मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : सूने कोर्ट, सुने कौन?

तड़का : सूने कोर्ट, सुने कौन?

कविता श्रीवास्तव

हमारे संविधान और नियम-कानून ने न्यायिक प्रणाली को बहुत ही सक्षम, सुदृढ़ और सुव्यवस्थित बनाया हुआ है, फिर भी हमारी न्यायिक व्यवस्था कुछ सुस्त है। इतनी सुस्त कि भारत की विभिन्न अदालतों में तकरीबन पांच करोड़ से ज्यादा केसेस लंबित हैं। इनमें छोटी अदालतों, जिला अदालतों से लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक के मामले शामिल हैं। अदालतों में लंबे समय तक मामले लटकने की एक वजह जजों की कमी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश के विभिन्न हाई कोर्ट में जजों की तकरीबन २९ प्रतिशत नियुक्तियां रिक्त हैं। तकरीबन ३२७ जजों के पद खाली हैं। हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित नामों की संस्तुति पर केंद्र सरकार करती है। उससे पहले हाई कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा संभावित नाम सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को भेजे जाते हैं। बताया गया कि विभिन्न हाई कोर्ट के कॉलेजियम ने नाम ही नहीं भेजे हैं इसलिए सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने भी सरकार को नाम नहीं भेजा है। इसी कारण सरकार नियुक्ति नहीं कर पाई है और जजों के पद खाली हैं। हमने जजों की नियुक्ति पर कॉलेजियम सिस्टम और केंद्र सरकार के बीच टकराव भी देखा था। केंद्र सरकार जजों की नियुक्तियां खुद करना चाहती है। लेकिन जजों का कहना था कि कॉलेजियम सिस्टम इसके लिए सबसे उपयुक्त तरीका है। जजों की नियुक्ति में सरकार की दखल नहीं होनी चाहिए। यह मामला अभी भी विवाद में ही समझा जाता है। उसका समाधान चाहे कुछ भी हो। लेकिन देश की विभिन्न अदालतों में जजों की कमी होना, उनके पद रिक्त रहना आम जनता के लिए परेशानी का कारण है। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट में ही ८० हजार से ज्यादा केसेस पेंडिंग हैं। विभिन्न हाई कोर्ट में ६२ लाख से अधिक मामले विचाराधीन हैं। जजों की कमी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हाई कोर्ट हैं इलाहाबाद हाई कोर्ट, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट, मुंबई हाई कोर्ट, कोलकाता हाई कोर्ट, गुजरात हाई कोर्ट आदि। अकेले इलाहाबाद हाई कोर्ट में ६९ जजों के पदों को अभी भी नियुक्ति का इंतजार है। इलाहाबाद देश का सबसे बड़ा हाई कोर्ट समझा जाता है। पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में ३० जजों के पद रिक्त हैं। मुंबई हाई कोर्ट में २६ जजों की वैकेंसी है। देश में जजों की कमी से यदि मामलों के निपटारे में विलंब हो रहा है तो यह बहुत ही अफसोसपूर्ण है। क्योंकि हमारे यहां न्यायिक विद्वानों, अच्छे वकीलों, अनुभवी विधिवेत्ताओं की कमी नहीं है। हमारी न्यायिक व्यवस्था भी बहुत ही भरोसेमंद और वैधानिक दृष्टि से काफी मजबूत है। केवल जजों की कमी से यदि आम जनता के मामले लंबे समय तक लंबित रहते हैं तो यह पीड़ादायक भी है। कहा जाता है कि देर से मिला हुआ न्याय भी अन्याय ही है। इसलिए इस अन्याय को रोका जाना चाहिए। अदालतों में आए मामलों का जितना जल्दी हो सके निपटारा हो जाना चाहिए। इसके लिए पर्याप्त संख्या में जजों की नियुक्ति भी शीघ्र होनी चाहिए।

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