एम एम सिंह
‘मैं यह दर्दनाक स्टोरी साझा करने और इस अकल्पनीय समय में आपका समर्थन मांगने के लिए लिख रही हूं। उस भाग्यशाली दिन, अनन्या अपने पिता मनीष पेडणेकर (४०) और अपनी मां स्नेहा पेडणेकर (३४) के साथ स्नेहा का जन्मदिन मनाने के लिए लंबी ड्राइव पर निकली थीं, जो एक खुशी का मौका होना चाहिए था, वह एक तेज रफ्तार महिंद्रा थार एसयूवी द्वारा पीछे से उनकी रेनॉल्ट क्विड में टक्कर मारने के साथ त्रासदी में समाप्त हो गया। हादसा इतना भीषण था कि अनन्या के पिता मनीष, जो गाड़ी चला रहे थे, की मौके पर ही मौत हो गई, जिससे स्नेहा और उनकी बेटी अनन्या को गंभीर चोटें आर्इं, जो गंभीर रूप से घायल हो गर्इं और आईसीयू में गंभीर हालत में हैं। स्नेहा को तत्काल सर्जरी की गई, क्योंकि उसे कई गंभीर चोटें आई हैं और उन्हें गहन देखभाल की आवश्यकता है।’
ये मार्मिक शब्द जो भीतर तक आपको विचलित करते हैं। एक परिवार जो शुक्रवार तक खुशी-खुशी बर्थडे सेलिब्रेशन के लिए निकला था कि जिंदगी में ड्रंक एंड ड्राइव हादसे ने हमेशा के लिए अंधकार ला दिया है। हादसा नई मुंबई के पामबीच रोड पर हुआ था। बेलापुर के अपोलो अस्पताल के आईसीयू में भर्ती चार वर्षीया अनन्या पेडणेकर के परिजन उसकी सर्जरी का खर्च उठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अनन्या की मौसी, समता गौड ने अपनी भतीजी के लिए ‘इंपैक्ट गुरु’ के माध्यम से फंडिंग के लिए अभियान शुरू किया है। शुरुआत में जो आपने पढ़ा वह उसी क्राउड फंडिंग के लिए लिखे गए लेख का एक हिस्सा है। राहत की बात यह है कि एक दिन में अभियान को १७९ दानदाताओं से प्रतिक्रिया मिली, जिसमें कुल ९.३५ लाख रुपए का योगदान था।बकौल समता, ‘अनन्या के जबड़े की एक बड़ी सर्जरी हुई है और डॉक्टरों ने कहा है कि उसे ठीक होने के लिए कई और सर्जरी की जरूरत है और कम से कम एक महीने तक पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) में रहना होगा। मां स्नेहा अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रही है, उसका दिल न केवल शारीरिक चोटों से बल्कि अपने पति को खोने से भी टूट गया है, जो उसके लिए सबकुछ था।’ अनन्या और स्नेहा के इलाज के लिए कुल अनुमानित खर्च, मतलब २०,००,००० रुपए उनकी क्षमता से अधिक है।
अनन्या एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है, जिसमें उसके पिता, जो एक निजी फर्म में काम करते थे, पिछले दो महीनों से बेरोजगार थे और उनकी मां नई मुंबई में एक टूर एंड ट्रैवल्स एजेंसी में काम करती हैं। यह मामला ड्रंक एंड ड्राइव का है। पुणे और वर्ली के हादसों को लोग भूले नहीं होंगे। सरकार प्रशासन चाहे जितने दावे कर लें ड्रंक एंड ड्राइव पर रोक लगाने में कामयाब होते नहीं दिख रहा। देर रात तक या तड़के सुबह तक चलनेवाले नाइट क्लब से गाड़ियां जिस स्पीड से निकलती हैं, उससे प्रशासन बेखबर है इस पर भला कौन भरोसा कर सकता है? ऐसा भी नहीं कि रातभर ड्रिंक एंड ड्राइव चेकिंग नहीं होती, लेकिन ये वो लोग हैं, जिनके लिए कानून कोई मायने नहीं रखता! एक ४ साल की बच्ची अस्पताल में लड़ रही है मौत से जिंदगी के लिए… यह इसका जीता-जागता उदाहरण है। लाडली बहनों के लिए बड़े-बड़े वादे करनेवाले भाइयों को क्या उसकी तकलीफ नहीं दिखाई देती? क्राउड फंडिंग के जरिए उसके इलाज के लिए उसकी मौसी की गुहार उन्हें नहीं सुनाई दे रही है?