मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : नीली आंखों वाली और महाकुंभ

तड़का : नीली आंखों वाली और महाकुंभ

कविता श्रीवास्तव
महाकुंभ में धर्म-अध्यात्म, आस्था के साथ ही साधु-संतों की अद्भुत कलाबाजियां, उनके विचित्र व रहस्यमयी रहन-सहन, उनके असीम गुस्से और उनके विवाद भी खूब चर्चा में हैं। कई मामले में साधु और असाधु विवाद भी हुआ है। अनेक रोचक खबरों के बीच इस बार इंदौर से फूल बेचने आई नीली आंखों वाली खूबसूरत मोनालिसा की तस्वीरें भी वायरल हुर्इं। उनके साथ सेल्फी लेने और रील बनाने वालों ने इतनी होड़ लगाई कि उनके पिता का फूल-माला का धंधा प्रभावित हुआ। अंतत: पिता ने अपनी बेटी मोनालिसा को अपने घर इंदौर वापस भेज दिया। इसी तरह इंजीनियर बाबा और आईआईटी बाबा के नाम से चर्चा में आए हरियाणा के अभय सिंह ने सुर्खियां बटोरीं। करोड़ों का पैकेज छोड़ अभय सिंह अध्यात्म की राह चलने के लिए जूना अखाड़ा से जुड़े। उनके इंटरव्यू और बयानों ने सोशल मीडिया पर धूम मचाई, लेकिन गुरु पर की गई टिप्पणी के कारण उन्हें अखाड़े से निकाल दिया गया है। अब वे गुप्त साधना में हैं। उनकी मानसिक स्थिति पर भी टिप्पणी हुई है। इसी बीच ‘सुंदर साध्वी’ के रूप में चर्चित हुर्इं उत्तराखंड की हर्षा रिछारिया ने सोशल मीडिया पर धूम मचाई, पर उनकी खूबसूरत छवि का जादू तब धुलता नजर आया जब उन्हें फफक-फफक कर यह कहना पड़ा कि वे साध्वी नहीं हैं। उन्हें साध्वी कहे जाने पर आनंद स्वरूप महाराज ने आपत्ति उठाई। उनका कहना है कि महाकुंभ अध्यात्म और ज्ञान का संगम है। यहां रूप की व्याख्या का कोई महत्व नहीं है। साधु बनना आसान नहीं है। संन्यास की अनुशासित प्रकिया है और वह कठिन परीक्षा है। भगवा पहन कर या रूप बदल कर कोई भी साधु नहीं बन सकता है। महर्षि वाल्मीकि भी पहले डाकू थे। उन्होंने कठिन तपस्या की तब महात्यागी बने। गहन अध्ययन किया। उनकी लंबी साधना का परिणाम है कि वे संस्कृत रामायण के प्रथम रचयिता हुए जो आदिकवि के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। हर्षा रिछारिया निरंजनी अखाड़े के संत वैâलाशनाथ गिरी की शिष्या हैं। ३० वर्षीया हर्षा रिछारिया मॉडल, एंकर, एक्टर, योगा टीचर रही हैं। निरंजनी अखाड़े की पेशवाई में वह संतों के साथ रथ पर बैठी दिखीं तो ट्रोलर्स के भी निशाने पर आ गर्इं। मीडिया ने उन्हें ‘सुंदर साध्वी’ बताकर ट्रोल किया। जब विरोध हुआ तो कहने लगीं मैं साध्वी नहीं हूं, केवल दीक्षा ग्रहण कर रही हूं। आनंद स्वरूप महाराज ने कहा कि मॉडल को संत के रथ पर बैठाना उचित नहीं है। इससे समाज में गलत संदेश फैलता है। साधु-संतों को इससे बचना चाहिए। विवाद के बाद हर्षा रिछारिया ने कैलाशानंद महाराज का पंडाल छोड़ दिया है। अब अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी के संरक्षण में रहेंगी। खैर, सोशल मीडिया का दौर है, वह कुछ भी उछाल देता है। तभी तो कुछ साधुओं ने पास आए मीडिया वालों को खदेड़ दिया। महाकुंभ में धर्म, अध्यात्म और संस्कृतियों का संगम होता है। मन में शुद्ध श्रद्धाभाव और समर्पित आस्था रखनेवाले तो ऐसी खबरों को देख बस यही गुनगुनाएंगे-
देखो ओ दीवानों तुम ये काम ना करो
राम का नाम बदनाम ना करो…

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