मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी : मनीष को एक साल जेल तय..!

झांकी : मनीष को एक साल जेल तय..!

अजय भट्टाचार्य

स्वयंभू क्रांतिकारी यूट्यूबर पत्रकार मनीष कश्यप कम से कम एक साल जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे। परसों सुप्रीम कोर्ट ने रासुका पर उनकी याचिका सुनने से इनकार कर दिया था तो अब तमिलनाडु हाईकोर्ट ने रासुका को कंफर्म कर दिया है अर्थात सही ठहराया है। तमिलनाडु फर्जी वीडियो प्रकरण में बिहार मैं सच तक नामक यूट्यूब चैनल चलानेवाले मनीष कश्यप को इससे जबरदस्त झटका लगा है। आसान भाषा में कहा जाए तो मनीष को अब कम से कम एक साल तक के लिए जेल में रहना होगा। इससे पहले वह अपनी बेल याचिका दायर भी नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कश्यप की याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए उसे हाईकोर्ट जाने की सलाह दी थी। इससे पहले २८ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से पूछा था कि मनीष पर रासुका क्यों लगाया गया है, जिसके लिए तमिलनाडु सरकार ने कोर्ट से जवाब देने के लिए समय मांगा था। कल तमिलनाडु सरकार की ओर से काउंटर एफिडेविट फाइल किया गया था। सुनवाई में मनीष की ओर से तीन मांगें रखी गई थीं। मनीष कश्यप के खिलाफ बिहार से लेकर तमिलनाडु तक कई केस दर्ज किए गए हैं। उस के खिलाफ दोनों राज्यों में दर्ज सारे केस को क्लब करने, नियमित जमानत देने और तमिलनाडु सरकार की ओर से लगाए गए रासुका को हटाने की मांग की गई थी।

जांच की आंच
जैसे-जैसे एक के बाद एक ठग पकड़े जा रहे हैं, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों में चिंता बढ़ती जा रही है। जिस तरह किरण पटेल की घिनौनी गाथा बासी खबर बनने लगी थी, उसी तरह एक और ठग संजय शेरपुरिया का कारनामा सुर्खियां बटोर रहा है। गुजरात में एक रेस्तरां में वेटिंग टेबल से लेकर दिल्ली में सत्ता के गलियारों तक सरकार में प्रमुख राजनेताओं तक ‘सीधी पहुंच’ रखने तक और वरिष्ठ नौकरशाहों के लिए ‘समस्या निवारक’ की भूमिका निभाने तक, शेपुरिया ने पिछले २० वर्षों में कई प्रोफाइल बनाए। उसने एक धारणा बनाई थी कि मोदी के कार्यालय तक उसकी सीधी पहुंच थी। दोनों मामलों में, आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के दो ठगों के साथ अच्छे संबंध होने की खबरें सामने आई हैं। सत्ता के गलियारों में किसके किससे संबंध हैं, इस बारे में बातें आम हो गई हैं। जैसे-जैसे जांच जारी है, अधिकारी तनावपूर्ण समय बिता रहे हैं और चाह रहे हैं कि जांच जल्द पूरी हो। जांच की आंच किस-किस को झुलसाती है इसे लेकर गुजरात के बाबुओं की सांसें थमी हुई हैं।

झारसुगुडा की लड़ाई
पिछले चार वर्षों में उड़ीसा में सात उपचुनाव हुए हैं। आठवां उपचुनाव झारसुगुड़ा विधानसभा क्षेत्र में होगा। २९ जनवरी को ब्रजराजनगर में एक पुलिसकर्मी के हाथों बीजू जनता दल के मौजूदा विधायक और वैâबिनेट मंत्री नबा किशोर दास की चौंकानेवाली हत्या के बाद उपचुनाव आवश्यक था। दास इस क्षेत्र के लोकप्रिय नेता थे और उन्होंने लगातार तीन बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। १९६७ और २०१९ के बीच, विधानसभा क्षेत्र में १३ चुनाव हुए, जिनमें से सात मौकों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। बहरहाल, झारसुगुड़ा की लड़ाई महज एक और उपचुनाव नहीं है। यह २०२४ की सबसे महत्वपूर्ण चुनावी लड़ाई से पहले आखिरी मतदान होगा। वैâबिनेट मंत्री की हत्या को लेकर विपक्ष के तीखे सुर को देखते हुए यह सत्तारूढ़ दल के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। बीजद अपना विजय अभियान जारी रखना चाहेगी। २०१९ के बाद से अब तक हुए सात उपचुनावों में से छह में इसने काफी आसानी से जीत हासिल की है, जिसमें एक बालासोर में भी शामिल है, जिस पर भाजपा का कब्जा था। झारसुगुड़ा में जीत संकेत देगी कि प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी पटरी पर है। भाजपा के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है। भाजपा के कब्जे वाले बारगढ़ लोकसभा क्षेत्र स्थित झारसुगुड़ा चौथा विधानसभा उपचुनाव है। इससे पहले हुए तीनों उपचुनाव बीजद ने जीते हैं, उनमें पश्चिमी उड़ीसा भाजपा का गढ़ है और वह इसमें सुधार करना चाहेगा। झारसुगुड़ा में अंतत: बीजद के चुनावी वर्चस्व और भाजपा के फिर से दावे के बीच लड़ाई होगी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।

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