कविता श्रीवास्तव
यह एक पुरानी लेकिन कारगर कहावत है। अर्थ यही है कि जिस चीज की वजह से समस्या होती हो, उस चीज को ही खत्म कर दो। पिछले काफी समय से मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर उसके समाधान के सारे प्रयास विफल से नजर आ रहे हैं। ऐसे में मैतेई समुदाय ने मांग की है कि मणिपुर से मादक पदार्थों के उत्पादन ही बंद कर दिए जाएं। क्योंकि मणिपुर के पहाड़ों पर अफीम की खेती सर्वाधिक होती है और वह बहुत बड़ा आर्थिक स्रोत है। मणिपुर में जारी हिंसा के पार्श्व में यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है। हम देख रहे हैं कि मणिपुर महीनों से हिंसक वारदातें झेल रहा है। राज्य सरकार मजबूर सी लग रही है और केंद्र सरकार हिंसा पर काबू पाने में पूरी तरह विफल है। यहां तक कि गृहमंत्री अमित शाह का दौरा भी कुछ काम नहीं आया। हर दिन हिंसा की वारदातें हो रही हैं। कल ही छुट्टी पर आए एक सैनिक का शव बरामद हुआ। आगजनी, तोड़फोड़, जानलेवा हमले के साथ ही महिलाओं के साथ अभद्रता की तमाम वारदातों से मणिपुर परेशान है। संसद में हंगामा होने के बाद भी केंद्र सरकार वहां कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई है। मणिपुर में मैतेई समुदाय का नगा एवं कुकी समुदाय से आरक्षण को लेकर विवाद है। लेकिन मूल मुद्दा यह है कि मैतेई समाज तराई में रहता है। उन्हें पहाड़ों पर बसने की अनुमति नहीं है। जबकि कुकी और नगा समुदाय को आरक्षण भी मिला हुआ है और वह पहाड़ों में रहने का हकदार है। मणिपुर के पहाड़ों पर अफीम की जबरदस्त खेती होती है। मणिपुर के पड़ोस में ही म्यांमार और बर्मा की सीमाएं हैं। इसलिए वहां से आए हुए लोगों का बहुत बड़ा समुदाय मणिपुर में बसा हुआ है। वे ही लोग पहाड़ों पर रहते हैं, जबकि मूल मैतेई समुदाय बहुसंख्यक है। फिर भी वह पहाड़ों पर बसने का हकदार नहीं है इसलिए वह भी अपने लिए आरक्षण चाहता है। इस बारे में अदालती आदेश आने के बाद दोनों समुदायों के बीच हिंसक वारदातें शुरू हुर्इं। इसमें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक पहलू के साथ ही विदेशी भी शामिल होते गए हैं। इसीलिए हिंसा रुक ही नहीं रही है। ताजा घटनाक्रम में मैतेई ने सारे विवाद की जड़ यानी अफीम की खेती ही खत्म करने की मांग उठाई है। यानी न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। उनकी इस मांग पर यदि सरकार ने गौर किया तो मणिपुर के हालात एकदम बदल जाएंगे। पर लोगों को आर्थिक आय का साधन उपलब्ध कराना सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। फिर भी मणिपुर में हिंसा रोकना और मैतेई समुदाय को हक दिलाना सबसे बड़ी चुनौती है।