कविता श्रीवास्तव
भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में सड़कों पर, बस्तियों में तथा सरकारी भवनों पर भारी जनाक्रोश के बाद हिंसा, तोड़-फोड़, आगजनी, हत्या जैसी वारदातों के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा और उन्हें अपना देश छोड़कर भागना पड़ा। उन्होंने भारत की शरण ली है, लेकिन उनके खिलाफ उनके ही देश में हत्या, अपहरण, हिंसा जैसी गतिविधियों के लिए मामले चलाए जा रहे हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि होने के कारण उनके प्रत्यर्पण की मांग बांग्लादेश से होने लगी है। हम सब जानते हैं कि बांग्लादेश का जन्म पूर्वी पाकिस्तान को तोड़कर हुआ है। इसमें भारत की अहम भूमिका रही है। शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान के वक्त से ही शेख परिवार का भारत से अच्छा संबंध रहा है। हसीना के शासनकाल में भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि हुई थी। अब वही संधि उन्हीं के लिए भारी पड़ रही है। फिलहाल, वह अपने देश की राजनीतिक उठापटक में फंस गई हैं। हसीना सरकार के पतन की वजह आरक्षण विरोधी आंदोलन से उपजा आक्रोश समझा जाता है। तीन सप्ताह में हुई आरक्षण विरोधी हिंसा में तीन सौ से अधिक लोगों की जानें चली गर्इं। इसकी वजह एक लोकतांत्रिक नेतृत्व का तानाशाह बनना भी बताया जाता है। दरअसल, बांग्लादेश में हसीना के लगातार शासन के खिलाफ एक अलग ही जनाक्रोश भी बनाया जा रहा था। समय-समय पर इसके संकेत भी मिलते रहे। आरक्षण को लेकर जब छात्रों ने सड़कों पर हिंसा शुरू की और सरकारी भवनों पर कब्जा करते चले गए तब भी, लेकिन शेख हसीना ने जनाक्रोश को गंभीरता से नहीं लिया। जनमानस में यह नकारात्मक भाव सात महीने पहले हुए चुनाव के बाद से खूब पैâला कि उनकी आकांक्षाओं के साथ खिलवाड़ हो रहा है। वहां आम चुनावों के बाद से ही देश में जनाक्रोश बहुत ज्यादा बढ़ गया। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी और अन्य ने चुनावों का बहिष्कार किया था। चुनावों के बाद विपक्षी दलों ने प्रचार किया कि चुनावों में धांधली हुई है। इसी बात ने चौथी बार सत्ता में आई शेख हसीना की चुनावी कामयाबी को जहर बना दिया। उधर पाकिस्तान और चीन जैसे देशों ने छात्रों के आंदोलन के जरिए आग में घी डालने का काम किया। शेख हसीना इस आंदोलन के चरम तक पहुंचने का अंदाजा नहीं लगा पार्इं। आरक्षण आंदोलन को दबाने के लिए की गई सख्ती ने भी आग में घी का काम किया, जबकि सेना का रुख आंदोलनकारियों के प्रति नरम ही रहा। विपक्षी दल उनके खिलाफ लगातार लगे हुए थे और सेना भी परोक्ष रूप से विपक्षी दलों के साथ थी। यह बात उनके बांग्लादेश छोड़ते ही तत्काल सारा मामला शांत होने और अंतरिम सत्ता स्थापित होने से सिद्ध हुई है। उनके खिलाफ कई मामले चलाकर उनको पूरी तरह घेरने की तैयारी हो रही है। भारत ही उनके लिए सुरक्षित स्थान समझा जा रहा है, लेकिन प्रत्यर्पण संधि के कारण भारत के सामने असमंजसता की स्थिति हो सकती है कि वह उन्हें बांग्लादेश को सौंपे या मना कर दे।