अजय भट्टाचार्य
प्रधानमंत्री कार्यालय में गुजरात के अधिकारी प्रतीक दोशी वर्तमान में सोशल मीडिया पर सबसे अधिक खोजे जानेवाले व्यक्ति हैं। उन पर असंख्य प्रश्न और हजारों कहानियां हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने पिछले हफ्ते केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की बेटी से शादी की है। लोग दोशी के बारे में अधिक जानने के लिए बहुत उत्सुक हैं, जो आमतौर पर लो प्रोफाइल रहते हैं। प्रधानसेवक से उनकी नजदीकियों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। नरेंद्र मोदी के दिल्लीशाही पर तख्तेनशीं होते ही दोशी भी गुजरात से दिल्ली स्थानांतरित किए गए। इससे पहले वे गुजरात मुख्यमंत्री कार्यालय में शोध सहायक थे। मोदी ने उनके काम पर ध्यान दिया और २०१४ में उन्हें भी अपने साथ दिल्ली ले गए। २०१९ में पीएमओ में ओएसडी के रूप में नियुक्त उन्होंने अनुसंधान और रणनीति को संभाला। राज्य के पुराने सहयोगी दोशी को बहुत मृदुभाषी व्यक्ति के रूप में याद करते हैं, लेकिन एक ऐसे व्यक्ति के रूप में भी जो अपने बॉस की इच्छा को पूरा करता है। यह पता चला है कि वह महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार को सलाह देते रहे हैं लेकिन उन्होंने कभी लाइमलाइट नहीं मांगी। मोदी की ‘आंख और कान’ के रूप में पहचाने जानेवाले, अच्छी पोस्टिंग पर नजर रखने वाले राज्य के नौकरशाह प्रतीक को अच्छे मूड में रखते हैं। यह पता चला है कि देशभर में पोस्टिंग और ट्रांसफर में उनका सिक्का चलता है।
आ मेरी (बैल) गाड़ी में बैठ जा
बोकारो जिले के कसमार प्रखंड अंतर्गत गौरयाकुदर गांव के संदीप दूल्हा बनकर सजाई गई बैलगाड़ी पर सवार होकर ससुराल पहुंचे और उसी बैलगाड़ी पर पत्नी कविता को ब्याहकर वापस अपने गांव आ गए। हालांकि, दुल्हन का घर दूल्हे के घर से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर है, इसकी वजह से सभी बाराती दूल्हे के संग नाचते-गाते दुल्हन के घर पैदल ही पहुंच गए। बैलगाड़ी पर ६०/४० नाय चलतों का नारा भी लिखा गया। आकर्षक तरीके से दूल्हा बने संदीप अपनी दुल्हन कविता को लाने बारातियों संग निकल पड़े। बारातियों में गोमिया विधायक डॉ. लंबोदर महतो भी शामिल थे, जिन्होंने दूल्हे की बैलगाड़ी को बारातियों संग रवाना किया। इस दौरान महतो ने कहा कि आज के आधुनिक युग में अपनी संस्कृति और पारंपरिक रिवाज को बचाने के लिए युवा आगे आ रहे हैं। ये सचमुच में बड़े गौरव की बात है। एक तरफ जहां आधुनिक युग की परत जमती जा रही है। ऐसे में इस तरह अपनी परंपरा को जीवित रखना आज के युवाओं के लिए एक अच्छा संदेश है। दूल्हे संदीप को कहना था कि अपनी संस्कृति और पारंपरिक रीति-रिवाज को जीवित रखना जरूरी है। शादी के बाद दुल्हन कविता भी अपने दूल्हे संदीप के साथ खुशी-खुशी बैलगाड़ी पर सवार होकर अपनी ससुराल आई।
सेंगोल की पहली नीलामी
आखिर सरकार बहादुर नई संसद में चोल राजवंश के राज /धर्म दंड सेंगोल की स्थापना की कीमत वसूलने की प्रक्रिया में लग गई है। दिल्लीशाही के नायब सुल्तान रविवार को तमिलनाडु के वेल्लोर में सरकार के नौ साल की उपलब्धियां बताने / गिनवाने पहुंचे थे। तभी उन्होंने तमिलनाडु की जनता से अपील की संसद में सेंगोल की स्थापना के लिए प्रधानसेवक को धन्यवाद देने के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा नीत राजग के २५ सांसद चुनकर दिल्ली भेजें। तमिलनाडु में ३९ लोकसभा सीटें हैं। अब यह तय करना मुश्किल है कि उनके भाषण की प्रेरणा उन्हें पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान जनता से मोदी का आशीर्वाद लेने की अपील से मिली और इस बार आशीर्वाद को धन्यवाद में बदलकर तमिलनाडु के मतदाता के सामने परोस दिया! वैसे ब्रिटिश हुकूमत के सत्ता से हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल की कहानी जो मालपुआ कंपनी ने रची थी, उसकी पोल द हिंदू के संपादक एन राम पहले ही खोल चुके हैं। अब सवाल यह है कि क्या सेंगोल की स्थापना मात्र से देश में धर्म का शासन स्थापित हो गया है? खासकर जब सेंगोल का स्थापना समारोह चल रहा था ठीक उसी समय मायावी धर्मराज की पुलिस दिल्ली की सड़कों पर धर्म का राज्य स्थापित होने का संदेश देने के लिए महिला पहलवानों को घसीट/पीट रही थी…!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)