कविता श्रीवास्तव
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में मणिपुर भी एक महत्वपूर्ण राज्य है। वहां मेईती और कुकी समुदाय के बीच संघर्ष की स्थिति गृह युद्ध जैसी हो गई है। पिछले एक-डेढ़ साल से वहां के हालात बदतर हो गए हैं। स्थिति पर काबू पाने में सरकार नाकाम सिद्ध हुई है। वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। देश के अन्य भागों में ‘डबल इंजन, डबल इंजन…’ का धुआं छोड़ने वाले भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को धू-धू कर जल रहे मणिपुर की ओर ताकने की भी फुर्सत नहीं है। मणिपुर में भारी हिंसा हुई। महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाया गया। भारी लूटपाट हुई। हजारों लोग आज भी बेघर भटक रहे हैं। इन समस्याओं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की विपक्ष की ओर से बारंबार मांग की गई। मणिपुर की समस्याओं के समाधान के लिए विपक्ष ने लोकसभा में सरकार के प्रति अविश्वास प्रस्ताव भी लाया। इसके बावजूद इस विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी कोई सकारात्मक बात नहीं की। पूरे चुनाव में वे देश भर में घूमते रहे, लेकिन मणिपुर की तरफ उन्होंने मुड़कर भी नहीं देखा। उनकी इसी लापरवाही पर अब जाकर आरएसएस ने उनकी आंखें खोलने का प्रयास किया है। आरएसएस के मुखपत्र में मणिपुर का मुद्दा उठाया गया है। लिखा है कि वहां एक साल से लोग न्याय का इंतजार कर रहे हैं। उनकी बातों को सुना जाना चाहिए। मणिपुर पूर्वोत्तर का ऐसा राज्य है जहां पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाके हैं। पहाड़ी इलाकों पर कभी मेईती समाज भी बसा हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे कुकी समुदाय और म्यांमार से आए विदेशियों खासकर रोहिंग्या लोगों ने वहां कब्जा जमाना शुरू किया। मेईती लोगों को पहाड़ियों से खदेड़कर मैदानी इलाकों में बसने पर मजबूर कर दिया गया। इन पहाड़ी इलाकों में अन्य उत्पादों के अलावा अफीम की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग है। स्थानीय लोगों के लिए यह बहुत बड़ा आर्थिक स्रोत का जरिया है। मेईती समाज को वहां से बेदखल किया जाना उन पर अन्याय है। इस बारे में अदालतों में भी मामले चल रहे हैं। राजनीतिक, सामाजिक स्तर पर भी प्रयास हो रहे हैं, लेकिन दोनों समुदाय के बीच लड़ाई कोई खत्म नहीं कर पा रहा है। केंद्रीय मंत्री अमित शाह भी वहां गए थे। उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा था। उनकी बात किसी ने नहीं मानी। अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी वहां जाना चाहते थे, लेकिन सरकारी स्तर पर तमाम तरह की अड़चनें लगाकर उन्हें रोक लिया गया। वहां राज्य में तथा केंद्र में दोनों जगह भाजपा की डबल इंजन सरकार है, पर वे किसी को सुनना ही नहीं चाहते हैं, विपक्ष की भी नहीं। मणिपुर में शांति और कानून व्यवस्था स्थापित करना बहुत बड़ी चुनौती है। किसी की न सुनने वाले भाजपा के लोग क्या अब आरएसएस की बातों पर ध्यान देंगे?