मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : अहंकार विजयी नहीं होता

तड़का : अहंकार विजयी नहीं होता

कविता श्रीवास्तव

शनिवार को नवरात्रि समापन के साथ ही विजयादशमी का पर्व भी देश में धूमधाम से मनाया गया। अनेक जगहों पर, शहर-गांवों में रावण के पुतले का दहन किया गया। इस तरह एक बार फिर अहंकार और असत्य की पराजय तथा सत्य की विजय के प्रतीक का पर्व मनाया गया। रावण बुराइयों का प्रतीक है, इसलिए वह मारा गया। रावण ने अनेक उपलब्धियां हासिल की थीं और उसकी नाभि में अमृत छुपा हुआ था। यह राज केवल उसके भाई विभीषण को पता था। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री रामचंद्र भगवान बार-बार उसकी भुजा पर हमला कर रहे थे। तब विभीषण ने बताया कि उसकी नाभि पर तीर चलाने से ही उसका अंत होगा। इस तरह विद्वान, शक्तिशाली और तपस्वी रावण का वध हुआ। रावण ने कहा कि राम इसलिए विजय हुए क्योंकि उनके भाई लक्ष्मण उनके साथ थे और वह स्वयं इसलिए पराजित हुआ क्योंकि उनका भाई विभीषण उनके साथ नहीं था। इसलिए जहां भी हमारे भाई, हमारे साथी, हमारे लोग हमारे साथ होंगे हम कोई भी विजय पा सकते हैं। काम, क्रोध, अहंकार और नकारात्मकता हमें पराजय की ओर ले जाती है। यदि हरियाणा के ताजा चुनावों पर गौर किया जाए तो कांग्रेस अच्छे मतों से अच्छी सीटें पाकर भी पूर्ण बहुमत पाने से थोड़ा सा पिछड़ गई। वहां भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर विजय हासिल की और इंडिया गठबंधन के साथी देखते रह गए क्योंकि कांग्रेस ने वहां इंडिया गठबंधन के धर्म का पालन नहीं किया। अपने साथियों को, अपने सहयोगियों को अपने साथ नहीं रखा। इस तरह मुंह के पास तक आया हुआ निवाला भी छीन लिया गया कुछ ऐसा ही नजर आया। शिवसेना नेता संजय राऊत ने बीते दिनों इसी बात को जोरदार तरीके से उठाया है। यह बात आगामी दिनों में महाराष्ट्र और झारखंड व अन्य राज्यों में होनेवाले चुनावों के मद्देनजर बहुत महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव किसी भी वक्त घोषित हो सकते हैं। यह ऐसा चुनाव है जिस पर देश की सभी राजनीतिक पार्टियों और पूरे देश की निगाह रहेगी। संजय राऊत ने सही कहा है कि ऐसे में कोई भी पार्टी अहंकार में न रहे और गठबंधन धर्म का पालन करे, ताकि हरियाणा जैसी पुनरावृत्ति न हो। देश में मजबूत सत्ता और मजबूत विपक्ष दोनों ही जरूरी है। पिछले १० वर्षों में विपक्ष बहुत कमजोर रहा, लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में गठबंधन की वजह से विपक्ष ने मजबूत स्थिति हासिल की। लोकतंत्र में पार्टियां मजबूत रहें। जनता की आवाज मजबूती से उठे। गठबंधन के टुकड़े-टुकड़े न हों यह जरूरी है। घर में ही एकमत न होने से रावण मारा गया। वह प्रतिवर्ष मारा जाता है और प्रतिवर्ष जलाया जाता है। क्योंकि वह बलशाली होते हुए भी अहंकारी था। कोई भी अहंकार में न रहे और अपने धर्म के पालन करने से वंचित न हो, रावण दहन पर यही संकेत है।

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