कविता श्रीवास्तव
हमारे देश में उत्सवों के उमंग में बैंडबाजे, शहनाई, ढोल-नगाड़े जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों पर लोग वर्षों से झूमते आए हैं। उत्सवों में जम के नाचने का वर्षों से चलन रहा है। लेकिन अब बारात, जुलूस, शोभायात्रा और अन्य उत्सवों में डीजे साथ ले चलने का पैâशन है। डीजे का धमाकेदार संगीत बजा नहीं कि क्या जवान, क्या बूढ़े सब थिरक उठते हैं। फिर एक से एक नर्तन कला उभरती दिखती है। डीजे बजते ही अनेक छिपी हुई प्रतिभाएं खुलकर सामने आती हैं। कोई नागिन डांस की कला दिखाता है, तो कोई शेक डांस, तो कोई भांगड़ा आजमाता है। बदन तोड़ू ही नहीं बदन खोलू डांस भी कुछ लोग कर जाते हैं। कोई डांस के नशे में होता है तो कोई नशे के मारे डीजे के डांस में घुस जाता है। फिर तो वही सबसे बढ़िया स्टेप्स दिखाता है। ‘डीजे वाले बाबू…मेरा गाना बजा दे…’ भी इसी कारण खूब चला। डीजे के दीवाने ऐसे हैं कि पसंदीदा डीजे न बजाने पर उत्तरी हिंदुस्थान में साधारण नोक-झोंक और बहस से लेकर मारपीट और गोलीबारी की घटनाएं भी हुई हैं। लेकिन हाल ही में यही डीजे अब मौत का कारण भी बन रहा है। श्रावण मास में शिव की भक्ति और श्रद्धाभाव लेकर निकले कई लोगों को डीजे ने अपना शिकार बना लिया। उनकी श्रद्धा पूरी नहीं हो सकी और उन्हें ही श्रद्धांजलि देने की नौबत आ पड़ी। मेरठ में डीजे वाहन हाईटेंशन लाइन से टच होने से पांच कांवड़ियों की मौत हुई। रामपुर जिले में हाईटेंशन लाइन छूने से डीजे में करंट उतरा और तीन कांवड़िए झुलस गए। बुलंदशहर के पहासू इलाके में बिजली का तार टूटा लेकिन कांवड़िए बाल-बाल बच गए। डिबाई इलाके में डीजे का कॉलम गिरने से बच्चे की मौत हुई। दानपुर क्षेत्र में डीजे पर बैठा युवक पेड़ की टहनी लगने से नीचे गिरा, मौत हुई। इन हादसों की प्रमुख वजह डीजे है। सावन के पावन महीने में बाबा बुलडोजर ने कांवड़ियों का फूलों से स्वागत किया। उनके लिए भरपूर सुविधाओं और पर्याप्त व्यवस्था करने का दावा भी ठोका। लेकिन उनके ही राज्य में इसी पवित्र श्रावण मास में बिजली के करंट का शिकार बने शिवभक्त (कांवड़िए) शिवालय नहीं पहुंच पाए। वे सीधे स्वर्ग सिधार गए। कंधे पर गंगाजल लेकर निकले ये भक्त बिजली के खंभों की चपेट में आ गए। भक्ति के उमंग और वे डीजे की धुन में इतने मस्त थे कि बिजली के करंट ने कब उन्हें चपेट में लिया, पता ही नहीं चला। श्रद्धाभाव से उत्साह में निकले इन कांवड़ियों को श्रद्धांजलि देने की नौबत क्यों आई? ये अत्यंत ही दु:खद घटनाएं हैं और चिंतनीय भी। कांवड़िए तो रास्तों से अनजान थे। लेकिन व्यवस्थाओं ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया? कहीं ऐसा तो नहीं कि व्यवस्था में लगे बाबू भी डीजे की धुन पर मदमस्त हो गए। बाबा भोलेनाथ के ‘बोलबम’ पर किसी का दम न टूटे यह सुनिश्चित करना होगा।