अजय भट्टाचार्य
नीतीश-नायडू डिपेंडेंट अलायंस (एनडीए) की सरकार बन गई है, लेकिन अगले लोकसभाध्यक्ष के चुनाव को लेकर देश की सियासत गरमाई हुई है। सरकार बनते ही सबसे पहला और बड़ा फैसला लोकसभा अध्यक्ष चुनने का है, जिसे भाजपा अपने पास रखना चाहती है। इस फैसले में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भाजपा के साथ है, लेकिन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देसम पार्टी के तेवर अलग नजर आ रहे हैं। ऐसे में भाजपा नीत एनडीए मुश्किल में है, क्योंकि तेदेपा अंदरखाने भाजपा पर लगातार दबाव बना रही है। तेदेपा के प्रवक्ता पट्टाभि राम कोमारेड्डी ने एक बयान देकर लंगड़ी सरकार के प्रधानसेवक और भाजपा की टेंशन बढ़ा दी है। उन्होंने कहा है कि भाजपा और एनडीए में शामिल सहयोगी दलों की सहमति से ही लोकसभा स्पीकर चुना जाना चाहिए। तेदेपा सहयोगी दलों के साथ मीटिंग करेंगी। उसमें जिस चेहरे का नाम लोकसभा अध्यक्ष के लिए आएगा और उस पर सहमति बनी तो भाजपा को बता दिया जाएगा। उसके बाद सहमति बनने पर लोकसभा स्पीकर चुना जाएगा, जबकि जदयू को भाजपा का लोकसभा स्पीकर बनने से कोई दिक्कत नहीं है। अगर तेदेपा अड़ी तो भाजपा डी. पुरंदेश्वरी का नाम दे सकती है, जो चंद्रबाबू नायडू की साली हैं। दरअसल, तेदेपा नहीं चाहती कि मोदी के रणनीतिकारों को कोई ऐसा मौका दिया जाए, जिससे २०१८ की पुनरावृत्ति हो, जिसमें भाजपा ने तेदेपा के चार राज्यसभा सांसदों को तेदेपा से घसीटकर अपने पाले में कर लिया था। पिछले कार्यकाल में जिस तरह भाजपा अपने सहयोगी रामविलास पासवान की पार्टी के सांसदों को डकार गई थी, नायडू नहीं चाहते कि लोकसभा अध्यक्ष भाजपा का दुमछल्ला हो। क्योंकि पासवान के टूटे धड़े को अध्यक्ष ने आनन-फानन में मान्यता दे दी थी।
नेहरू-इंदिरा से पीछे हैं मोदी
मुनादी पीटी जा रही है कि अवतारीलाल ने लगातार तीसरी बार देश के मुखिया की शपथ ग्रहण कर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बराबरी कर ली है। गोदी चैनल दुदुंभी पीट रहे हैं कि नेहरू के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं, जबकि यह गलत है। नेहरू ने तीन बार नहीं, बल्कि चार बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी- १९४७, १९५२, १९५७ और १९६२ में। हालांकि, १९६२ के चुनाव स्वतंत्र भारत में होने वाले तीसरे चुनाव थे, लेकिन नेहरू १९४७ से ही प्रधानमंत्री थे। अगर १९४६ की अंतरिम सरकार जो देश को ब्रिटिश उपनिवेश से स्वतंत्र गणराज्य में बदलने के लिए बनाई गई थी को गिना जाए, तो नेहरू ने वास्तव में १९६२ में पांचवीं बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। न केवल मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में साधारण बहुमत के निशान से नीचे गिर गए हैं, बल्कि पिछले दो चुनावों में उनका और भाजपा का प्रदर्शन भी इसी अवधि के दौरान नेहरू और कांग्रेस के प्रदर्शन से बहुत कमतर है। वाजपेयी ने भी लगातार तीन बार- १९९६, १९९८ और १९९९ में-प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के मामले में इंदिरा गांधी भी मोदी से आगे हैं। उन्होंने चार बार-१९६६, १९६७, १९७१ और १९८० में प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
यूसुफ को नोटिस
क्रिकेटर यूसुफ पठान टीएमसी के सांसद बनने के बाद वडोदरा नगर निगम हरकत में आया है और निगम के एक भूखंड पर पठान द्वारा कब्जा करने का आरोप लगा है। भाजपा के पूर्व पार्षद विजय पवार का आरोप है कि निगम ने यूसुफ पठान को प्लॉट देने का पैâसला लिया था और प्रस्ताव राज्य सरकार तक को भेजा गया था, लेकिन राज्य सरकार ने निगम की सिफारिश को रद्द कर दिया था, जिसके बावजूद यूसुफ पठान ने प्लॉट पर कब्जा कर तबेला बना दिया था। वडोदरा के तांदलजा स्थित अपने आवास के बगल वाले भूखंड को यूसुफ पठान ने २०१२ में खरीदने की मांग निगम से की थी, जिसके बाद कॉर्पोरेशन ने प्रस्ताव मंजूर कर २०१४ में राज्य सरकार के पास भेजा था, लेकिन सरकार ने प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी, जिसके बाद अब इतने साल बाद यह विवाद सामने आया है। मामला सामने आने के बाद पूर्व पार्षद की भूखंड खाली कराने की मांग के बाद निगम हरकत में आया और यूसुफ पठान को एक नोटिस जारी कर १५ दिनों के अंदर प्लॉट पर से कब्जा हटाने का आदेश जारी किया है। सवाल यह है कि तृणमूल की बजाय अगर यूसुफ भाजपा के सांसद होते तो भी निगम नींद से जागता क्या?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)