अजय भट्टाचार्य
तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और वर्तमान में बांग्लादेश के लिए १९७१ के युद्ध में रजाकारों ने पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था। पाक सेना प्रमुख टिक्का खान के आदेश पर जमात-ए-इस्लामी के नेता मौलाना अबुल कलाम ने रजाकारों की फौज खड़ी की थी। शुरुआत में सिर्फ ९६ लोगों को रजाकार बनाया गया, लेकिन कुछ ही दिनों में ये संख्या ५० हजार के भी पार पहुंच गई। १६ दिसंबर १९७१ को पाकिस्तानी सेना ने समर्पण कर दिया। इसके ठीक २ दिन बाद १८ दिसंबर को ढाका के बाहरी इलाकों में १२५ लाशें देखने को मिलीं। सभी लाशों के हाथ बंधे हुए थे और इनमें से कई के चेहरे भी पहचान में नहीं आ रहे थे। ये बांग्लादेश की नामचीन हस्तियां थीं, जिन्हें रजाकारों ने मौत के घाट उतार दिया। जो भी लोग उन लाशों के पास अपनों को पहचानने जा रहे थे, उन्हें भी रजाकार गोली मार दे रहे थे। रजाकारों ने बड़ी बेरहमी के साथ ३०० बांग्लादेशियों का कत्ल कर दिया था। रजाकार अरबी भाषा का शब्द है। इसका मतलब स्वयंसेवक यानी साथ देने वाला होता है। रजाकारों ने पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था इसलिए बांग्लादेश में इन्हें अपमान की नजर से देखा जाता है। बांग्लादेश में रजाकार का मतलब गद्दार होता है। यही वजह है कि जब अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों को रजाकार कहा तो छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने देश में ही तख्तापलट कर दिया। बहरहाल, बांग्लादेश का आम जनमानस सदमे में हैं क्योंकि सेना की देख-रेख में नई अंतरिम सरकार के गठन में प्रमुख विपक्षी दल बीएनपी, जमाते इस्लाम (प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन) आदि सम्मिलित हैं और कमान मोहम्मद यूनुस (नोवल पुरस्कार विजेता, जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और जो उन आरोपों से बचने के लिए पेरिस में रह रहे हैं) को थमा दी गई है। डर है कि कहीं अब फिर इस्लामियत हावी न हो जाए, सूफियाना इस्लाम कट्टर इस्लाम में तब्दील न हो जाए…कि कहीं देश की बेटियों पर बुर्का न लाद दिया जाए! यह बांग्लादेश की बंगाली संस्कृति पर कट्टर इस्लामी सोच का हमला है। गजब यह है कि भारत का एक वर्ग रजाकारों के साथ खड़ा दिख रहा है। यह वही वर्ग है, जो देश की आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के साथ खड़ा था।
गुमराही
हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार ने विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले राज्य में २४ फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदने की घोषणा की है, लेकिन किसान संगठनों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। किसान नेताओं का कहना है कि २४ में से करीब १० ऐसी फसलें हैं, जो राज्य में बड़े पैमाने पर नहीं उगाई जाती हैं। किसान सैनी सरकार की घोषणा को भाजपा द्वारा ‘किसानों को गुमराह करने’ का एक और प्रयास बता रहे हैं, जबकि किसान मजदूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सरवन सिंह पंधेर ने इस घोषणा के आधार पर सवाल उठाया। एमएसपी पर खरीद का निर्णय केंद्र द्वारा लिया जाता है और राज्य सरकार के पास ऐसी घोषणा करने का कोई अधिकार नहीं है। केंद्र को किसानों को एमएसपी पर कानूनी गारंटी प्रदान करनी चाहिए। सैनी द्वारा हरियाणा में एमएसपी पर `सभी’ फसलों की खरीद के बारे में घोषणा करने के एक दिन बाद वैâबिनेट ने कहा कि इसके तहत रागी (वैज्ञानिक रूप से एल्युसिन कोरकाना कहा जाता है), सोयाबीन, काला बीज (सौंफ), जूट, खोपरा (कोपरा), मूंग, नाइजर बीज, सूरजमुखी, जौ (जौ) और ज्वार जैसी अतिरिक्त फसलें शामिल होंगी। राज्य कृषि विभाग के अनुसार, हरियाणा में ३,६९४ हेक्टेयर खेती योग्य क्षेत्र है, जिसमें से ३,३५१ हेक्टेयर शुद्ध बोया गया क्षेत्र है। सैनी ने अन्य राज्य सरकारों से भी अपील की कि वे आगे आएं और एमएसपी पर फसलों की खरीद करें। सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए पंधेर ने पूछा कि बजट में एमएसपी खरीद का प्रावधान क्यों नहीं किया गया। भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी का मानना है कि सरकार को इस संबंध में विधानसभा में कानून लाना चाहिए। किसान यूनियनों की आशंकाओं को खारिज करते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव (कृषि) डॉ. राजा शेखर वेंडरू ने सफाई दी कि घोषणा का मुख्य उद्देश्य राज्य में बोई जाने वाली अधिकतम फसलों को एमएसपी सूची में शामिल करना है। क्या होगा अगर कोई नारियल का पेड़ उग आए और हमें उससे उपज मिलने लगे?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)