कविता श्रीवास्तव
क्या अदालतों की अनदेखी या उनके मनमाने पैâसलों के कारण कोई अभियुक्त जमानत पाकर भी जेल में रखा जा सकता है? नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने यही कहा है। जब जमानत मिल जाए तो अभियुक्त को बाहर आना चाहिए। उसे फिर भी जेल में रहना पड़े तो निश्चित ही उसकी स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के उस पैâसले पर नाराजगी जताई है, जिससे एक अभियुक्त ट्रायल कोर्ट से जमानत पाकर हाई कोर्ट की रोक के कारण एक साल से जेल में है। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस बात पर हैरानी जताई कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एक आरोपी को जमानत देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रोक लगा दी और मामले को लंबित भी रखा। जज ने पूछा, `क्या हो रहा है? यह चौंकाने वाला है। कृपया हमारे प्रश्न का उत्तर दें कि क्या जमानत पर रोक लगाई जा सकती है? जब तक कि वह आतंकवादी न हो, उसके रुकने का कारण कहां है? क्या उच्च न्यायालय बिना किसी तर्कसंगत आदेश के रोक लगा सकता था? हमें उत्तर दें, हम क्या संकेत दे रहे हैं?’ पीठ ने कहा कि इस तरह की प्रथा की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में है। सुप्रीम कोर्ट की यह चिंता देश की जेलों में वर्षों से बंद उन अनेक लोगों के लिए राहत की बात है, जिनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। दरअसल, जमानत का अर्थ है कि कोई व्यक्ति अदालत द्वारा इस शर्त के साथ रिहा किया जाता है कि जब अदालत उसे बुलाएगी या निर्देश देगी, तब वह अदालत में पेश होगा। जमानत किसी अभियुक्त की सशर्त रिहाई है, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर अदालत में पेश होने का वादा किया जाता है। वैसे जमानत का मतलब होता है, किसी तय समय-सीमा के लिए आरोपी को जेल से राहत देना। जमानत का यह मतलब नहीं कि उसे आरोपमुक्त कर दिया गया है, लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं कि वह मुजरिम है। यह सब तो सुनवाई के बाद तय होता है। उससे पहले आरोपी को अंतरिम जमानत के अलावा साधारण जमानत, अग्रिम जमानत और पुलिस थाने से भी जमानत मिलती है। हां, निर्धारित शर्तों का उल्लंघन या आरोप की गंभीरता के आधार पर जमानत रद्द हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने महत्वपूर्ण पैâसले में कहा कि यदि आरोपी के खिलाफ लगे आरोपों की प्रकृति गंभीर है तो अदालत जमानत का आदेश भी रद्द कर सकती है। यदि अभियुक्त समान आपराधिक गतिविधि में लिप्त होता है, जांच में हस्तक्षेप करता है, साक्ष्य या गवाहों के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास करता है, गवाहों को धमकाता है, तब भी जमानत रद्द हो सकती है। किंतु सामान्य परिस्थिति में जमानत रद्द करके अभियुक्त को जेल में रखना और सुनवाई भी लंबित रखना न्यायसंगत नहीं है।