मुख्यपृष्ठखबरेंतड़का : बहस का गला मत घोंटो!

तड़का : बहस का गला मत घोंटो!

कविता श्रीवास्तव

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दो मीडिया हाउसों के विवाद की सुनवाई में कहा है कि किसी भी सार्वजनिक बहस का गला नहीं घोंटा जाना चाहिए। खासकर पत्रकारिता व सोशल प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध का आदेश एकतरफा नहीं होना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन न हो, यह जरूरी है। मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे मामले पेचीदे भी हो जाते हैं। इन्हें सार्वजनिक हित की दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए और एकपक्षीय पैâसला नहीं होना चाहिए। यही बात हम राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी समझें, क्योंकि इन दिनों चुनाव के वक्त विरोधी पार्टियों के कई नेताओं के खिलाफ मामले तेज हुए हैं और उन्हें सलाखों के पीछे धकेला जा रहा है। इससे वे चुनावों में न अपनी बात कह पा रहे हैं, न ही चुनावी प्रचारों में भाग ले पा रहे हैं। उन्हें मंच पर आने नहीं मिलेगा, क्योंकि हिरासत के दौरान ऐसा करने की अनुमति नहीं है। कोई हर मंच पर सब कुछ बोले और कोई बोल ही न पाए, यह भी कहीं न कहीं व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करता है। इसके परिप्रेक्ष्य में इससे पहले के विभिन्न केसों की समीक्षा की जानी चाहिए कि उनके अंतिम परिणाम क्या निकले। कितने मामलों में सजा हुई और कितने मामलों में लोगों को सबूतों के अभाव में बरी किया गया। कई लोगों को दल बदलने के बाद उनके खिलाफ जारी मामले में `क्लीन चिट’ भी मिली है। खैर, हर मामले की सच्चाई को सामने लाना जांच एजेंसियों का दायित्व है और जनहित में जरूरी भी है। लेकिन चुनावों में पक्ष-विपक्ष ही नहीं आम नागरिक को भी अपनी बात रखने, अपने विचार व्यक्त करने, लोगों से संपर्क-संवाद साधने का संवैधानिक अधिकार है। इससे रोका जाना मौलिक अधिकारों का हनन ही तो है। ऐसे मामलों में अदालतों का भी महत्वपूर्ण दायित्व बनता है, क्योंकि वे हमारे संविधानों की संरक्षक हैं। उनकी पालक हैं। वैसे, हमने देखा है कि हिरासत में रहते हुए भी कुछ लोग चुनाव लड़ते हैं। दोषी को सजा अवश्य मिले। पर निर्दोष परेशान न होने पाए। क्योंकि चुनाव पांच वर्षों बाद आते हैं। इसलिए इससे किसी को साजिशन वंचित न रखा जाए यह भी सुनिश्चित होना चाहिए। उम्मीद है कि हमारी संवैधानिक प्रक्रिया इस पर अवश्य विचार करेगी, ताकि हमारा लोकतंत्र सुरक्षित रहे। आम व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र हो। लोकतंत्र पर कोई तानाशाही हावी न होने पाए। मुद्दों पर बहस होती रहे और हम दुनिया के सामने लोकतंत्र का स्वतंत्र और निर्विवाद आदर्श प्रस्तुत कर पाएं।

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