मुख्यपृष्ठखेलतड़का: क्रिकेट की हार रुलाए कपिल-धोनी नहीं आए

तड़का: क्रिकेट की हार रुलाए कपिल-धोनी नहीं आए

कविता श्रीवास्तव

भारतीय क्रिकेट टीम वनडे वर्ल्ड कप नहीं जीत सकी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार की सुबह क्रिकेटिया अंदाज में विरोधियों को आउट करने का भाषण दिया। लेकिन उसी दिन शाम को अमदाबाद में उनके नाम के स्टेडियम में हुए फाइनल मैच में पूरी टीम इंडिया ही आउट हो गई। मोदी खुद भी मैच देखने पहुंचे। पर छठ के त्योहार के बीच ऑस्ट्रेलियाई टीम छठी बार विश्व-कप जीत गई। बहुत ही परिश्रम और बहादुरीभरे खेल से फाइनल में पहुंचे हमारे क्रिकेटर भावुक होकर रो पड़े। खैर, यह खेल है। हिंदुस्थान ने यह प्रतिष्ठित वर्ल्डकप दो ही बार जीता है। पहली बार १९८३ में, जब कपिल देव कप्तान थे और हिंदुस्थान की विजय में उनका सर्वोत्तम योगदान था। उसके २८ साल बाद वर्ष २०११ में कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की टीम ने फिर वर्ल्डकप जीता। क्रिकेट के इतिहास में कपिल और धोनी के नाम चमकते सितारे के रूप में दर्ज हैं, पर इस बार के फाइनल मैच में ये दोनों ही महान खिलाड़ी स्टेडियम में नहीं दिखे। कपिल देव ने कहा कि वे पहली बार वर्ल्डकप जीतने वाली पूरी टीम को स्टेडियम में देखना चाहते थे। पर अफसोस किसी ने बुलाया ही नहीं। १९८३ के विश्व कप में कप्तानी करते हुए ऐतिहासिक प्रदर्शन करने वाले कपिल देव को न बुलाना तमाम क्रिकेटप्रेमियों का भी अपमान है। लोग आज भी कपिल देव को अपना हीरो मानते हैं। इसी तरह महेंद्र सिंह धोनी भी अपने पैतृक प्रदेश उत्तराखंड में दिखे। मुंबई में हुए सेमीफाइनल में हिंदुस्थानी टीम ने जब न्यूजीलैंड को धूल चटाई। तब हिंदुस्थान के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी उत्तराखंड में अपने पैतृक गांव में अपनी कुलदेवी की पूजा कर रहे थे। जी हां, वही महेंद्र सिंह धोनी जिनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने २०११ में वर्ल्ड कप का फाइनल मैच इसी इसी मैदान पर जीता था। पर वे अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की और पिता के पैतृक निवास में अपने चाचा और अन्य परिवारजनों के साथ भोजन किया। धोनी ने बचपन में जिस घर के आंगन में क्रिकेट खेलना सीखा था, उस आंगन रूपी पिच को नमन किया। धोनी हिंदुस्थानी क्रिकेट इतिहास में तीनों आईसीसी ट्रॉफी जीतने वाले एकमात्र कप्तान हैं। उन्होंने अपनी कप्तानी में चेन्नई सुपर किंग्स को पांच बार आईपीएल का खिताब जिताया है। कपिल, धोनी जैसे खिलाड़ियों की उपस्थिति खेल की गरिमा बढ़ाती है। युवाओं को प्रेरित करती है। देश का नाम रोशन करने वालों के आदर-सत्कार के संस्कार दर्शाती है। बीसीसीआई और उसके वर्तमान पदाधिकारियों की यह गलती नहीं, ओछी मानसिकता है।

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