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झांकी : याद आए महाराणा

अजय भट्टाचार्य

चुनावी वर्ष में बहुत कुछ याद आ जाता है। रविवार को महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर जदयू एमएलसी संजय सिंह के सरकारी आवास पर कार्यक्रम रखा गया, जिसका मकसद राजपूतों को एक साथ जुटाने की कोशिश कहा जा रहा है। इस कार्यक्रम को राष्ट्रीय स्वाभिमान दिवस का नाम दिया गया, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हुए। संजय सिंह पहले ही बाढ़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं। यह सीट राजपूत बाहुल्य क्षेत्र है। भाजपा के ज्ञानेंद्र सिंह बाढ़ सीट से विधायक हैं और राजपूत ही हैं। नीतीश कुमार से करीबी के चलते ज्ञानू सिंह को २००५ में जदयू से टिकट दिया गया था। वे २००५ से लेकर २०१५ तक जदयू की टिकट पर ही जीतते रहे। २०१५ के बाद वे भाजपा के साथ चले गए। संजय सिंह की बाढ़ से लड़ने की घोषणा शायद ‘खेला’ की प्रस्तावना है!
सिंहासन का खेल
भाजपा का नवीनतम संगठनात्मक बदलाव गेम ऑफ थ्रोन्स (सिंहासन का खेल) का देसी संस्करण जैसा दिखने लगा है। जिला और शहर इकाई अध्यक्ष पदों के लिए होड़, अंदरूनी कलह, सत्ता के खेल और पुराने जमाने की लॉबिंग इस मौसम का स्वाद है। चर्चा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का पैâसला अंतिम होगा, खासकर अमदाबाद और गांधीनगर में प्रमुख पदों के लिए। दूसरी तरफ इस बार सचिवालय में आईएएस अधिकारियों ने नहीं, बल्कि निजी सहायकों (पीए) ने हंगामा मचा रखा है। मंत्रियों के कुछ पीए के तबादलों ने चर्चा का विषय बना दिया है। सत्ता संघर्ष से लेकर पर्दे के पीछे के नाटक तक, हर किसी के पास कोई न कोई कहानी है। बेशक, मंत्रियों के पास अपनी-अपनी बातें हैं और जनता के लिए?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा
व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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