कविता श्रीवास्तव
एक तरफ हम देश में ‘सबका साथ, सबका विकास’ का दावा करते हैं तो दूसरी तरफ हमारे ही देश में कानून को ताक पर रखने वाले प्रभावशाली लोगों की दबंगई कम नहीं हो रही है। हाल ही में अमरावती से आई एक बेहद सनसनीखेज और संवेदनशील खबर ने दिल को झकझोर दिया है। खबर है कि वहां के मेलघाट की चिखलदरा प्रखंड (तहसील) के रेहट्याखेडा गांव में एक ७७ वर्षीय महिला को निर्वस्त्र कर घुमाया गया और बुरी तरह प्रताड़ित किया गया। यह घटना दिसंबर के अंतिम सप्ताह की बताई जाती है। खबरों के मुताबिक, सुदूर आदिवासी गांव में कड़ाके की ‘ंड में महिला को तीन घंटे तक एक खंभे से बांधकर रखा गया, सुलगती लकड़ी से दागा गया और कुत्ते का मल-मूत्र पीने के लिए मजबूर किया गया। इस घटना को पूरा गांव तमाशबीन बनकर देखता रहा। इस खबर की हकीकत क्या है यह तो पुलिस की जांच के बाद पता लगेगा क्योंकि पीड़ित महिला ने स्वयं पुलिस थाने में जाकर अपनी व्यथा बताई है। पता चला है कि गांववालों ने इस बुजुर्ग महिला पर ‘जादू टोना’ करने का आरोप लगाया था। वैसे तो जादू-टोने को अधिकांश लोग पाखंड और अंधश्रद्धा मानते हैं, किंतु ढेर सारे लोगों का इस पर विश्वास है। कोई भी अहित या गलत होने पर तंत्र-मंत्र किए जाने की बातें आज भी की जाती हैं। शहरों के मुकाबले गांवों में आज भी अनेक तरह की शंकाएं-कुशंकाएं होती हैं, पर किसी भी व्यक्ति को अपराधी मान लेने और उसे सजा देने के लिए प्रशासनिक व्यवस्थाएं हैं। पुलिस है, अदालतें हैं। तब कुछ लोग मिलकर स्वयं किसी को अपराधी घोषित करके मनमानी सजा वैâसे दे सकते हैं? न्याय के नाम पर कोई अमानवीय हरकत वैâसे कर सकता है? ताज्जुब इस बात का है कि अमरावती के मामले में स्थानीय पुलिस पाटील का नाम भी सामने आया है। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में पुलिस और नागरिकों के बीच समन्वय के लिए पुलिस पाटील नियुक्त किए जाने की व्यवस्था है। उसे पुलिस के कुछ अधिकार होते हैं। खबरों के अनुसार, पीड़ित महिला का पुलिस पाटील के साथ संपत्ति विवाद था। यदि उसी पुलिस पाटील की उपस्थिति में यह वारदात हुई है तो यह और भी गंभीर मामला है। पीड़िता ने चिखलदरा पुलिस स्टेशन में इस घटना की शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन पुलिस ने सिर्फ मारपीट का ही मामला दर्ज किया। अब पीड़िता ने अमरावती एसपी से संपर्क किया है और आरोप लगाया कि स्थानीय पुलिस घटना के कई दिनों बाद भी कार्रवाई नहीं कर रही है। यह बात पुलिस की ढिलाई सिद्ध करती है। बहरहाल, उम्मीद है कि देर-सवेर पुलिस तो अपना काम करेगी ही, परंतु उन लोगों पर रोक वैâसे लगेगी जो कोई पद या ओहदा पाकर नियम-कानून को ताक पर रख देते हैं। यदि किसी को कानून का डर नहीं है तो ऐसे लोगों का संवैधानिक तरीके से इलाज भी जरूरी है। जादू-टोना पाखंड भी हो सकता है, लेकिन मानवीय प्रताड़ना दंड नहीं अपराध है।