अजय भट्टाचार्य
हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री पद पर वापसी आगामी चुनाव में उनकी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, इसके साथ ही भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है। झारखंड के राजनीतिक पंडितों का मानना है कि तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना हेमंत सोरेन की मजबूरी थी न कि राजनीतिक अनिवार्यता। अन्यथा जेल से बाहर आते ही मुख्यमंत्री पद अपने हाथ में लेने का पैâसला हेमंत को नहीं करना पड़ता। पहले ऐसी खबरें थीं कि विधानसभा चुनाव होने तक चंपई सोरेन ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे और हेमंत राज्य भर में ताबड़तोड़ दौरे कर पार्टी की स्थिति और ज्यादा मजबूत करेंगे। लेकिन जेल से बाहर आने के पांच दिन बाद ही हेमंत सोरेन ने सत्ता का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। अंदर की खबर यह है कि उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) में दो गुट पैदा हो रहे थे, जिनका अस्तित्व में रहना झामुमो को खंड-खंड कर सकता था। अगर यह गुटबाजी ज्यादा बढ़ती तो चंपई झारखंड में जीतनराम मांझी की तरह उभर सकते थे। चंपई के इर्द-गिर्द इकट्ठे हुए गिरोह को चारा-पानी कहां से मिल रहा था, यह बताने की जरूरत नहीं है। बहरहाल, अगर ऐसा होता तो आगामी विधानसभा चुनाव में झामुमो को नुकसान और भाजपा को फायदा हो सकता था। यह संभावित स्थिति की भी एक कारण है, जिससे बचने के लिए सोरेन ने यह पैâसला लिया है। इसके अलावा लोकसभा चुनाव के परिणाम और हेमंत की रिहाई को देखते हुए झामुमो जोश में भी है। पार्टी को भरोसा है कि हेमंत के नेतृत्व में वो जीत के सभी रिकॉर्ड तोड़ सकती है। चुनाव से पहले की किसी गलती से बचने के लिए हेमंत का यह कदम पार्टी के अंदर साफ संदेश भेजता है कि सत्ता की बागडोर उन्हीं के हाथ में है। गिरफ्तारी के चलते वो लोकसभा चुनाव में प्रचार अभियानों में भी हिस्सा नहीं ले पाए थे। अब उनका लक्ष्य विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन का चेहरा बनने का है। इंडिया में शामिल बाकी दलों का भी मानना है कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन को सहानुभूति और वोट भी मिल सकते हैं। इसी कारण से उन्हें जेल से बाहर आने के तुरंत बाद जल्द से जल्द मुख्यमंत्री बनाने का पैâसला किया गया। मुख्यमंत्री पद पर उनकी वापसी भाजपा के लिए संकट का सबब बन सकती है।
जश्न ए (दारू) जीत
कर्नाटक में रविवार को चिक्काबल्लापुर से भाजपा सांसद के. सुधाकर की पहली लोकसभा चुनाव जीत का जश्न मनाने के लिए आयोजित एक सार्वजनिक पार्टी में शराब बांटे जाने के बाद विवाद खड़ा हो गया है। इस पर उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार ने भाजपा प्रमुख जे पी नड्डा से जवाब मांगा है। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सुधाकर द्वारा कथित तौर पर चिक्काबल्लापुर में भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए पार्टी आयोजित करने के बाद वीडियो वायरल हुए, जिसमें लोगों को आयोजकों से शराब लेने के लिए कतार में खड़े दिखाया गया, जिन्होंने इसे आयोजन स्थल पर पहुंचाया था। नेलमंगला तालुका के भाजपा अध्यक्ष जगदीश चौधरी, जिन्होंने पार्टी के लिए पुलिस से अनुमति मांगी थी, ने स्वीकार किया कि शराब बांटना योजना का हिस्सा था। चौधरी को कार्यक्रम के लिए अनुमति लेने के लिए कहा गया था और उन्होंने लगभग पांच हजार लोगों के बीच शराब वितरित करने के लिए आबकारी विभाग से लाइसेंस प्राप्त किया था। वैसे बंगलुरु ग्रामीण के पुलिस अधीक्षक सी के बाबा ने आयोजकों से शराब न परोसने के लिए कहा था और आबकारी विभाग के अधिकारियों को मौखिक रूप से सुझाव दिया था कि वे लाइसेंस न दें, क्योंकि इससे उनकी छवि खराब होगी। अब डी. के. शिवकुमार ने कहा है, `नेलमंगला में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भाजपा पार्टी कार्यकर्ताओं को शराब वितरित की गई। इस संबंध में मामला दर्ज करना एक और मामला है, लेकिन उससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा को जवाब देना चाहिए कि उनकी पार्टी ने अपने सांसद को सार्वजनिक कार्यक्रम में पार्टी कार्यकर्ताओं को शराब वितरित करने की अनुमति वैâसे दी? स्थानीय भाजपा नेताओं के बजाय, यह महत्वपूर्ण है कि भाजपा के राष्ट्रीय नेता लोगों को बताएं कि भाजपा सार्वजनिक बैठकों में शराब वितरित करके देश की संस्कृति को वैâसे कायम रख रही है। भाजपा नेता शराब बांटने में व्यस्त हैं, जबकि राज्य डेंगू से जूझ रहा है। वे भाजपा नेता कहां हैं, जिन्होंने मंगलुरु में तैराकी करने पर सवाल उठाए थे? क्या यही (शराब बांटना) आपकी संस्कृति है?’
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)