है। ऐसे में इन सीटों पर उम्मीदवारी को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। २०२१ के विधानसभा चुनाव के बाद से बंगाल में राजनीतिक समीकरण बदला हुआ है। राज्य में भाजपा के पास ६७ सीटें हैं, जबकि तृणमूल कांग्रेस के पास २२० से अधिक सीटें हैं। ऐसे में अभी भी राज्यसभा की पांच सीटों पर तृणमूल कांग्रेस का ही कब्जा रहेगा, जबकि बाकी एक सीट भारतीय जनता पार्टी की झोली में जाएगी। तृणमूल कांग्रेस की ओर से राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन, मुख्य सचेतक शुखेंदु शेखर रॉय, डोला सेन, सुष्मिता देव और शांता छेत्री का कार्यकाल अगस्त महीने में खत्म हो जाएगा। कांग्रेस की ओर से प्रदीप भट्टाचार्य वामदलों के समर्थन से उच्च सदन पहुंचे थे, जो इस बार संभव नहीं है। ऐसे में भाजपा इस बार बंगाल से किसे राज्यसभा भेजती है, इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। बंगाल में भाजपा से पहले स्वपन दासगुप्ता राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। इसके अलावा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, ‘रिसर्च फाउंडेशन’ के निदेशक अनिर्वाण गांगुली का नाम भी राज्यसभा उम्मीदवारों की सूची में आ रहा है।

द गुजरात स्टोरी
अपनी बुराई पीठ की तरह होती है, जो दिखाई नहीं पड़ती। इन दिनों प्रधानसेवक कर्नाटक में चुनाव प्रचार करते वक्त कर्नाटक के पड़ोसी राज्य पर आधारित फिल्म का भी प्रमोशन कर रहे हैं, जिसमें कथित तौर पर धर्मांतरण आधारित कुचक्र के बहाने हिंदू लड़कियों की त्रासदी दिखाई गई है मगर गुजरात की उन ४० हजार से अधिक महिलाओं / लड़कियों पर मनमोहन सिंह से ज्यादा मौन नजर आते हैं, जो पिछले २०१६ से २०२० के बीच गुजरात से गायब हो गर्इं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, २०१६ में ७,१०५, २०१७ में ७,७१२, २०१८ में ९,२४६ और २०१९ में ९,२६८ और २०२० में, ८,२९० महिलाओं के लापता होने की सूचना मिली थी। कुल संख्या ४१,६२१ तक बढ़ जाती है। संयोग से राज्य सरकार द्वारा २०२१ में विधानसभा में दिए गए एक बयान के अनुसार, सिर्फ अमदाबाद और वडोदरा में केवल एक वर्ष (२०१९-२०) में ४,७२२ महिलाएं लापता हो गर्इं। पूर्व आईपीएस अधिकारी और गुजरात राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य सुधीर सिन्हा के अनुसार, पुलिस प्रणाली की समस्या यह है कि यह गुमशुदगी के मामलों को गंभीरता से नहीं लेती है। ऐसे मामले हत्या से भी गंभीर होते हैं। गुमशुदा लोगों के मामलों की अक्सर पुलिस द्वारा अनदेखी की जाती है क्योंकि उनकी जांच ब्रिटिश काल के तरीके से की जाती है। इस सिलसिले में पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक डॉ. राजन प्रियदर्शी बताते हैं कि जब मैं खेड़ा जिले में पुलिस अधीक्षक (एसपी) था तो उत्तर प्रदेश के एक व्यक्ति ने, जो जिले में एक मजदूर के रूप में काम कर रहा था, एक गरीब लड़की को उठाया और उसे अपने मूल राज्य में बेच दिया, जहां उसे खेतिहर मजदूर के काम पर लगाया गया था। हम उसे छुड़ाने में कामयाब रहे, लेकिन कई मामलों में ऐसा नहीं होता है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।

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