सैयद सलमान
मुंबई
इन दिनों देशभर में मस्जिदों के अवैध हिस्सों को तोड़ने की घटनाएं बढ़ गई हैं। मुस्लिम समाज इसे सोची-समझी साजिश बता रहा है। विशेषकर, हिमाचल प्रदेश के शिमला स्थित संजौली मस्जिद और मंडी स्थित मस्जिद मामले में मुसलमानों को लगता है कि उनके साथ धर्म के आधार पर प्रशासन भेदभाव कर रहा है। हालांकि, संजौली स्थित जिस मस्जिद को तोड़ने को लेकर तोड़क दस्ता पहुंचा उसके सामने स्थानीय मुस्लिम संगठनों ने अदालत के आदेश के अनुसार, अवैध हिस्से को खुद ध्वस्त करने की पेशकश की, वहीं दूसरी तरफ हिंदू संगठनों ने इसे सरकार के दबाव का परिणाम बताया। इस विवाद ने राजनीतिक तनाव को भी जन्म दिया है, जहां बीजेपी और कांग्रेस एक-दूसरे पर हमलावर हैं।
मंडी में मस्जिद विवाद के दौरान, मुस्लिम समुदाय ने अवैध निर्माण को खुद तोड़ने का निर्णय लिया। जेल रोड पर स्थित मस्जिद की एक दीवार को लोक निर्माण विभाग और स्थानीय मुस्लिमों ने, यह मानते हुए कि दीवार सरकारी जमीन पर बनाई गई थी, मिलकर गिरा दिया। मुस्लिम समुदाय ने शांति बनाए रखने का प्रयास करते हुए खुद ही अवैध निर्माण को हटाने का कदम उठाया, जिससे तनाव कम करने में मदद मिली। भाजपा के सहयोगी संगठनों ने इस मामले को तूल देकर तनाव बढ़ाना चाहा, लेकिन स्थानीय लोगों ने समझदारी का परिचय देते हुए शांति को तरजीह दी। प्रशासन ने भी धारा १६३ लागू की और पुलिस बल तैनात कर मामले को संभालने की कोशिश की।
इसी तरह, मुंबई के धारावी में भी अवैध निर्माण को लेकर विवाद हुआ, जिससे तनाव बढ़ा। इन सभी मामलों में चुनिंदा स्थानीय हिंदू संगठनों के उग्र प्रदर्शनों ने मुस्लिम समाज पर गहरा प्रभाव डाला है। पहले तो मुस्लिम समाज की तरफ से न सिर्फ तोड़क कार्रवाई का विरोध हुआ, बल्कि इकट्ठा हुई भीड़ हिंसक भी हुई। हालांकि, समझदार मुसलमानों के समूह और मुस्लिम संगठनों ने हिंदू संगठनों के प्रदर्शनों का जवाब शांति और सहिष्णुता के साथ दिया, ताकि तनाव कम हो सके। यह बात अच्छी रही कि मुस्लिम संगठनों ने विवाद को बढ़ाने के बजाय शांति बनाए रखने का प्रयास किया। आगामी चंद महीनों में होनेवाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को देखते हुए ‘विश्वासघातियों’ और उनके सहयोगियों को ऐसे तनावपूर्ण माहौल में अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का ऐसी घटनाएं मौका देती हैं। कुछ लोग तो दबी जुबान से कहते पाए जाते हैं कि यह उन्हीं शरारती तत्वों की साजिश है।
जहां तक इस्लाम की शिक्षा का सवाल है, इस्लाम में अवैध स्थान पर या कब्जा की गई जमीन पर मस्जिद बनाना सख्त मना है। मस्जिदों का निर्माण केवल वैध और स्वामित्व वाली भूमि पर किया जाना चाहिए। स्वामित्व वाली जमीन अगर खरीदी गई है तो माकूल कीमत पर खरीदनी चाहिए। देशभर के विभिन्न स्थानों पर वैध और अवैध मस्जिदों के निर्माण को लेकर विवाद और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ रहा है, जबकि अवैध मस्जिदों का अव्वल तो निर्माण होना ही नहीं चाहिए। इस्लाम में जबरन हथियाई गई जमीन पर इस्लामी गतिविधियों को अंजाम देना उचित नहीं माना जाता। तमाम मकतब ए फिक्र के फुकहा, उलेमा, मुफ्ती और मुस्लिम विद्वानों का स्पष्ट मानना है कि अवैध मस्जिदों में पढ़ी गई नमाज कबूल नहीं होगी। इस्लाम में मस्जिद का निर्माण एक पवित्र कार्य माना जाता है। यहां तक कि मस्जिदों के निर्माण में हलाल कमाई ही लगाई जा सकती है।
इस्लामी शरीयत के अनुसार, मस्जिद के निर्माण के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। इस्लामी कानून का यह नियम सुनिश्चित करता है कि निर्माण वैध भूमि पर हो और किसी भी प्रकार का अवैध कब्जा न हो। अवैध निर्माण धर्म की शिक्षा का स्थान नहीं हो सकता। मस्जिद को अल्लाह का घर मानते हुए, इस्लाम में यह आवश्यक है कि उसे बनाने में पूर्ण ईमानदारी बरती जाए और कानून का पालन किया जाए। इस से हमवतन भाइयों को तकलीफ भी नहीं होगी, इस्लामी कानून के साथ-साथ देश के कानून का पालन भी होगा और सबसे बड़ी बात, उपद्रवी तत्वों को सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने का मौका नहीं मिलेगा। कुल मिलाकर इस्लाम में अवैध मस्जिद का निर्माण न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से गलत है, बल्कि सामाजिक और कानूनी नजरिए से भी अनुचित है। एक शेर है,
‘मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमां की हरारत वालों ने,
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाजी बन न सका…’
अल्लामा इकबाल का यह मशहूर शेर इस बात की तरफ इशारा करता है कि बाहरी रूप से धार्मिक स्थलों का निर्माण करना आसान है, लेकिन वास्तविक प्रेम और एकता तो दिलों में होनी चाहिए। मुसलमानों को यह बात ध्यान में रखनी होगी। लेकिन सरकार को भी एकतरफा कार्रवाई से बचना चाहिए और नफरत पैâलाने वालों पर बिना किसी भेदभाव के कार्रवाई करनी चाहिए।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)