सैयद सलमान
मुंबई
आजकल धर्म पर बहस करना खाली बैठे लोगों का सबसे पसंदीदा शौक हो गया है। हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति धर्म की बहस को इस तरह करता हुआ मिल जाएगा, जैसे वह अपने धर्म का प्रकांड विद्वान है। यह धर्म की संकुचित लोगों द्वारा गढ़ी गई परिभाषा होती है और उस पर तुर्रा यह कि जाहिल से जाहिल व्यक्ति भी इस बहस का केंद्रबिंदु बन जाता है। शायद इसीलिए सांप्रदायिक तनाव पैâलाना आसान हो गया है। धर्म का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है और ऐसा राजनीतिकरण वाला धर्म अपनी परंपरा का सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। हमारे देश का हिंदू-मुस्लिम विवाद भी उन्हीं शक्तियों के देन है। हालांकि, हमारे देश का मूल स्वभाव सबको साथ लेकर चलने का है। यही कारण है कि लाख कोशिशें हों, भयंकर से भयंकर दंगे-फसाद हों, लेकिन साझा संस्कृति का यह गठजोड़ था टूट कर बिखरता नहीं। वह हर जख्म खाकर फिर से खड़ा हो जाता है। हालांकि, इस तरह के दंगे-फसाद न केवल दोनों समुदाय को, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी क्षति पहुंचाते हैं। ऐसे में दोनों समुदाय को जोड़कर रखनेवाली शक्तियां कमजोर पड़ जाती हैं, लेकिन यहां सूफी-संतों की ऐसी बेजोड़ परंपरा है, जो उन्हें जोड़े रखने का माद्दा रखती है।
हिंदुस्थान में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता स्थापित करना एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा रहा है, लेकिन सूफी संतों और भक्ति आंदोलन के माध्यम से प्रेम और आध्यात्मिकता के संदेश ने इन दोनों समुदायों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सूफी-संतों ने प्रेम, मानवता और सद्भाव की शिक्षाओं का प्रचार किया। उनकी दी हुई शिक्षा आम लोगों के बीच गूंजती रही और आज भी उसका असर देखा जा सकता है। सूफी परंपरा ने जाति और धर्म के बंधनों को तोड़कर सभी को समान माना। इसी तरह, भक्ति आंदोलन ने हिंदू धर्म में प्रेम और आध्यात्मिकता को प्रमुखता दी। मुस्लिम सूफी साहित्य और हिंदू ग्रंथों में प्रकृति का चित्रण, प्रेम और आध्यात्मिकता के गहरे अनुभवों को उजागर करता है। सूफी साहित्य और हिंदू ग्रंथों में मानवता के उच्चतम गुणों को विशेष महत्व दिया गया है। प्रेम की भावना और आध्यात्मिक एकता के संदेश ने दोनों समुदायों को जोड़ा है।
सूफी संतों ने सभी धर्मों और जातियों के लोगों को समान माना और उनके बीच भाईचारे का संदेश पैâलाया। चिश्ती सूफी परंपरा के संस्थापक मोईनुद्दीन चिश्ती ने कहा था, ‘सभी धर्मों के लोग मेरे भाई हैं।’ इसी प्रकार, हिंदू ग्रंथों में भी सर्वधर्म समभाव का संदेश मिलता है। उदाहरण के लिए भगवद् गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है, ‘जो भक्ति से मुझे अर्पित करता है, चाहे वह पत्ता हो या फूल, मैं उसे स्वीकार करता हूं।’ सूफी और हिंदू दोनों परंपराओं में मानव को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। सूफी संतों ने मानव को खुदा का जलवा माना और उसकी इज्जत का आह्वान किया। हिंदू ग्रंथों में भी मानव को देवता से भी बढ़कर माना गया है, जैसा कि उपनिषदों में कहा गया है, ‘तत्वमसि’ (तू ही वह है)। ध्यान, समाधि, कलमा-दरूद का विर्द करना जैसे कई ऐसे धार्मिक संस्कार और अनुष्ठान हिंदू संस्कारों से मेल खाते हैं। गायत्री मंत्र, हनुमान चालीसा का पाठ, ध्यान, समाधि हिंदू संस्कारों में है ही। सूफी संतों ने दया, प्रेम, त्याग और सेवा जैसे गुणों को महत्व दिया। हिंदू ग्रंथों में भी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे महान आदर्शों का उपदेश दिया गया है। यानी दोनों ने ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग कुछ इस तरह से माना कि ‘ईश्वर एक है, सभी कुछ ईश्वर में है, उनके बाहर कुछ नहीं है और सभी कुछ का त्याग कर प्रेम के द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।’
आज के समय में जब असहिष्णुता और नफरत का माहौल है, प्रेम और आध्यात्मिकता का संदेश अत्यधिक प्रासंगिक है। हिंदू और मुस्लिम नेताओं को इन मूल्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए और एक ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जहां सभी धर्मों के लोग एक साथ रह सकें। इस तरह प्रेम और आध्यात्मिकता ही हिंदू और मुस्लिम समुदायों को एक साथ लाने और एकता स्थापित करने का एकमात्र रास्ता है। हमें इन मूल्यों को अपनाना चाहिए और एक समावेशी और सहिष्णु समाज का निर्माण करना चाहिए। आपसी भाईचारा, एकात्म मानववाद और इंसानियत जैसे गुण आज भी प्रासंगिक हैं और मानव समाज के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। हमारी शिक्षा को अधिक आध्यात्मिक सामग्री की आवश्यकता है, ताकि हम एक नई पीढ़ी तैयार कर सकें जो सहिष्णुता, अन्य धर्मों के प्रति सम्मान, हिंदुस्थान की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत पर गर्व करे और समाज में करुणा जैसे मूल्यों को अपनाए। सभी धर्मों में कई मूलभूत समानताएं हैं, जो एक-दूसरे के प्रति सम्मान और समझ विकसित करने में मदद कर सकती हैं। शिक्षा में आध्यात्मिकता का समावेश हमें एक बेहतर समाज की दिशा में अग्रसर कर सकता है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)