कविता श्रीवास्तव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि, आत्म-विकास के क्रम में, एक आदमी `सुपरमैन’ बनना चाहता है, फिर `देवता’ और `भगवान’ और `विश्वरूप’ की आकांक्षा कर सकता है, लेकिन कोई निश्चित नहीं है कि आगे क्या होगा? उन्होंने सुझाव दिया कि अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट रहें और मानव जाति के कल्याण के लिए लगातार काम करें, क्योंकि विकास और मानव महत्वाकांक्षा की खोज का कोई अंत नहीं है। मानवता की सेवा के लिए प्रयास करना चाहिए। मोहन भागवत के इस बयान से राजनीतिक हलकों में खासी चर्चा हो रही है, क्योंकि कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें परमात्मा ने भेजा है। उनके इस बयान पर कांग्रेस ने कई बार कटाक्ष किया और कहा कि वे `बायोलॉजिकल’ नहीं है और उन्हें परमात्मा ने भेजा है, यह बात वे खुद ही कहते हैं। संघ प्रमुख ने लोकसभा चुनाव के कुछ दिनों बाद `अहंकार’ पर भी खरी-खरी सुनाई थी। इसका यही आशय लगाया गया कि सत्ता पाकर अहंकार की भाषा बोलना ठीक नहीं है। इस पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का वह बयान याद आता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, मगर यह देश रहना चाहिए। इन बातों को गहराई से समझने पर यह ध्यान में आता है कि हमें हर हाल में अपने मौलिक स्तर को बनाए रखना चाहिए। अपने स्वभाव, अपने आदर्श और अपने व्यवहार को समयानुकूल बलवान परिस्थितियो में अवसरवादी बनकर बदल नहीं देना चाहिए। घमंड करना और दूसरों को अपमानित करने की आदत ठीक नहीं है, क्योंकि परिस्थितियां बदलती रहती हैं और घमंड भी चूर हो जाता है। इसलिए एकाएक शक्ति प्रकार `सुपरमैन’ बनने की कोशिश करना या स्वयं को `भगवान’ बताना अनुचित है। हम जानते हैं कि `सुपरमैन’ असाधारण या अलौकिक शक्तियों वाला एक सुपरहीरो है, जो कॉमिक्स पुस्तकों में दिखाई देता है। वह एक विचित्र पोशाक पहनता है, एक कोडनेम का उपयोग करता है और असाधारण क्षमताओं की सहायता से बुराई से लड़ता है। इसलिए जब कोई शक्ति प्राप्त हो तो अभिमान करने या किसी को अपमानित करने की बजाय बुराइयां खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छाइयों को लाने के प्रयत्न करने चाहिए। इन सब के साथ स्वयं को सरल बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है। बड़े-बुजुर्ग और गुरुजन भी यही सीख देते हैं। मोहन भागवत की बात पर गौर करें तो वे सही फरमा रहे हैं कि कभी भी अपने काम से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। इसीलिए सत्ताधारियों को पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य हर क्षेत्र में लगातार काम करने का प्रयास करना चाहिए। काम का कोई अंत नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर काम करना ही एकमात्र समाधान है। सभी को समाज के कल्याण के लिए लगातार काम करना चाहिए। काम की सफलता पर अगला काम करने की तैयारी रखनी चाहिए। यही मानव धर्म है। कर्म की राह में स्वयं को `सुपरमैन’ समझने की गलती से बचना चाहिए।