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तड़का : पानी बिन जिंदगानी

कविता श्रीवास्तव

दिल्ली में पानी का संकट हजारों नागरिकों का दम निकाल रहा है। साथ ही कृषि प्रधान उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार तो दक्षिणी भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पानी की किल्‍लत है, वहीं पूर्वी भारत में झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के लोग जल संकट से जूझ रहे हैं। इस साल महाराष्ट्र में भी पानी की कमी ने विकराल रूप धारण कर लिया है। पानी की आपूर्ति करने वाले जल भंडारण तेजी से कम हो रहे हैं।
मराठवाड़ा, छत्रपति संभाजीनगर और नासिक डिविजन में पानी की भारी कमी से लोग जूझ रहे हैं। जानवरों को भी काफी परेशानी हो रही है। ऐसे हालात देखकर `सबका साथ, सबका विकास’ का दावा खोखला साबित हो रहा है। इस मौसम की भीषण गर्मी में दिल्ली में इस समय रोजाना ५० मिलियन गैलन पानी की शॉर्टेज है। परिणाम यह है कि एक-दो टैंकर पर पूरी कॉलोनी को निर्भर रहना पड़ रहा है। प्रत्येक टैंकर में सैकड़ों पाइप लगाकर लोग बूंद-बूंद पाने के लिए तरसते दिख रहे हैं। देश की राजधानी में ऐसे बुरे हालात हैं। जहां पास में ही हमारा राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय, संसद भवन और तमाम राष्ट्रीय महत्व के संस्थान हैं। बड़े-बड़े स्टार होटल हैं। देश की राजधानी में यह देखना ही दुर्भाग्यपूर्ण लगता है।
वैसे पानी की कमी का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। पानी का अत्यधिक उपयोग और बर्बादी भी वजह है, क्योंकि भारतीय अपनी दैनिक आवश्यकता का ३० प्रतिशत पानी बर्बाद कर देते हैं। तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जल निकायों में प्रदूषण बढ़ा है। इसके अलावा अकुशल कृषि पद्धतियों और पानी की फिजूलखर्ची ने महत्वपूर्ण जल स्रोतों को नष्ट कर दिया है। जल संकट बढ़ाने के लिए टैंकर माफिया भी जिम्मेदार हैं। यही कारण है कि पानी का संकट धीरे-धीरे पूरे देश में होता जा रहा है।
यह तो हम जानते ही हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। अनियमित और कम बारिश तथा बढ़ते तापमान के कारण जल स्रोत भर नहीं पाते हैं, परिणामस्वरूप सूखे के हालात पैदा हो रहे हैं। देश में जल प्रबंधन की कमी और पुराने व खराब बुनियादी ढांचे के कारण पानी के रिसाव, वितरण में असमानता, अकुशल सिंचाई और जल संरक्षण के उपायों की कमी ने भी जल संकट को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। बढ़ती आबादी भी पानी की मांग को बढ़ा रही है, इससे जल संसाधनों पर बोझ बढ़ रहा है। वर्तमान में पानी के लिए राज्यों के बीच विवाद भी हो रहे हैं। हालात ऐसे ही रहे तो देश में जलयुद्ध न हो जाए। ऐसी स्थिति न हो जाए, इसके लिए पानी बचाने के लिए प्रत्येक नागरिक को सक्रिय होना पड़ेगा। वाटर हार्वेस्टिंग बढ़ानी होगी। बूंद-बूंद पानी बचाना होगा।

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