कविता श्रीवास्तव
देश की राजधानी दिल्ली में हो रहे विधानसभा चुनावों पर इन दिनों सबकी निगाहें हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी मंगलवार को प्रेस कॉन्प्रâेंस में फफक-फफककर रो पड़ीं। अपने ८० वर्षीय बुजुर्ग पिता पर की गई अपमानजनक टिप्पणी से वे बेहद आहत दिखीं। दिल्ली के कालका विधानसभा क्षेत्र में उनके प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी रमेश बिधूड़ी ने उन पर ‘बाप बदलने’ जैसा आपत्तिजनक बयान देकर सबको स्तब्ध कर दिया है। इससे आतिशी ही नहीं, किसी का भी आहत होना स्वाभाविक है। आतिशी ने कहा भी कि राजनीति इतने घटिया स्तर की हो सकती है, यह सोचा भी नहीं था। बिधूड़ी के इस बयान पर महिलाओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। भारतीय जनता पार्टी के सांसद रह चुके रमेश बिधूड़ी विवादित बयानों के लिए हमेशा चर्चा में रहते हैं। इसी चुनाव में उन्होंने प्रियंका गांधी के गाल जैसी सड़कें बनाने का बयान देकर भी विवाद खड़ा किया है। इस पर कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि महिलाओं के बारे में यह वैâसी सोच है। सबसे अधिक आश्चर्य तब होता है, जब हमेशा मुखर रहनेवाले भारतीय जनता पार्टी के सभी प्रवक्ता महिलाओं पर उनके नेता द्वारा की गई ऐसी टिप्पणी पर चुप्पी बना लेते हैं। तिल का ताड़ बनाने में माहिर अनेक प्रवक्ता अपने नेता की इस टिप्पणी को पचा जाते हैं। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की ओर से सोमवार को की गई टिप्पणी भी महत्वपूर्ण है। बिहार विधान परिषद के एक मामले में कोर्ट ने बेरोकटोक बयान देनेवाले नेताओं को टोका है। विधानसभाओं और संसद में होनेवाले कटुतापूर्ण बयानों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संभवत: विधायक यह भूल गए हैं कि कड़ा विरोध जताते समय या विरोधियों की आलोचना करते समय भी सम्मानजनक व्यवहार वैâसे किया जाए। कोर्ट ने पूछा कि क्या विधायक सम्मानपूर्वक असहमति जताना भूल गए हैं। उल्लेखनीय है कि बिहार विधान परिषद द्वारा एक सदस्य सुनील कुमार सिंह को कथित कदाचार और दुर्व्यवहार के साथ-साथ बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नकल करने के लिए सदन से निष्कासित कर दिया गया है। इस पैâसले को चुनौती दी गई थी। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सम्मानित सदन के सदस्यों को दूसरों के कटु आलोचक होते हुए भी उनका सम्मान करना चाहिए। आम जनता भी राजनीति में ऐसे ही आदर्श की अपेक्षा करती है। पक्ष-विपक्ष नीतियों, सिद्धांतों और विचारधाराओं पर एक-दूसरे से असहमत हों यह तो ठीक है, लेकिन परस्पर दोषारोपण के चक्कर में बयानों को एकदम घटिया स्तर तक ले जाना उचित नहीं है। नई दिल्ली में मुख्यमंत्री आवास को भव्य बनाया गया है, लेकिन यह किसी की निजी संपत्ति नहीं है। उसका उपयोग तो आनेवाला हर मुख्यमंत्री करेगा। फिर वह चाहे किसी भी पार्टी का हो, लेकिन इसे भी भाजपा ने ऐसा मुद्दा बनाया है मानो वह अरविंद केजरीवाल का अपना घर हो। इसके जवाब में ‘आप’ के नेता संजय सिंह ने सीधे प्रधानमंत्री आवास को राजा का महल बता दिया है। उन्होंने उसके करोड़ों के खर्च भी गिनवा दिए हैं। ठंड के मौसम में हो रहे चुनावों में दिल्ली में राजनीति अभी और भी गर्म रहेगी।