मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी : तेलंगाना भाजपा में बगावत

झांकी : तेलंगाना भाजपा में बगावत

अजय भट्टाचार्य

कर्नाटक में बुरी तरह पिटने के बाद तेलंगाना भाजपा में बगावत की चिंगारी सुलगी है। नौ प्रमुख नेताओं ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को एक अल्टीमेटम जारी किया है कि वे राज्य के पार्टी प्रमुख संजय कुमार की जगह हुजूराबाद के विधायक एटेला राजेंद्र को प्रदेश की कमान दें या विद्रोह का सामना करें। असंतुष्टों ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर संजय को बनाए रखा जाता है तो वे पार्टी छोड़ने में संकोच नहीं करेंगे। यह भी पता चला है कि नौ नेताओं के समूह ने राजेंद्र से आग्रह किया है, जो भाजपा की `जॉइनिंग कमेटी’ के अध्यक्ष हैं, अगर उन्हें राज्य पार्टी प्रमुख नहीं बनाया जाता है, तो वे भाजपा को अलविदा कह सकते हैं। उनका विचार है कि नया संगठन कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकता है। राजेंद्र केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलने के लिए सोमवार को दिल्ली पहुंचे थे। राजेंद्र २०२१ में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब भारत राष्ट्र समिति) छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। वे तेलंगाना के पहले वित्तमंत्री और वर्तमान सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। खबर यह भी है कि राजेंद्र नई पार्टी बनाकर कांग्रेस के साथ गठबंधन कर २५ सीटों पर चुनाव में उतरने की तैयारी में हैं। दूसरी ओर पूर्व सांसद पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी और पूर्व विधायक जुपल्ली कृष्ण राव की इस घटनाक्रम पर पैनी नजर बनी हुई है। जो केसीआर नीत बीआरएस से लड़ने के लिए एक व्यापक गठबंधन बनाने के लिए भाजपा के अन्य असंतुष्टों से बातचीत कर रहे हैं। पोंगुलेटी को इसी साल के प्रारंभ में केसीआर ने पार्टी से बाहर किया था, जबकि पांच बार विधायक रहे जुपल्ली २०१८ का चुनाव हारने के बाद हाशिए पर हैं।

शेट्टार भी मंत्री बनेंगे…!
कर्नाटक में मुख्यमंत्री कोई भी बने, इतना तय है कि भाजपा से कांग्रेस में आए पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार को एक प्रमुख स्थान जरूर मिलेगा भले ही वे अपनी सीट नहीं जीत सके। शेट्टार छह बार के विधायक और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। हाल के विधानसभा चुनावों में वे अपनी हुबली-मध्य धारवाड़ विधानसभा सीट भाजपा के महेश तेंगिनाकाई से ३४,२८९ मतों के अंतर से हार गए। सच यह भी है कि भले ही शेट्टार अपनी सीट नहीं जीत सके, मगर उत्तर कर्नाटक के लिंगायत बहुल इलाकों में उनके दबदबे के कारण कांग्रेस ने इनमें से कई सीटों पर जीत हासिल की और भाजपा को शिकस्त दी। भीतर की खबर है कि कांग्रेस थिंक टैंक पहले ही पार्टी के राज्य नेतृत्व को बता चुका है कि लिंगायत बहुल इलाकों में चुनाव जीतने के लिए शेट्टार का भाजपा से अलग होना कांग्रेस के लिए एक प्रमुख कारण था और इसलिए उन्हें उचित रूप से पुरस्कृत किया जाना चाहिए। शेट्टार बसवराज बोम्मई की पिछली भाजपा सरकार में यह कहते हुए शामिल नहीं हुए थे कि बोम्मई उनसे बहुत जूनियर थे। कांग्रेस शेट्टार को नए मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण जगह देगी या पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पद के लिए भी उनके नाम पर विचार किया जा सकता है। शेट्टार का डीके शिवकुमार, सिद्धारमैया और राज्य के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ जबरदस्त तालमेल है।

जगह तलाशते अजमल
पिछले कुछ दिनों में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के सुप्रीमो बदरुद्दीन अजमल ने अन्य राज्यों में विपक्षी नेताओं से मुलाकात की है, भले ही उन्हें असम में कांग्रेस द्वारा बनाए गए भाजपा विरोधी गठबंधन से बाहर रखा गया हो। बीते शुक्रवार को अजमल और उनकी पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और जनता दल (यूनाइटेड) के अन्य नेताओं से मुलाकात के बाद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता लालू प्रसाद यादव और बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मुलाकात की। अगले दिन फ्रंट का प्रतिनिधिमंडल मुंबई में था और उसने शरद पवार सहित राकांपा के नेताओं से मुलाकात की। इस साल की शुरुआत में, कांग्रेस ने २०२४ के लोकसभा चुनावों से पहले असम में भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने के लिए दस दलों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता की थी, जिसमें राकांपा, राजद, भाकपा, भाकपा (माले) और क्षेत्रीय जातीय दल, रायजोर दल, असम जनता परिषद और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की राज्य इकाइयां थीं। बैठक में फ्रंट का बहिष्कार ध्यान देने योग्य था। जबकि दोनों दलों ने २०२१ का असम विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन तब से रिश्ते तनावपूर्ण हैं। लेकिन बिहार और महाराष्ट्र की बैठकों से पता चलता है कि फ्रंट ने २०२४ के लिए भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने का रास्ता खोजने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।

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