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झांकी : ‘मावो’ मुस्कान

अजय भट्टाचार्य

गुजरात के राजकोट में हाल ही में एक राजनीतिक सभा में अप्रत्याशित रूप से हास्यपूर्ण मोड़ आ गया। जैसे ही २५ भाजपा स्थानीय नेताओं ने ५०० दर्शकों के सामने मंच पर कब्जा कर लिया, एक वरिष्ठ भाजपा नेता के आगमन की प्रतीक्षा बढ़ गई। भाजपा के वरिष्ठ नेता को बोलने के लिए बुलाया गया। शुरू में झिझकते हुए नेताजी अंतत: भाषण देने के लिए मान गए। मंच के सामने बिछी कुर्सियों पर बैठे समर्थक जोश में नारेबाजी करने लगे। नेताजी उठकर खड़े हुए तो जोरदार तालियां बजने लगीं, मगर यह क्या…? मंच पर लगे माइक पर बोलने के बजाय नेताजी दर्शकों को आश्चर्यचकित करते हुए मंच के एक कोने में चले गए। उसी कोने से सामने दर्शकदीर्घा पर अपनी नजरें इनायत कीं और एक मोहिनी मुस्कान के साथ उन्होंने बड़ी सावधानी से उस `मावो’ की पिचकारी कोने में चला दी, जिसका वे मंच पर बैठे हुए स्वाद ले रहे थे। उनके अपरंपरागत भाषण-पूर्व अनुष्ठान ने दर्शकों में हंसी उड़ा दी। यह एक अनुस्मारक था कि नेताओं की भी अपनी विचित्रताएं होती हैं और कभी-कभी, अप्रत्याशित सबसे खुशी के क्षण ला सकता है।
भरूच में तूफान
दक्षिण गुजरात की राजनीति में तूफान आया हुआ है, क्योंकि वहां झगड़िया सीट से पूर्व विधायक छोटू वसावा द्वारा नई पार्टी बनाने पर आदिवासी क्षेत्र में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं। आदिवासियों के रॉबिन हुड के रूप में पहचाने जाने वाले ७८ साल के छोटू वसावा फिर राजनीति में सक्रिय नजर आ रहे हैं। वे गुजरात की झगड़िया विधानसभा सीट से ३५ साल तक विधायक रह चुके हैं। उन्होंने भारत आदिवासी सेना के नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई है। इसे लेकर छोटू वसावा का कहना है कि पार्टी में जल्द ही पदाधिकारियों का चयन किया जाएगा। हाल ही में छोटू वसावा के बेटे महेश वसावा ने भाजपा का दामन थाम लिया था, इसके बाद उन्होंने यह कदम उठाया है। बेटे महेश वसावा के भाजपा में शामिल होने के बाद से पिता छोटू वसावा के राजनीतिक दबदबे पर सवाल उठ रहे हैं। आदिवासियों के बीच छोटू वसावा को ‘दादा’ और महेश वसावा को ‘भाई’ के नाम से जाना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में पिता छोटू वसावा और उनके बेटे महेश वसावा के बीच झगड़िया सीट से चुनाव लड़ने को लेकर विवाद हो गया था, जिसका फायदा आप उम्मीदवार चैतर वसावा को मिला था। लोकसभा चुनाव में पिता-पुत्र के बीच फिर हुए मनमुटाव के बाद भरुच का चुनाव और दिलचस्प हो गया है। इंडिया गठबंधन के तहत आम आदमी पार्टी से चैतर वसावा भरूच सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। चैतर वसावा ने छोटू वसावा के साथ राजनीति की शुरुआत की थी और वे महेश वसावा के दोस्त भी थे। आम आदमी पार्टी और भारतीय आदिवासी पार्टी के बीच गठबंधन टूटने के बाद चैतर वसावा आप में शामिल हो गए। भरूच सीट पर भाजपा का ३५ साल से कब्जा है। भरूच के राजनीतिक रण में छोटू वसावा की दखल से कौन से वसावा का खेल बिगड़ेगा और किसका पलड़ा भारी होगा, ये देखना दिलचस्प होगा।

डबल झटका
लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात में भाजपा को झटके पर झटके लग रहे हैं। वडोदरा लोकसभा सीट से प्रत्याशी रंजन भट्ट के द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव नहीं लड़ने के ऐलान से गुजरात भाजपा की राजनीति में हलचल मच गई। रंजन भट्ट की लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारी की घोषणा के बाद लगातार कई गंभीर आरोप लगाए जा रहे थे, जिससे उनका मन व्यथित था। रंजन भट्ट पर आरोप लगाया जा रहा था कि उनके बेटे का ऑस्ट्रेलिया में एक मॉल है। इस पर इंजन भट्ट का कहना है कि उनके बेटे के पास टपरी तक नहीं है। ऐसे गंभीर आरोपों से परेशान होकर मैंने निजी कारणों से चुनाव नहीं लड़ने का पैâसला किया है। अभी रंजन भट्ट के चुनाव न लड़ने को लेकर चर्चा चल ही रही थी कि कुछ ही मिनटों में ही भाजपा के एक और उम्मीदवार साबरकांठा से भीखाजी ठाकोर ने भी सोशल मीडिया के जरिये लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया। खास बात है कि साबरकांठा सीट से भीखा जी दुधाजी ठाकोर के उपनाम को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। इस मामले में एक नागरिक ने चुनाव आयोग को खत लिखकर स्पष्ट करने को भी कहा था कि भीखाजी डामोर हैं या ठाकोर हैं, ये बताया जाए, ताकि साबरकांठा की जनता को पता चल सके कि उनका उम्मीदवार ओबीसी है या अनुसूचित जाति श्रेणी का। एक ही दिन में दो उम्मीदवारों के चुनाव न लड़ने के पैâसले से भाजपा में हड़कंप मचना स्वाभाविक है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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