कविता श्रीवास्तव
व्यापार करना और धार्मिक-आध्यात्मिक उपक्रम चलाना दोनों ही अलग-अलग विषय हैं। व्यापार का मकसद होता है मुनाफा कमाना और धन संपत्ति बढ़ाना, जबकि धार्मिक-आध्यात्मिक आयोजनों का मकसद होता है कि लोगों में संस्कारों, परंपराओं की सीख देना। ईश्वरत्व के प्रति समर्पित होने का ज्ञान बढ़ाना। लोगों को संयम, शालीनता, अनुशासन की सीख देना। उनमें त्याग, परोपकार और मानवता का भाव बढ़ाना। अमूमन धार्मिक आध्यात्मिक कार्यक्रमों में लोग स्वेच्छा से आते हैं। सामाजिक जीवन में यही परंपरा है। इसके लिए लोगों को प्रेरित करना भी ठीक है। विशेष आयोजनों में आमंत्रित भी किया जाता है, पर आजकल अनेक बाबा, कथाकार, प्रवचनकार या धर्मगुरु ऐसे हैं जो अपनी ब्रांडिंग और मार्केटिंग करके लोगों की भीड़ बुलाने पर जोर देते हैं।
गौरतलब है कि कई कार्यक्रमों में विभिन्न उपक्रमों के रेट तय रहते हैं। प्रश्न पूछने, आशीर्वाद पाने, कोई अनुष्ठान करवाने आदि की मोटी फीस ली जाती है। त्याग, सेवा, मानवता, परोपकार और जन-कल्याण की तमाम बातें केवल बातें होती हैं। वहां शुद्ध व्यापार दिखता है। पैसे खर्च करनेवाला आगे रहता है। अटूट विश्वास, पूरी आस्था और संपूर्ण समर्पण जैसे किसी भाव या श्रद्धा के लिए वहां कोई स्थान नहीं दिखता है। ऐसे में कमजोर आदमी दयाभाव की उम्मीद में वहां मस्तक झुकाए ताकता रहता है और वह चरण धूल की उम्मीद से जमीन पर झुकता है। हाथरस में इसी चरण धूल पाने के लिए भगदड़ मची और १२१ लोगों की जान चली गई।
अपना उद्धार होने और जीवन में अच्छाइयां आने की बात पर जमा होकर जब लोग ऐसे हादसे का शिकार बन जाएं तो यह अनर्थ ही हुआ। ऐसे में राहत के लिए न आयोजक आगे आए न बाबा। उन्होंने इन्हीं भक्तों के दम पर अकूत संपत्ति अर्जित की है, पर अब कोई उपकार, राहत, मदद पहुंचाने उनकी ओर से नहीं आया है। हमने देखा कि बाबा लोगों को हैंडपंप लगवा कर पानी पिलवाता था। उससे वह रोगों के खत्म होने का दावा करता था। यदि उसकी बात सही हैं तो तमाम हॉस्पिटल, दवाखाने, उपचार केंद्र तो बंद हो जाना चाहिए। इसी तरह ईश्वरीय शक्ति के माध्यम से पीड़ितों का उपचार (`हीलिंग’) करने के नाम पर अक्सर कई लोग विभिन्न प्रकार की ट्रिक्स का उपयोग करते हैं।
दरअसल, ऐसे लोग केवल गुमराह करते हैं और अंधश्रद्धा बढ़ाते हैं। ताज्जुब यह है कि ऐसे ढोंग-पाखंड में ढेर सारे लोगों का विश्वास है। यदि किसी बाबा के चरण की धूल पाकर ही लोगों का कल्याण होता है तो लोगों को जीवन में दूसरे परिश्रम करने की क्या आवश्यकता है? यह बाबा मंच से ग्राफिक्स के जरिए लोगों को सुदर्शन चक्र भी दिखाता था। वह अपने मुख से प्रलय लाने की बात भी करता था। इस तरह की अतिशयोक्ति करनेवाला लोगों को दिग्भ्रमित नहीं कर रहा तो और क्या कर रहा है? श्रद्धा बढ़ाने वालों के खिलाफ समय रहते ही शासन-प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसे उपक्रमों पर रोक लगनी चाहिए।