कविता श्रीवास्तव
प्रशासन या नौकरशाही अपने कार्यक्षेत्र में स्वतंत्र और अधिकारप्राप्त व्यवस्था होती है, लेकिन हर काम में नियम-कानून ही सर्वोपरि होता है। प्रशासनिक महकमे में हम अक्सर आम लोगों की न सुने जाने और अफसरों की मनमानी की खबरें सुनते हैं, पर कानून इतना तगड़ा है कि अफसर हर जगह मनमानी नहीं कर सकते हैं। हमारे लोकतंत्र में संविधान के आधारस्तंभ कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका तीनों के कामकाज स्वतंत्र जरूर हैं। इसके बावजूद संविधान ने इनमें एक-दूसरे पर नजर रखने और गलत काम को रोकने के पर्याप्त प्रावधान बनाए हैं। प्रशासनिक अफसरों की मनमानी उनकी मुश्किलें वैâसे बढ़ा सकती हैं, यह मध्य प्रदेश में हाल ही में दिखा। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक जिला कलेक्टर को इसलिए डपटा है कि अदालत में उन्होंने हाजिरी नहीं दी और सीधे जज को चिट्ठी लिख दी। अब कलेक्टर साहिबा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। खबर है कि उनकी यह गलती उन पर भारी पड़ने वाली है। जमीन विवाद से जुड़े मामले में उन्होंने हाई कोर्ट जज को सीधे चिट्ठी लिख दी थी। कोर्ट रूम में सुनवाई के दौरान एडीएम ने जब वह चिट्ठी दिखाई तो जज साहब ने भारी नाराजगी व्यक्त की और फटकार लगाई। उन्होंने तल्ख लहजे में कहा कि अफसरों की इतनी हिम्मत बढ़ गई कि सीधे हाई कोर्ट के जज को पत्र लिखें। यह ठीक नहीं है। खबरों के मुताबिक, उन्होंने कलेक्टर को सस्पेंड करने की बात भी कही। अदालतों में सुनवाई के दौरान उपस्थित न होने के लिए निर्धारित प्रक्रिया होती है। नर्मदापुरम जिला कलेक्टर ने कोर्ट को सीधे पत्र लिखकर जमीन के मामले में पेशी से छूट मांगी थी। यह मामला जमीन में नामों की गड़बड़ी से जुड़ा था। मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि कलेक्टर, नर्मदापुरम का यह आचरण अक्षम्य है। अदालत ने एडीएम के आचरण पर भी नाराजगी जताई, जिन्होंने खुली अदालत में वह लिफाफा लहराया था। एडीएम को यह गलतफहमी थी कि चूंकि यह पत्र कलेक्टर द्वारा सीधे अदालत को संबोधित करके लिखा गया है, इसलिए अदालत बहुत प्रभावित होगी और कलेक्टर, नर्मदापुरम द्वारा लिखे गए पत्र के आगे ठंडी पड़ जाएगी। कोर्ट ने अधिकारियों के आचरण के बारे में कड़ी टिप्पणी की। इस घटना से यह समझना चाहिए कि शीर्ष पदस्थ अधिकारी भी आम जनता के सेवक के रूप में कार्यरत होते हैं। प्रशासन का अर्थ है लोगों की देखभाल करना, पदस्थ व्यक्ति द्वारा दूसरों की सेवा करना। प्रशासन का मूल अभिप्राय सामाजिक हित की दृष्टि से सरकारी सेवाएं प्रदान करना है। नौकरशाही एक सरकारी प्रशासन है। किसी भी बड़े संस्थान को नियंत्रित करने वाली प्रशासनिक प्रणाली बहुत जिम्मेवार होती है। चाहे वह सार्वजनिक रूप से स्वामित्व वाली हो या निजी स्वामित्व वाली हो। अदालतें हमारे नियम-कानून और संविधान की पालक हैं। वे उनकी रक्षक हैं। जिनके पास सबसे अधिक शक्ति है वे सबसे ऊपर हैं, लेकिन नियमों से बढ़कर कोई नहीं है। हमें अपनी न्यायिक प्रणाली और हमारी न्यायिक व्यवस्था का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह समय-समय पर नियम-कानून, संविधान के महत्व से सबको अवगत कराती रहती है।