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तड़का : सदन में बच्चन

कविता श्रीवास्तव

अमिताभ बच्चन का बस नाम ही काफी है। अमिताभ वास्तव में इस सदी के सबसे लोकप्रिय कलाकार तो हैं ही, अद्भुत प्रतिभा के धनी भी हैं। उनके नाम की दुनियाभर में गूंज है। १९८४ में वे अपने बचपन के मित्र राजीव गांधी के कहने पर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे। वे उस वक्त अपने फिल्मी करियर के टॉप पर थे। उनका राजनीति में प्रवेश हर जगह चर्चा में आया। उन्होंने दिग्गज समाजवादी नेता हेमवतीनंदन बहुगुणा को पराजित करके तहलका मचाया था। आजकल उनके नाम से राज्यसभा में सरगर्मियां हैं। कुछ दिनों पहले राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सवाल पूछने के लिए जब ‘जया अमिताभ बच्चन’ नाम पुकारा तो जया बच्चन नाराज हो गईं थीं। उन्होंने कहा कि अमिताभ का नाम जोड़ना जरूरी नहीं है। उन्होंने स्त्री की अपनी पहचान का हवाला दिया। उसके कुछ दिन बाद खुद जया बच्चन ने अपना पूरा नाम ‘जया अमिताभ बच्चन’ कहकर सवाल पूछे, लेकिन शुक्रवार को जैसे ही उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने ‘जया अमिताभ बच्चन’ नाम कहकर संबोधित किया तो जया एकदम से भड़क उठीं। नाम संबोधन के तरीके को लेकर उन्होंने आपत्ति जताई और सभापति से कहा कि मैं एक कलाकार हूं। बॉडी लैंग्वेज समझती हूं। एक्सप्रेशन समझती हूं। सर, मुझे माफ करिएगा, मगर आपका टोन जो है, वह ठीक नहीं है। सभापति ने कहा कि आप बैठ जाएं। दोनों के बीच तीखी नोक-झोंक हुई। सत्ता पक्ष ने इस मामले पर जब शोर मचाया तो धनखड़ ने कहा, ‘मुझे पता है कि वैâसे निपटना है।’ उन्होंने कहा कि एक्टर डायरेक्टर का सब्जेक्ट है। आप वो नहीं देख पाती हैं, जो मैं यहां से देखता हूं। मैं किसी और की स्क्रिप्ट के आधार पर नहीं चलता, मेरे पास अपनी खुद की स्क्रिप्ट है। इस तरह सभापति भी पीछे नहीं हटे। सदन में नोक-झोंक होना आम बात है, लेकिन सदन के सभापति की अपनी गरिमा होती है। सभापति पद की मर्यादाओं का पालन भी जरूरी है। पक्षपात, तानाशाही और मनमानी पर सदस्यों का विरोध झेलना पड़ेगा। किसी को चिढ़ाने या उस पर तंज कसने का स्वभाव हर बार स्वीकार्य नहीं होता है। यदि सभापति की बात सही है तो उनके काम में यह दिखना भी चाहिए कि हां, वास्तव में वे किसी और की स्क्रिप्ट पर काम नहीं कर रहे हैं। शुक्रवार को राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खरगे ने पेरिस ओलिंपिक में विनेश फोगाट को अयोग्य घोषित किए जाने का मामला उठाने की कोशिश की तो सभापति ने उसकी अनुमति नहीं दी। जबकि नियमों में यह व्यवस्था है कि सदन में निर्धारित विषय को सस्पेंड करके किसी अन्य महत्वपूर्ण विषय पर बात हो सकती है। बीते दिनों भाजपा सांसदों को सभापति ने इसी नियम के तहत अनुमति दी थी। शुक्रवार को टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने भी विनेश फोगाट प्रकरण को उठाना चाहा तो सभापति ने उन्हें सदन से बाहर निकाल देने की चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि मुझे लेकर जो टिप्पणी की जा रही है वह मेरे ऊपर हमला नहीं है, बल्कि वह चेयर का अपमान है। इससे कुल मिलाकर यह समझ में आता है कि विपक्ष इस बार पूरी तरह से ताल ठोक कर खड़ा है। वह खामोश नहीं है, जनता की आवाज सदन में उठा रहा है। बीते दस वर्षों में विपक्ष कमजोर रहा, लेकिन इस बार विपक्ष मजबूत है इसीलिए सत्तापक्ष कुछ बौखलाया सा भी दिखता है।

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