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झांकी : झटका

अजय भट्टाचार्य

अशोक चौधरी और भूमिहार नेताओं के बीच पिछले कई दिनों से चल रही बहस के बीच केसी त्यागी के प्रवक्ता पद से इस्तीफे से जदयू को तगड़ा झटका लगा है। सालों से नीतीश कुमार का साथ देनेवाले केसी त्यागी ने अचानक से प्रवक्ता पद क्यों छोड़ दिया? बेशक केसी त्यागी ने अपने इस्तीफे की वजह निजी कारण बताया है। मगर इस खबर ने बिहार की सियासत में हड़कंप मचा दिया है। पार्टी ने चौधरी के भूमिहार विरोधी बयान से किनारा कर लिया। केसी त्यागी इस कदम से काफी नाराज थे। नीतीश सरकार के हर फैसले के साथ डटकर खड़े रहनेवाले केसी त्यागी बीते कुछ दिनों से बगावती तेवर दिखाने लगे थे। इंडिया गठबंधन ने इजराइल को हथियार की सप्लाई रोकने का बयान दिया तो केसी त्यागी ने भी इस पर साइन कर दिया। लेट्रेल एंट्री से लेकर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आरक्षण पर उन्होंने पार्टी से पूछे बिना बयान जारी कर दिया। इसे लेकर कई दिनों से केसी त्यागी और जदयू में खींचतान चल रही थी, जिससे तंग आकर उन्होंने इस्तीफा देना बेहतर समझा। केसी त्यागी के प्रवक्ता पद छोड़ने को बिहार चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। चुनाव से पहले जदयू पार्टी में बड़े फेरबदल करनेवाली है। केसी त्यागी का इस्तीफा भी इसी का एक हिस्सा है। आगामी चुनाव में त्यागी को कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। बिहार में जदयू और राजद की रेस में प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी की आमद की खबर से भी जदयू में बेचैनी है।
गुजरात का पेट्रो-नाश
पिछले सप्ताह गुजरात के चार प्रमुख पीएसयू के मेगा-विलय की घोषणा की गई। गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (जीएसपीसी), गुजरात स्टेट पेट्रोनेट लिमिटेड (जीएसपीएल) और जीएसपीसी एनर्जी लिमिटेड का विलय गुजरात गैस लिमिटेड में होगा। हालांकि, इसे पावर कॉरिडोर में पेट्रोनास ड्रीम ऑफ इंडिया के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार, यह सरकार द्वारा अपने बहुचर्चित जीएसपीसी की विफलता को प्रकाश में आने से रोकने के लिए एक फेस-सेविंग उपाय है। कंपनी की तुलना अक्सर मलेशिया की वैश्विक दिग्गज कंपनी पेट्रोनास से की जाती थी। दुर्भाग्य से, जीएसपीसी हजारों करोड़ के घाटे में चली गई, जो एक बड़ी राजनीतिक शर्मिंदगी बन गई। इस प्रमुख कंपनी का आईपीओ लॉन्च करने के दो असफल प्रयास हुए। कंपनी का नेतृत्व एक वरिष्ठ नौकरशाह कर रहा था। एक अन्य सलाहकार ने एक सूचीबद्ध गैस कंपनी को लेने और आवश्यक विंडो ड्रेसिंग को सक्षम करने तथा इसके मूल्य को बढ़ाने के लिए इसे इस कंपनी के साथ विलय करने का सुझाव दिया। गुजरात गैस द्वारा अधिग्रहण प्रबंधित किया गया क्योंकि कोई अन्य लेने वाला नहीं बचा था। जैसा कि विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई थी, विलय हो चुका है और अब किसी रहस्य के उजागर होने की संभावना लगभग शून्य है। सरकार जिसे पेट्रोनास कह रही है दरअसल वह पेट्रो नाश है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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