अजय भट्टाचार्य
दिल्लीशाही का मोहरा बनकर सीधे खरसावां जिला स्थित अपने पैतृक गांव झिलिंगोरा पहुंचे झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन साफ कर दिया है, वे राजनीति नहीं छोड़ेंगे और नई पार्टी बनाने के लिए तैयार हैं। दरअसल, झारखंड मुक्ति मोर्चा के इस खांटी नेता को भाजपा में शामिल करवाने को लेकर किसी भी हड़बड़ी से बचते हुए भाजपा इससे होनेवाले फायदे और नुकसान का आकलन कर रही है, क्योंकि झामुमो के कोर वोटर में सेंध आसान नहीं है, इसलिए नई रणनीति है कि चंपई अपनी पार्टी बनाएं और भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ें। इसको ज्यादा फायदेमंद माना जा रहा है। उसके लिए राज्य में अपने लिए खुद को पीड़ित बताकर चंपई को विक्टिम कार्ड खेलना होगा। मतलब अपने कार्यकाल के दौरान किए गए कामों और हेमंत सोरेन द्वारा अचानक हटाए जाने के मुद्दे को लेकर अपने समाज के लोगों के बीच सहानुभूति बटोरें, जिससे झामुमो के वोटबैंक में सेंध लग सके। इस दौरान भाजपा उनकी गतिविधियों को परखेगी कि जमीनी स्तर पर क्या वाकई उनके पक्ष में माहौल बन रहा है? झामुमो को तोड़ने का आरोप अपने मत्थे लेने से बचने के लिए भाजपा ने चंपई को नई पार्टी बनाने की सलाह तो दे दी मगर उसे यह भी डर है कि कहीं यह तीर उल्टा पड़ गया तो चंपई की जगह झामुमो के सर्वोच्च नेता शिबू सोरेन के पक्ष में सहानुभूति बन सकती है और इससे चंपई से ज्यादा भाजपा के खिलाफ भी लहर बन सकती है। इस पूरे मसले को करीब से साधनेवाले अमित शाह के हिटमैन और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा लगातार चंपई के संपर्क में हैं।
गुजरात पुलिस की परेशानी
गुजरात पुलिस के एक नए निर्देश में कहा गया है कि एक पुलिस उपनिरीक्षक या निरीक्षक अपने पूरे करियर के दौरान पांच साल से अधिक समय तक एक ही शहर या जिले में सेवा नहीं कर सकता है। यह डीजीपी कार्यालय के सत्ता के गलियारों में ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य के पुलिस बल में चर्चा का विषय है। इस निर्देश ने व्यापक चर्चा को जन्म दिया है, क्योंकि यह पिछले मानदंड से एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जिसके तहत पुलिसकर्मियों को लगातार तीन साल तक एक ही स्थान पर सेवा करने की अनुमति थी। यह उनके ३० से ३२ साल के करियर को प्रभावित कर सकता है। इसका मतलब है कि अधिकारियों को शहर से शहर या जिले से जिले में जाने के दौरान अक्सर अपने परिवारों को स्थानांतरित करना पड़ सकता है और अपने बच्चों के स्कूल बदलने पड़ सकते हैं। कुछ आईपीएस अधिकारियों सहित कई पुलिस वाले हैं, जो सीधे निर्देश से प्रभावित नहीं हैं, से गृह विभाग और डीजीपी विकास सहाय के समक्ष अपनी चिंताओं को उठाने की उम्मीद है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)