मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : मॉलिवुड में ‘मी-टू'

तड़का : मॉलिवुड में ‘मी-टू’

कविता श्रीवास्तव

मलयालम अभिनेत्री सौम्या ने युवावस्था में खुद पर यौन शोषण होने की बात अब जाकर उजागर की है। उन्होंने कहा है कि पुलिस यदि कार्रवाई करे तो वे उस डायरेक्टर का नाम भी बताएंगी। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि जब वे १८ वर्ष की थीं, तब एक प्रसिद्ध निर्देशक ने उन्हें फिल्म में काम देने के बहाने, उनका भरपूर यौन शोषण किया। उनके साथ रेप किया और वर्षों तक करता रहा। यह ‘मी टू’ का ऐसा मामला है जिसने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री ‘मॉलिवुड’ में खलबली मचा दी है। यौनाचार और महिला उत्पीड़न के मामलों के हर जगह उजागर होने के बाद आजकल अनेक जगहों से आवाज उठ रही हैं। कोलकाता रेप और मर्डर कांड पर भारी दबाव के बाद पश्चिम बंगाल सरकार भी हरकत में आई है। बंगाल में नया बलात्कार विरोधी कानून लाया गया है। हालांकि, आलोचक कह रहे हैं कि यह राजनीतिक नाटक का हिस्सा है, पर बंगाल विधानसभा ने सर्वसम्मति से ‘बलात्कार विरोधी’ विधेयक पारित किया है, जिसमें दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है। वैसे केंद्र के बीएनएस में भी ऐसे मामलों में दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है। अब सब जगह यही मांग है कि बलात्कारियों को मृत्युदंड ही मिले। सामाजिक दृष्टि से यह उचित भी है क्योंकि जो व्यक्ति मां-बहनों के प्रति बुरी नजर ही नहीं रखता, बल्कि उनके साथ दुराचार करने से भी नहीं डरता है, उसके लिए यही मुनासिब है। मां-बहनें आज देश में कहीं भी सुरक्षित नहीं समझी जाती हैं। शासन-प्रशासन व कानूनी प्रावधान की भूमिका घटनाओं की जानकारी के बाद की बात है किंतु आदमी के दिमाग में महिलाओं व बच्चियों के प्रति गंदी सोच की प्रवृत्ति नहीं रुक रही है तो यह आज के संस्कारों का दोष है। लोग सख्त कानून के अभाव में बच जाते हैं इसलिए कानूनी डर भी बहुत आवश्यक है। हम असुरक्षित परिवेश, खराब पुलिस व्यवस्था, खराब अभियोजन जैसे मुद्दों तक ही सीमित रहते हैं। पीड़ित लोग भी खुलकर सामने आ रहे हैं। पहले लोक-लाज के कारण बातें छुपा दी जाती थीं, लेकिन अब ऐसा माहौल नहीं रहा। अब दोषियों को पकड़ना और पर्याप्त कार्रवाई करना कहीं अधिक आसान हुआ है। बलात्कार विरोधी कानून के तहत मृत्युदंड की सजा देने की बात गंभीर विषय है। आरोपी को सजा तक पहुंचना लंबी न्यायिक लड़ाई का हिस्सा है। बलात्कार रेप जैसे मामलों के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें होनी चाहिए। यदि समुचित सुरक्षा और फौरन कार्रवाई का भरोसा होगा तो पीड़ित खामोश नहीं बैठेंगे। अपने भविष्य और सामाजिक परिवेश को ध्यान में रखकर कई बार पीड़ित महिलाएं चुप रह जाती हैं, यदि ऐसा नहीं होता तो अपने ऊपर हुए अत्याचार को उजागर करने के लिए अभिनेत्री सौम्या को इतने वर्षों तक इंतजार नहीं करना पड़ता।

अन्य समाचार