मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : भाग्य का उपचार

तड़का : भाग्य का उपचार

कविता श्रीवास्तव

बनारस बड़ी ही अद्भुत नगरी है। कहते हैं मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग यहीं प्राण त्यागना पसंद करते हैं। काशी भोले की नगरी है, जहां बाबा श्मशानों की भस्म से होली खेलते हैं। गंगा तट पर बसे इस पौराणिक महत्व की नगरी में सनातन-पुरातन संस्कृति की संपन्न धरोहर है। अब काशी में भाग्य के उपचार की आम व्यवस्था भी हो रही है। यहां के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ज्योतिष परामर्श केंद्र के नाम से ज्योतिष का ओपीडी शुरू कर रहा है। जानकर तो अजीब ही लग रहा होगा, पर यह बात एकदम सच है। वाराणसी की यह यूनिवर्सिटी संस्कृत के विद्वानों का केंद्र समझा जाता है। अब इसमें लोग विधिवत पहुंच कर मात्र २०० रुपए की फीस पर अपनी कुंडली दिखा सकते हैं। यह अपने तरह की बिलकुल ही अनोखी पहल है। दरअसल, ज्योतिष विद्या प्रकृति में विद्यमान ग्रहों की सही और सटीक जानकारी देने वाली विद्या समझी जाती है। इन्हीं का असर हमारे भाग्य को तय करता है। वैसे भाग्य पर भरोसा करने वाले दुनिया भर में हर जगह हैं। कहते हैं, हर किसी का भाग्य विधाता लिखते हैं। उसे कोई नहीं मिटा सकता। प्रत्येक मनुष्य की उन्नति, अवनति, विकास, विनाश आदि पहले ही से निश्चित रहते हैं। उस पर हमारा नियंत्रण नहीं रहता। लेकिन हमारे कर्म हमारा भविष्य बदलते रहते हैं। हमारे भविष्यवेत्ताओं का मानना है कि हम लोग संसार में आकर जितने अच्छे या बुरे कर्म करते हैं, उन सबका असर संस्कार हमारी आत्मा पर पड़ता है। उन्हीं संस्कारों का फल हमें मिलता है। कहते हैं कि एक जन्म के शुभ या अशुभ कर्म का फल उसी जन्म में और कुछ का जन्मांतर में भोगना पड़ता है। इसी विचार से हमारे यहां भाग्य के चार विभाग किए गए हैं। सचित, प्रारब्ध, क्रियमाण और भावी। प्राय: लोगों का यही विश्वास रहता है कि संसार में जो कुछ होता है, वह सदा भाग्य से ही होता है और उस पर मनुष्य का कोई अधिकार नहीं होता।
भाग्य ही नहीं, बीते कुछ दशकों में वास्तु विद्या भी काफी लोकप्रिय हुई है। इसके क्लासेस भी चलाए जाते हैं। क्योंकि साधारण मकान से लेकर बड़े-बड़े भवननिर्माण भी अब वास्तु के आधार पर बन रहे हैं। कुछ लोग चीन की विद्या फेंगशुई के आधार पर भी चलते हैं। इन सबके बीच यह ओपीडी वस्तुत: हमारे देश की प्राचीन संस्कृति पर आधारित भविष्य विद्या को मजबूती से स्थापित करने की दिशा में यकीनन अनूठी पहल है। क्योंकि अमूमन हर सनातन परिवार में बच्चों के जन्म के साथ ही उसकी कुंडली बनवाने का रिवाज है। यह कुंडली विवाह में भी महत्वपूर्ण होती है। वर-वधु की जोड़ी में कुंडली का मिलान आवश्यक होता है। उसके दोष के निवारण की व्यवस्था भी भविष्य विद्या के जानकार ही करते हैं। इस तरह कुंडली को अपना जीवन बिना विघ्न आगे बढ़ाने का एक भरोसा समझा जाता है। इसके लिए अनेक कार्यालय और केंद्र तो हमने देखे हैं। यह ओपीडी एक क्रांतिकारी कदम है।

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