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तड़का : तेरा तुझको अर्पण…

कविता श्रीवास्तव

तिरुपति बालाजी मंदिर के सुप्रसिद्ध प्रसाद लड्डू में चर्बी, मछली के तेल व अन्य आपत्तिजनक पदार्थों की मिलावट की खबरों से जगह-जगह सरगर्मी बढ़ गई है। मुंबई के सुप्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर के लड्डू से लेकर देश के तमाम मंदिरों के प्रसादों से संबंधित खबरों ने तूल पकड़ा है। अनेक जगहों से मिलावट, रख-रखाव में लापरवाही, जीव-जंतुओं के संसर्ग जैसी खबरें लगातार आ रही हैं। धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाली ऐसी खबरों से श्रद्धालुओं का मन विचलित होना स्वाभाविक है। श्रद्धालु धार्मिक स्थलों पर निश्छल भाव से दर्शन और पूजन के लिए जाते हैं। मंदिरों के आस-पास ढेर सारे लोग फल और फूलों के साथ मिठाइयां आदि बेचते दिख जाते हैं। मिठाइयों की क्वॉलिटी, उनके रख-रखाव, ताजगी और मानक गुणवत्ता की कसौटी पर उन्हें जांचने की कोई व्यवस्था नहीं देखी जाती। आमतौर पर श्रद्धालुओं को जो मिलता है, उसे स्वीकार करके वे लौट आते हैं। इसी संदर्भ में उत्तर प्रदेश सरकार ने होटल, रेस्टोरेंट, ढाबों आदि के मालिकों और संचालकों के नाम लिखे जाने की अनिवार्यता लागू करने का नियम बनाया है। उत्तर प्रदेश में बीते दिनों सावन महीने में कांवड़ यात्रा के दौरान भी ऐसे आदेश जारी किए गए थे। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी थी। उत्तर प्रदेश सरकार के इस ताजा कदम पर आपत्तियां भी उठने लगी हैं। मायावती ने इसे राजनीति कहा है। कुछ लोगों ने कहा है कि नाम से ज्यादा यह जरूरी है कि प्रसाद को साफ-सुथरे, हाईजीनिक वातावरण में तैयार किया जाए। उनकी शुद्धता और गुणवत्ता पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है। वैसे भगवान के लिए प्रसाद कोई मायने नहीं रखता, तभी तो भगवान श्रीहरि की आरती में लोग गाते हैं, ‘…तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा…।’ इस पंक्ति पर एक बार जगद््गुरु रामानंदाचार्य जी का प्रवचन सुना था। उन्होंने सहज शब्दों में कहा कि ईश्वर को आप जो कुछ भी समर्पित भाव और अच्छे मन से अर्पित करते हैं, वे उसे प्रेम से ग्रहण कर लेते है। वे कभी आपत्ति नहीं करते। भोग के पदार्थों पर उनका कोई चयन नहीं है। वे श्रद्धाभाव और प्रेम के भूखे हैं। उन्हें जो कुछ भी चढ़ाया जाता है, वे उसमें से जरा सा भी नहीं लेते। पूरा का पूरा भक्तों के लिए छोड़ देते हैं। वे अपने लिए चढ़ाए हुए फूल, फल, मेवा, मिठाई, भोजन हर वस्तु को श्रद्धालुओं को वापस लौटा देते हैं। जब सारी सृष्टि और सृष्टि में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु प्रभु की है, तो उन्हें कुछ देनेवाले हम कौन हैं? नदी, जल, पर्वत, आकाश से लेकर फल, फूल, वन सब प्रकृति की देन है। हम तो उनकी ही वस्तुओं में से कुछ लेकर अपने भावों के साथ उन्हीं को समर्पित करते हैं, यह कहते हुए कि ‘तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा…।’ बस, उसी तरह भगवान भी सब के लिए कुछ छोड़ देते हैं, यही भाव से कि ‘तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा…।’ यही है प्रसाद, लेकिन हमारे भावों और श्रद्धा की तरह प्रसाद भी साफ-सुथरा, शुद्ध और सात्विक होना चाहिए।

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