मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : अहिल्याबाई को नमन!

तड़का : अहिल्याबाई को नमन!

कविता श्रीवास्तव

मुंबई में सिर और गर्दन के वैंâसर का नया अस्पताल बना है। वह अहिल्याबाई होलकर के नाम पर होगा। वहां इलाज तो सबका होगा। सबके केस पेपर पर अहिल्याबाई का नाम होगा। अहिल्याबाई के बारे में जानने वालों को गर्व महसूस होगा। लेकिन न जानने वाला शायद ही कोई समझना भी चाहेगा कि कौन थीं अहिल्याबाई। वाराणसी में नया काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बना। अहिल्याबाई की प्रतिमा विशेष तौर पर वहां लगाई गई। वहां लाखों लोग दर्शन करने आते हैं। लेकिन शायद ही कोई अहिल्याबाई की प्रतिमा के महत्व को समझकर वहां भी नमन करता होगा। संसद की लाइब्रेरी में अहिल्याबाई होलकर की शानदार प्रतिमा स्थापित है। लेकिन सभी सांसदों का ध्यान उस ओर जाता होगा या नहीं, हम नहीं जानते। लेकिन हम ये जानते हैं कि मालवा साम्राज्य की मराठा महारानी अहिल्याबाई होलकर का क्रांतिकारी योगदान हिंदुस्थान में कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। लेकिन अफसोस कि आज की अधिकांश नई पीढ़ी को अहिल्याबाई होलकर का इतिहास नहीं पढ़ाया जाता। फिलहाल वाराणसी में काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर की सच्चाई जानने की कानूनी लड़ाई चल रही है। १६६९ में मुगल शासकों के काल में मूल मंदिर ध्वस्त कर दिया गया था। उसके १११ वर्ष बाद अहिल्याबाई ने ही काशी विश्वनाथ का नया मंदिर बनवाया था। पिछले ३४३ वर्षों से आज तक हम सब उनके बनवाए उसी मंदिर का दर्शन कर रहे हैं। इतिहास गवाह है कि मुगलों के अत्याचार से आहत हिंदुस्थानी समाज में जब एक अंधकार सा पैâला था, तब अहिल्याबाई होलकर ने सैकड़ों ध्वस्त किए गए मंदिरों का पुनरुद्धार करवाया था। उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर देश भर में प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों पर मंदिर बनवाए, घाट बंधवाए, कुओं का निर्माण कराया। रास्ते भी बनवाए। काशी में न केवल विश्वनाथ बाबा का शिवलिंग स्थापित कराया बल्कि गुंबद पर सोने का आवरण भी अपने निजी खर्च से लगवाया। अनेक जगह भूखों के लिए भंडारे खोले। प्यासों के लिए प्याऊ बनवाए। मंदिर ही नहीं बनारस में पावन गंगा तट पर बने विशाल मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, जनता घाट, अहिल्या घाट आदि भी उन्होंने ही बनवाए हैं। औरंगजेब ने जब काशी विश्वनाथ मंदिर को १६६९ में कई हमले करा कर तुड़वाया था, उसे पुनर्निर्मित करने की सबसे पहली कोशिश अहिल्याबाई के ससुर मराठा सम्राट मल्हारराव होलकर ने १७४२ में की थी। लेकिन उस जगह पर अवध के नवाब का शासन था। इसलिए रुकावट आई। १७५० में जयपुर के राजा ने मस्जिद के पास पहली बार सर्वे कराकर जमीन की तलाश शुरू की थी। लेकिन इस काम को १७८० में अहिल्याबाई ने सफल किया। समाज सुधार और हिंदुस्थानी संस्कृति के पुनरुद्धार के लिए अहिल्याबाई के कृतित्व का इतिहास अमर है। लेकिन आज के आधुनिक कॉनवेंट और विभिन्न बोर्ड्स के पाठ्यक्रमों में छत्रपति शिवाजी महाराज, अहिल्याबाई होलकर, महाराणा प्रताप जैसे इतिहास गढ़ने वालों के संपूर्ण परिचय से बच्चों को वंचित रखा जाता है। यह ठीक नहीं। आज ३५० वर्ष बाद भी मालवा साम्राज्य की मराठा महारानी अहिल्याबाई होलकर का नाम अद्भुत प्रेरणा का स्रोत है। तभी तो मुंबई में वैंâसर के इलाज के लिए बने प्रथम अस्पताल को अहिल्याबाई होलकर का नाम दिया गया है। इसीलिए काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर लोकसभा की लाइब्रेरी तक हमें अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमा दिखाई देती है। उस प्रतिमा के सामने पहुंच कर उनके ऐतिहासिक हौसले को झुक कर प्रणाम करने की प्रेरणा मिलती है।

अन्य समाचार