कविता श्रीवास्तव
चुनाव में विजयी होने पर लोग जश्न मनाते हैं। जनता से संवाद साधते हैं और अपने काम पर लग जाते हैं, लेकिन जो पराजित होते हैं वे कुछ समय तो सदमे में रहते हैं। इसके बाद धीरे-धीरे आत्मचिंतन करते हैं। उसके बाद कुछ विश्लेषण करते हैं, फिर पराजय के कारण ढूंढ़ने लगते हैं। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा के आम चुनाव में महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी ने जबर्दस्त सफलता हासिल की। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने मिलकर महायुति को अच्छी-खासी पटखनी दी। इस पटखनी से एकनाथ शिंदे का गुट, भारतीय जनता पार्टी और खासकर देवेंद्र फडणवीस तथा अजीत पवार गुट की महायुति को जोरदार झटका लगा। सदमे में आए शिंदे ने तो कह दिया कि भारतीय जनता पार्टी और मोदी ने जो ४०० पर का नारा दिया था, उसी के कारण पराजय हुई। इस चुनावी झटके से देवेंद्र फडणवीस इतने आहत हुए कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इधर अजीत पवार ने महायुति की पराजय का जो कारण बताया, वह सुनकर ही लोगों को बड़ा ताज्जुब हुआ। उन्होंने पराजय का कारण कांदा यानी प्याज को बता दिया। लोग सोचने लगे आखिर बेचारे कांदा ने क्या वांदा किया? उनके कहने का मतलब था कि प्याज किसानों की नाराजगी के कारण महायुति की चुनावी हार हुई। कुछ लोग कह रहे हैं कि `खिसियानी बिल्ली खंभे नोचे…।’ वैसे, प्याज उत्पादन में महाराष्ट्र अग्रणी है। यहां का प्याज निर्यात भी होता है, लेकिन बेतहाशा फल-सब्जियों के दाम बेकाबू होने पर महाराष्ट्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। अजीत पवार की दलील है कि इसी प्रतिबंध ने चुनाव में उनकी `वाट’ लगा दी अर्थात चुनावी नुकसान किया। किसान नाराज हुए और उन्होंने मत नहीं दिया। खैर, ये उनका आकलन हो सकता है, लेकिन राज्य के किसान ही नहीं आम लोग भी महंगाई और बेरोजगारी से खूब परेशान हैं। राज्य में पार्टियों में विघटन करके सत्ता छीनने वालों पर भी मतदाताओं का गुस्सा फूटा है। केवल कांदा अकेले चुनाव नहीं हरा सकता। किसानों की नाराजगी के और भी कई कारण हैं। हालांकि, किसानों के भारी दबाव और उनकी नाराजगी को देखते हुए राज्य सरकार ने निर्यात से अब प्रतिबंध हटा लिया है, लेकिन यदि हम पूरे देश की बात करें तो किसान हर जगह नाराज ही हैं। दिल्ली में लंबे समय तक किसान आंदोलन चला। हरियाणा और पंजाब में किसानों ने ही भाजपा को हराया है। हालांकि, चुनाव में जय-विजय और पराजय सब मतदाताओं के हाथ होता है। उनके दिमाग में क्या चल रहा होता है यह कोई नहीं जानता। माहौल बनाने और अपनी साख बचाने के लिए अनेक दावे किए जाते हैं, लेकिन असली निर्णय तो आम जनता ही करती है। उसने अपना मत दे दिया है।