कविता श्रीवास्तव
कोलकाता रेप और हत्याकांड पर संताप करने वाले अनेक नेता महाराष्ट्र में हुई घटनाओं पर क्यों खामोश हैं? केवल इसलिए न कि राज्य में उनकी पार्टी सत्ता में है। स्वयं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे बार-बार विपक्षी पार्टियों पर राजनीति करने का आरोप लगाते हैं। किसी मामले में सत्ता और प्रशासन ढिलाई बरते और विपक्ष उस पर आवाज भी न उठाए क्या यह लोकतंत्र में संभव है? जहां-जहां जनता के हित के लिए आवाज उठानी होती है, विपक्ष का दायित्व है कि उन मुद्दों को उठाना चाहिए। महाविकास आघाडी के तमाम नेता आम जनता के मुद्दों पर हर जगह पहुंच रहे हैं और आवाज भी उठा रहे हैं। सबने देखा कि महाराष्ट्र के बदलापुर में बच्चियों के साथ हुई गंदी हरकत के बाद हंगामा और आंदोलन होने पर ही प्रशासन हरकत में आया। अब जांच जारी है। इस बीच आरोपियों में से कुछ के भाग जाने की खबरें हैं। इस पूरे प्रकरण में मामला दर्ज करने और कार्रवाई शुरू में प्रशासनिक ढिलाई क्या संकेत देती है? इसी तरह महाराष्ट्र के आराध्य छत्रपति शिवाजी महाराज की मालवण में नवनिर्मित प्रतिमा ढह गई। इस मामले पर महाराष्ट्र सरकार ही घेरे में आ गई है। अब पता चला है कि मूर्ति का शिल्पकार ही फरार हो गया है। उसके खिलाफ ‘लुक आउट नोटिस’ जारी की गई है। इतने संवेदनशील और चर्चित मामले में आरोपी की धर-पकड़ में ढिलाई होना और आरोपी को भागने का मौका मिलना क्या संकेत देता है? रेप और हत्या के मामले देश में अनेक राज्यों में हो रहे हैं। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में भी हुए हैं। चाहे कितने ही बुलडोजर चलें किंतु कानून व्यवस्था वहां भी ठीक नहीं है। महाराष्ट्र में भी कानून व व्यवस्था की स्थिति कई बार गड़बड़ाती दिखती है तो सवाल उठना भी स्वाभाविक है। इसे विपक्ष की राजनीति कहना समस्या सा मुंह मोड़ने समान ही समझा जाएगा। बिगड़ते हालात पर काबू पाना सरकार का दायित्व है। यह उसकी कार्यकुशलता से जुड़ा महत्वपूर्ण विषय है। यदि इस मोर्चे पर सरकार विफल नजर आती है तो यह जानना जरूरी है कि उसकी मंशा क्या है। यदि कोलकाता में रेप कांड पर पूरी ममता सरकार कटघरे में लाई जाती है तो महाराष्ट्र में किसे कटघरे में किया जाएगा। इसीलिए जब कांग्रेस के महाराष्ट्र अध्यक्ष नाना पटोले मांग करते हैं कि गृह मंत्रालय संभाल रहे उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पद पर रहने का अधिकार नहीं है तो उनकी बात में दम है। उन्होंने यह भी कहा है कि राज्य की पुलिस महानिदेशक को भी कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के कारण पद से हटाना चाहिए। महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन, किसानों की समस्या, महिला सुरक्षा, बेरोजगारी के साथ ही कानून-व्यवस्था के बिगड़ते हालात चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। सरकारी पक्ष के लोग जनहित के विषय से ज्यादा आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी में ही व्यस्त दिखाई देते हैं। राजनीतिक दृष्टि से यह ठीक लगता है। लेकिन आम जनता महंगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याओं के साथ ही कानून-व्यवस्था के बिगड़े हालात से राहत की अपेक्षा करती है। यदि सरकार विफल सी लगती है तो यह भी तय है कि उसे विदा करने से जनता चूकने वाली नहीं।