कविता श्रीवास्तव
मल्लिकार्जुन खड़गे देश के वरिष्ठ राजनीतिक नेता हैं। वे देश की बहुत बड़ी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। यदि वे कोई बात कह रहे हैं तो उसकी गंभीरता को समझना होगा। राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर उन्होंने राज्यसभा की कार्रवाई में सबसे बड़ा बाधक होने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सदस्यों को समय देने की बजाए सदन में सबसे ज्यादा वे खुद ही बोलते हैं। विपक्षी दलों के सदस्यों को बोलने नहीं देते हैं। निष्पक्षता नहीं निभाते हैं। पक्षपात करते हैं। सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करते हैं। तृणमूल कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव ने इन बातों की पुष्टि करते हुए कहा है कि राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों पर सेंसरशिप लगाई जाती है। उन्होंने कहा कि सभापति ने उन्हें एक मिनट भी बोलने नहीं दिया। सभापति के बर्ताव पर आपत्ति उठाते हुए विपक्ष ने एकजुट होकर हमला बोला है। विपक्ष ने राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस दी है। देश के उपराष्ट्रपति के बारे में ऐसी बातें सुनकर अफसोस होता है। जगदीप धनखड़ भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे हैं। इससे पहले वे जनता दल और कांग्रेस में भी रह चुके हैं। राजनीति में आने से पहले वे अच्छे वकील भी रहे हैं। वे विभिन्न हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में बतौर वकील प्रैक्टिस भी कर चुके हैं। वे राजस्थान के जाट समुदाय से हैं। वे विधायक और सांसद रहे हैं। चंद्रशेखर की सरकार में संसदीय कार्य मंत्री भी रहे हैं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में भी वे काम कर चुके हैं। फिलहाल, वे देश के १४वें उपराष्ट्रपति हैं। राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करते हुए उनकी तत्परता और मुखरता अक्सर चर्चा में रहती है। कई बार वे विपक्ष को समेटते हुए से लगते हैं। इसी से परेशान होकर विपक्ष ने उन्हें पद से हटाने के लिए अनुच्छेद ६७ (बी) के तहत नोटिस दी है। चर्चा है कि जगदीप धनखड़ के आचरण के कारण विपक्ष ने ऐसा असाधारण कदम उठाया। मुद्दा यह है कि सभापति ने विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को बोलने की अनुमति नहीं दी। जबकि सदन के नेता जेपी नड्डा ने कांग्रेस पर अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस की मदद से देश को अस्थिर करने का आरोप लगाया था। इस पर खड़गे जवाब देना चाहते थे, पर धनखड़ ने उन्हें मौका नहीं दिया। यह पहली बार नहीं हुआ है। विपक्ष लंबे समय से यह झेलता आ रहा है। इस बार विपक्ष ने सभापति की मनमानी का तगड़ा विरोध किया है। संविधान के अनुच्छेद ६७ (बी) में यह प्रावधान है कि राज्यसभा से प्रस्ताव पारित करके उपराष्ट्रपति को पद से हटाया भी जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि यह प्रस्ताव राज्यसभा से बहुमत से पारित हो और लोकसभा से भी इस पर मंजूरी ली जाए। हालांकि, सदस्यों की संख्या के हिसाब से यह प्रस्ताव पारित होना संभव नहीं है। भाजपा व साथी दलों की संख्या अधिक है। फिर भी यह प्रस्ताव लाकर विपक्ष ने बर्दाश्त करने की सीमा खत्म होने का संकेत जरूर दिया है।