मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का: हिंदुस्थानी बने रहें!

तड़का: हिंदुस्थानी बने रहें!

कविता श्रीवास्तव
कहते हैं जिसका जो नाम होता है, वह वैसा होने भी लगता है। उसके स्वभाव और आचरण पर नाम का प्रभाव पड़ता है। संभवत: इसीलिए अपने बच्चे का नाम रावण, दुर्योधन, शूपर्णखा, कैकेयी, मंथरा आदि शायद ही कोई रखता होगा। नामकरण में ग्रह, नक्षत्र और राशि को ध्यान में रखते हैं। क्योंकि पौराणिक संस्कार आधारित रहन-सहन और नामकरण की हमारे यहां परंपरा है। लेकिन अब बच्चियों के नाम भगवती, लक्ष्मी, सरस्वती, ललिता बहुत कम लोग रखते हैं। लड़कों के नाम भी एकलव्य, रमाशंकर, कुंजबिहारी, जगदंबिका आदि रखने का चलन कम हुआ है। आजकल ज्यादातर नाम टीवी सीरियल्स के पात्रों जैसे आधुनिक और सबसे अलग रखने का फैशन है। गूगल बाबा और कुछ उपलब्ध किताबों से भी नाम ढूंढे जाते हैं। यह सब हमारी आधुनिकता का असर है। सबसे ज्यादा प्रभावित किया है हमारी शिक्षा व्यवस्था ने। हमारे कई शैक्षणिक बोर्ड हिंदुस्थान की बुनियादी परंपराओं और हमारे देश के इतिहास से ज्यादा विदेशी संस्कृति और वहां की कथा-कथानक आधारित पाठ्यक्रम चलाते हैं। उनके पाठ्यक्रम में भारतीयता की कमी है। बच्चों की आरंभिक शिक्षा में ही अंग्रेजियत बहुत ही हावी है। अपनी संस्कृति के हमारा घर-परिवार जो कुछ सिखाता है, बच्चे उतना ही सीख पाते हैं। अब तो रिसर्च से भी यह साफ हुआ है कि बच्चे अपनी भाषा में सीख कर ही ज्यादा कुशाग्र और जानकार बनते हैं। क्योंकि अपनी भाषा में ज्ञान पाना सहज होता है। दूसरी भाषा थोपी गई सी लगती है। अंग्रेजी तो आगे चलकर फिर भी आ ही जाती है। केवल नाम और भाषा ही नहीं आधुनिक युग में हमारी पीढ़ी का बड़ा हिस्सा अपनी संस्कृति और परंपराओं से भी दूर हो रहा है। अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों में बच्चों को सेट करने का चलन भी बढ़ा है। लेकिन हिंदुस्थान की बृहदताप्रधान संस्कृति बहुत ही सुदृढ़ है। दुनिया इससे सीखना चाहती है और हम अपने बच्चों को इससे दूर रख रहे हैं। यहां ऋषि-मुनि और संतों की मजबूत पृष्ठभूमि है। देश में सर्वत्र विविधताओं के बावजूद राष्ट्रीय एकजुटता है। देश की शौर्य गाथा का लंबा इतिहास है। उत्तर में ग्रामीण संस्कृति के साथ लोग खूब विकासशील हैं। दक्षिण हिंदुस्थान में आधुनिकता के साथ ही अभी भी पौराणिक तौर पर नाम रखे जाते हैं। वहां पुरुष आज भी हिंदुस्थानी लुंगी पहनते हैं। महिलाएं साड़ी में सौंदर्य बिखेरती हैं। महाराष्ट्र की संत परंपरा, राजस्थान का साफा, पंजाब की पगड़ी, बंगाल का कुर्ता, लखनऊ की नवाबी, और पूर्वोत्तर की लोककला ये सब मिलकर हिंदुस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को संभाले हुए हैं। इसलिए यह तय है कि चाहे कोई कितना भी आधुनिक नाम रख ले, वह रहेगा हिंदुस्थानी ही। हम स्वयं की पहचान चाहे जितना भी बदल लें, हिंदुस्थान का नागरिक होना ही हमारे विकास और हमारी प्रतिमा की सबसे बड़ी पहचान है। दुनिया इसी को सम्मान देती है।

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